tag:blogger.com,1999:blog-761147824630124209.post5147609343897433236..comments2023-09-27T04:35:39.057-07:00Comments on अ-शब्द: फिजा की फितरतAkhileshwar Pandeyhttp://www.blogger.com/profile/10881251799462130074noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-761147824630124209.post-47982134845625947382009-03-03T21:17:00.000-08:002009-03-03T21:17:00.000-08:00फ़िज़ा की तो फ़ितरत ही है बदलना । जिस दौर में चाँदी क...फ़िज़ा की तो फ़ितरत ही है बदलना । जिस दौर में चाँदी के चंद टुकड़ों के लिए ईमान ,भगवान ,इंसान को बेचा जा रहा हो , वहाँ कोई अपनी भावनाओं को सरेराह नीलाम कर भी रहा है ,तो इसमें हर्ज़ ही क्या है । भावनाएँ उनकी ,ज़िन्दगी उनकी ,उसूल उनके । आज तो ये कीम्त मिल भी रही है कल जब ना सूर्त रहेगी ना सीरत और नाही ये गरमा गरम मुद्दा ,तब क्या होगा उस बेचारी का ..., अबला नारी का ...। आज मौका है ,तो भर लेने दीजिए झोली ।sarita argareyhttps://www.blogger.com/profile/02602819243543324233noreply@blogger.com