जिंदगी का बोझ उठाया न गया तो
लाश ही कंधे पर उठा ली उसने
सब सोच रहे-
कठकरेजी होगा वह
रोया नहीं एक बार भी
बीवी के मरने पर रोना तो चाहिये था
कैसे रोता वह-
बीवी तो बाद में मरी
मर गयी थी इंसानियत पहले ही
उसके लिए
कैसे रोता वह-
बिटिया जो साथ थी उसके
सयानी सी
उम्र और मन दोनों से
कैसे रोता वह-
दिखावा थोड़े न करना था उसे
मुआवजा थोड़ी न मांगनी थी उसे
शिकायत थोड़ी न करनी थी उसे
कैसे रोता वह
क्यों रोता वह-
जब बीवी ही मर गयी
जब खो दिया उसने आधी जिंदगी
जब जीना ही है बिटिया के लिए
दीना मांझी नहीं, इंद्रजीत है वह
सीख लिया है उसने
कैसे लड़ी जाती है अपनी लड़ाई
दुनियावी बेहयाई को नजरअंदाज करके.
लाश ही कंधे पर उठा ली उसने
सब सोच रहे-
कठकरेजी होगा वह
रोया नहीं एक बार भी
बीवी के मरने पर रोना तो चाहिये था
कैसे रोता वह-
बीवी तो बाद में मरी
मर गयी थी इंसानियत पहले ही
उसके लिए
कैसे रोता वह-
बिटिया जो साथ थी उसके
सयानी सी
उम्र और मन दोनों से
कैसे रोता वह-
दिखावा थोड़े न करना था उसे
मुआवजा थोड़ी न मांगनी थी उसे
शिकायत थोड़ी न करनी थी उसे
कैसे रोता वह
क्यों रोता वह-
जब बीवी ही मर गयी
जब खो दिया उसने आधी जिंदगी
जब जीना ही है बिटिया के लिए
दीना मांझी नहीं, इंद्रजीत है वह
सीख लिया है उसने
कैसे लड़ी जाती है अपनी लड़ाई
दुनियावी बेहयाई को नजरअंदाज करके.