भरी दुपहरी में मौसम को गरियाते हुए श्रीमतीजी को बाइक पर बिठा कर चला जा रहा था. अचानक ऐसा लगा कि कोई ‘रुको! रुको!’ की आवाज दे रहा है. मैं इधर-उधर देख ही रहा था कि पीछे से श्रीमतीजी ने झकझोरा- ‘सो रहे का जी. तब से रुकने को कह रही हूं सुन ही नहीं रहे.’ मैंने बाइक सड़क किनारे रोक दी. वे उतर कर मुङो आने को कहते हुए खुद सब्जी की दुकान पर चली गयीं. मैं भी बेमन से पीछे-पीछे चल पड़ा. सब्जियां लेने के बाद जब हम चलने लगे, तो दुकानदार ने कहा- ‘भइया! आज धूप बहुत है, डॉक्टर प्याज ले लीजिए न.’ मैंने चौंक कर कहा, ‘डॉक्टर प्याज!’ सब्जी दुकानदार ने श्रीमतीजी की तरफ देखते हुए कहा, ‘क्या भइया आप डॉक्टर प्याज नहीं जानते? अरे इका पाकिट में रखने से लू-गरमी नहीं लगती है इसीलिए इसे डॉक्टर प्याज कहते हैं.’ हमने कहा भाई प्याज बेचने का आइडिया तुम्हारा अच्छा है. एकदम मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ जैसा. वह बोला, ‘हम सच में कहत हैं भइया. इ सफेद वाला प्याज जो आप देख रहे हैं न इसे पाकिट में रख कर कितना भी धूप में निकलिए कुछो नहीं होगा. जो जानत हैं इसके बारे में वो जरूर खरीदत हैं.’ मैंने कहा, ‘इतना ज्ञान देने के लिए शुक्रिया. पर हमें नहीं चाहिए. क्योंकि हमें पता है कि लू कैसे नहीं लगती.’ वह बोला, ‘कोई बात नहीं, आप मत लीजिए, वैसे हम तो आप ही के लिए कह रहे थे.’ चिलचिलाती धूप ने कम, उस सब्जीवाले ने मेरा पारा ज्यादा चढ़ा दिया था. मैंने श्रीमतीजी से कहा, ‘अगर मैं एक मिनट भी और यहां रुका, तो मुङो लू जरू र लग जायेगी. चलो यहां से.’ रास्ते भर मैं उस सब्जी वाले की बातों पर हंसता रहा.
उस सब्जीवाले की लू से बचके तो मैं घर आ गया, पर जिस तरह उसने मेरे प्रति भरी दुपहरी में लू को लेकर चिंता जतायी थी, उस चिंता ने मुङो चिंतित कर दिया. चिंता करना एक राष्ट्रीय समस्या बन गयी है. इस समस्या ने हर किसी को जकड़ रखा है. दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल इस चिंता में हैं कि मीडिया को कैसे काबू में किया जाये. कोई प्रधानमंत्री की विदेश यात्र की अधिकता से चिंतित है, तो कोई भाजपा को जिता कर चिंता के मारे अंदर ही अंदर घुट रहा है. कोई कांग्रेस की पतली हालत से दुखी है तथा उसके भविष्य की चिंता में चिंतित है. तो कई लोग जनता परिवार के एकीकरण को लेकर चिंतित हैं. चिंता एक स्वाभाविक गुण है. लेकिन, क्या हर समस्या का हल केवल चिंता ही है? कई लोग तो महज इस बात के लिए चिंतित हो जाते हैं कि आज उनके मोबाइल पर एक मिस्ड कॉल तक नहीं आया. कई लोग अत्यधिक फोन आने से चिंता के मारे डायबिटीज के मरीज बन जा रहे हैं. और तो और कई युवा मित्र अपने मोबाइल की बैटरी जल्द खत्म हो जाने की परेशानी से चिंतित हो उठते हैं. चिंताओं की कमी नहीं, बिना ढूंढ़े ही हजार मिलती हैं. बचके रहिएगा!
उस सब्जीवाले की लू से बचके तो मैं घर आ गया, पर जिस तरह उसने मेरे प्रति भरी दुपहरी में लू को लेकर चिंता जतायी थी, उस चिंता ने मुङो चिंतित कर दिया. चिंता करना एक राष्ट्रीय समस्या बन गयी है. इस समस्या ने हर किसी को जकड़ रखा है. दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल इस चिंता में हैं कि मीडिया को कैसे काबू में किया जाये. कोई प्रधानमंत्री की विदेश यात्र की अधिकता से चिंतित है, तो कोई भाजपा को जिता कर चिंता के मारे अंदर ही अंदर घुट रहा है. कोई कांग्रेस की पतली हालत से दुखी है तथा उसके भविष्य की चिंता में चिंतित है. तो कई लोग जनता परिवार के एकीकरण को लेकर चिंतित हैं. चिंता एक स्वाभाविक गुण है. लेकिन, क्या हर समस्या का हल केवल चिंता ही है? कई लोग तो महज इस बात के लिए चिंतित हो जाते हैं कि आज उनके मोबाइल पर एक मिस्ड कॉल तक नहीं आया. कई लोग अत्यधिक फोन आने से चिंता के मारे डायबिटीज के मरीज बन जा रहे हैं. और तो और कई युवा मित्र अपने मोबाइल की बैटरी जल्द खत्म हो जाने की परेशानी से चिंतित हो उठते हैं. चिंताओं की कमी नहीं, बिना ढूंढ़े ही हजार मिलती हैं. बचके रहिएगा!