ये सारे सवाल एक ही दिशा से आते हैं और वह है यौवन की चाह। देवताओं का रुप युगों-युगों तक एक सा रहता है, पर जब वे धरती पर अवतार लेते हैं तो बाल लीला, यौवन और महाप्रयाण उनका भी सत्य बन जानते हैं। मनुष्य आत्मा जीतने वालों के सम्मुख नत हो जाता है लेकिन दैहिक जीत के उपक्रम करता रहता है। हाल के वर्षों में सौंदर्यशाली और जवान बने रहने की चाह ने अरबों की नई इंडस्ट्री खडी कर दी है। वैज्ञानिक आयु के प्रभावों को निष्फल करने के लिए रोज नये प्रयोग कर रहे हैं।
उम्र का बढना जीवन की अंतिम सच्चाई है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार आत्मसंतुष्टि, सुंदर दिखने की चाह, समय के साथ कदम मिलाने की इच्छा जैसे कारण व्यक्ति को अपनी उम्र से कम नजर आने के लिए बाध्य करत हैं। पुरी दुनिया में उम्र को जीतने के प्रयास चल रहे हैं। कैलिफोर्निया की एक कंपनी ने ब्लास्ट कैंसर कोशिकाओं से निबटने का एक तरीका खोज निकाला है। उनके इस तरीके से एंटी एजिंग इंडस्ट्री को अरबों डालर का फायदा होगा। वैज्ञानिकों की एक टीम ने स्किन एजिंग जीन खोज निकाला है जिसमें झुर्रियों, बढती उम्र की त्वचा पर कुप्रभाव और त्वचा पर होने वाले दूसरे नुकसानों में राहत मिल सकती है।
शिकागो यूनिवर्सिटी में शोध कर रहे वैज्ञानिक प्रोफेसर जे के अनुसार कुछ लोग सेहत के नियमों पर चलकर भी तीस की उम्र में मर जाते हैं और कुछ नशा करके भी सौ साल निकाल लेते हैं। उम्र की यह गुत्थी अनेक प्रश्नों को जन्म देती है। क्या वाकई ऐसी कोई प्रक्रिया है जो बढते हुए बुढापे को रोककर इंसान को सदाबहार बनाए रख सके। या एंटी एजिंग मात्र खोखला भ्रम है, जिसे इंसान आत्मसंतुष्टि के लिए अपनाता है। आखिरकार बुढापा है क्या, यह एक सामान्य प्रक्रिया है या फिर एक बीमारी जिसका इलाज संभव है।
बुढापा दरअसल एक क्रमिक और स्वाभाविक परिवर्तन की प्रक्रिया है जिसका परिणाम बचपन, युवावस्था, वयस्कता के रुप में आता है। उम्र बढने की यह प्रक्रिया मनुष्य के शरीर में उम्र के साथ होने वाले परिवर्तनों को प्रतिबिंबित करती है। इसके नकारात्मक और सकारात्मक दोनों पहलू हैं। जहां एक ओर एजिंग से शारीरिक क्षमता में कमी आती है वहीं दूसरी ओर इसका अर्थ विकास (बुदि़धमानी व अनुभव) है। जारी....