उस दिन मेरा साप्ताहिक अवकाश था. एक मित्र को स्टेशन छोड़ कर रात में घर लौट रहा था. घर से करीब दो सौ कदम दूर एक बंद गली से किसी प्रतिद्वंद्वी को परास्त कर या परास्त होकर तेजी से एक कुत्ता मेरी मोटरसाइकिल के अगले चक्के में घुस आया. गाड़ी फिसली और मैं धड़ाम. मुङो ठीक-ठीक इतना ही याद है. बाकी का घटनाक्रम इतनी तेजी से हुआ कि मुङो पता ही नहीं चला. मुङो आसपास के लोगों ने उठाया और मैं किसी तरह वहां से घर पहुंचा. रातभर दर्द से परेशान रहा. रातभर आपकी जगह दर्द की याद आती रही.. दूसरे दिन जब डॉक्टर से सामना हुआ, तो पता चला कि पैर में फ्रैर है. प्लास्टर करवा कर घर लौटा. मित्रों, रिश्तेदारों व जाननेवालों की तरफ से कुशलक्षेम जानने का सिलसिला शुरू हुआ. कुछ घर पहुंचे और कई ने फोन किया. अजीब लगता है, एक ही बात का रिपीट टेलीकास्ट करते रहो. किसी से विस्तृत, तो किसी से संक्षेप में. एक अलग तरह का अनुभव है यह. इस दौरान कई लोगों ने मुझसे यह भी जानना चाहा कि उस कुत्ते का क्या हुआ? वह जिंदा है या..? उसका पैर सलामत है या..? इन सवालों का सामना करते हुए शुरू में तो मुङो थोड़ा अजीब लगा, पर बाद में मैं इसे लेकर संजीदा हो गया. मैं इसे स्वाभाविक सवाल के रूप में देखने लगा.
तब मुङो याद आया नरेंद्र मोदी का वह बयान- ‘अगर हम गाड़ी चला रहे हैं या कोई और ड्राइव कर रहा है और हम पीछे बैठे हैं, फिर भी छोटा सा कुत्ते का बच्चा भी अगर गाड़ी के नीचे आ जाता है तो हमें पेन फील होता है.’ मैं सोच में पड़ गया कि मैं तो अपने दर्द से ही परेशान हूं. मुङो अपनी ही तकलीफें महसूस हो रही हैं. मैं इस बात से दुखी हूं कि मेरा आर्थिक नुकसान हुआ, स्वास्थ्य का नुकसान हुआ. मेरी छुट्टियां बरबाद हुईं. पर मुङो उस कुत्ते की एक बार भी चिंता नहीं हुई कि उसका क्या हुआ? क्या वाकई उसका भी पैर टूट गया होगा? कहीं उसकी जान पर तो नहीं बन आयी? उसकी देख-रेख कौन कर रहा होगा? वह कहां होगा, कैसे होगा? अब मुङो अपना दर्द कुछ कमतर लगने लगा. मैं सोच में पड़ गया. मुङो आत्मग्लानि महसूस होने लगी, पर मेरे सामने मुश्किल यह थी कि मैं खुद ही चल नहीं पा रहा था ऐसे में उस कुत्ते की शिनाख्त करना या उसके बारे में ठीक-ठीक पता लगा पाना मुश्किल था. बाद में मैंने खुद को दृढ़ करते हुए यह निश्चय किया कि मैं उस अज्ञात कुत्ते की सलामती के लिए प्रार्थना करूंगा. अफसोस तो मुङो भी है कि एक निदरेष कुत्ता मेरी गाड़ी के नीचे आ गया. मैं तो दोहरा गुनहगार हूं क्योंकि गाड़ी भी मेरी थी और ड्राइव भी मैं ही कर रहा था. इस पश्चाताप की अग्नि में जलते हुए एक डर फिर भी मुङो परेशान कर रहा है कि कहीं फिर कोई मुझसे यह न पूछ ले कि ‘उस कुत्ते का क्या हुआ?’
तब मुङो याद आया नरेंद्र मोदी का वह बयान- ‘अगर हम गाड़ी चला रहे हैं या कोई और ड्राइव कर रहा है और हम पीछे बैठे हैं, फिर भी छोटा सा कुत्ते का बच्चा भी अगर गाड़ी के नीचे आ जाता है तो हमें पेन फील होता है.’ मैं सोच में पड़ गया कि मैं तो अपने दर्द से ही परेशान हूं. मुङो अपनी ही तकलीफें महसूस हो रही हैं. मैं इस बात से दुखी हूं कि मेरा आर्थिक नुकसान हुआ, स्वास्थ्य का नुकसान हुआ. मेरी छुट्टियां बरबाद हुईं. पर मुङो उस कुत्ते की एक बार भी चिंता नहीं हुई कि उसका क्या हुआ? क्या वाकई उसका भी पैर टूट गया होगा? कहीं उसकी जान पर तो नहीं बन आयी? उसकी देख-रेख कौन कर रहा होगा? वह कहां होगा, कैसे होगा? अब मुङो अपना दर्द कुछ कमतर लगने लगा. मैं सोच में पड़ गया. मुङो आत्मग्लानि महसूस होने लगी, पर मेरे सामने मुश्किल यह थी कि मैं खुद ही चल नहीं पा रहा था ऐसे में उस कुत्ते की शिनाख्त करना या उसके बारे में ठीक-ठीक पता लगा पाना मुश्किल था. बाद में मैंने खुद को दृढ़ करते हुए यह निश्चय किया कि मैं उस अज्ञात कुत्ते की सलामती के लिए प्रार्थना करूंगा. अफसोस तो मुङो भी है कि एक निदरेष कुत्ता मेरी गाड़ी के नीचे आ गया. मैं तो दोहरा गुनहगार हूं क्योंकि गाड़ी भी मेरी थी और ड्राइव भी मैं ही कर रहा था. इस पश्चाताप की अग्नि में जलते हुए एक डर फिर भी मुङो परेशान कर रहा है कि कहीं फिर कोई मुझसे यह न पूछ ले कि ‘उस कुत्ते का क्या हुआ?’