बुधवार, 23 अप्रैल 2014

सबकी हांडी में पक रही खिचड़ी ही है

16वीं लोकसभा के लिए होने वाले चुनाव कई मायनों में अभूतपूर्व होने के लिए तो याद किया ही जायेगा, लेकिन इन चुनावों की जो एक बात जनता को जरूर याद रखनी चाहिए वह है हमारे राजनेताओं के बोल- वचन. इस चुनाव में बदजुबानी करने से कोई भी दल या नेता नहीं बच रहा है. याद दिलाने के लिए कुछ बानगी पेश कर रहा हूं-
मुलायम सिंह - बलात्कार के अपराध में फांसी देना गलत है. लड़के हैं, उनसे गलती हो ही जाती है. और, यदि मेरी सरकार आयी तो इस कानून की समीक्षा करेंगे.
अबू आजमी - जो महिला विवाह से पूर्व अपनी मर्जी से यौन संबंध बना रही हो, उसे भी सजा-ए-मौत दी जानी चाहिए.
आजम खान - अल्लाह ने इंदिरा गांधी, राजीव गांधी व संजय गांधी को उनके गुनाहों की सजा दी.
अमित शाह - यह चुनाव सम्मान की लड़ाई है. अपने अपमान का बदला लेने की लड़ाई है.
गिरिराज सिंह - जो लोग नरेंद्र मोदी को रोकना चाहते हैं, वे पाकिस्तान की ओर देख रहे हैं. आने वाले दिनों में उनके लिए भारत में कोई जगह नहीं होगी. उनके लिए बस पाकिस्तान में जगह बचेगी.
सलमान खुर्शीद - हम तुमको (मोदी को) लोगों की हत्या करने का आरोपी नहीं बता रहे हैं. हमारा आरोप है कि तुम नपुंसक हो.
अभिषेक मनुसिंघवी - नरेंद्र मोदी का मतलब है ‘मैन ऑफ डैमेज टू इंडिया’ और भाजपा का मतलब ‘भारत जलाओ पार्टी’.
 कुल मिला कर यह कहना सही ही होगा कि चुनाव का यह दौर राजनीति का ‘कब्ज काल’ है. कई पार्टियों का हाजमा खराब है. कई पार्टी प्रवक्ता और कई उम्मीदवार खट्टी डकारें ले रहे हैं, उनके मुंह से बदबू भी आ रही है और वे यदा-कदा अपने आसपास वायू प्रदूषण की स्थिति भी उत्पन्न कर रहे हैं. ऐसे लोगों को गरिष्ठ भोजन और गरिष्ठ भाषा दोनों से बचने की सलाह दी जाती है. इनके लिए हाजमा दुरु स्त रखने के वास्ते खिचड़ी ही एकमात्र विकल्प शेष रह जाती है. वैसे भी जब विचार अपने अपने-अपने ढाई चावल अलग-अलग पकाने की चेष्टा करने लगते हैं तो उनमें असमंजस की दाल मिला कर खिचड़ी का पकना स्वाभाविक ही है. क्योंकि सुनामी लहरें अनामी लोगों को उद्वेलित करती हैं और उनके मन में खिचड़ी बनने की प्रक्रि या शुरू हो जाती है. यह खिचड़ी न केवल अनामी लोगों के मन में पकती है, वरन समूचा राजनैतिक वातावरण ही खिचड़ीमय हो जाता है. जहां देखो वहीं खिचड़ी फदकने से उत्पन्न संगीत सुनायी पड़ने लगता है, जिनके पास ढाई चावल हैं वे भी और जिनके पास ढाई भी नहीं हैं, वे भी हांडियों के तले चिंगारियों को हवा देने लगते हैं. हांडी मिट्टी की है या काठ की उनके लिए ऐसा सोचना समय की बरबादी है. उन्हें यह भी फिक्र नहीं कि यह हांडी दोबारा चढ़ेगी भी या नहीं.

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