आजकल सोशल साइटस-फेसबुक, चैटिंग और इंटरनेट को लेकर कई तरह की चिंताएं जताई जा रही हैं. क्या यह सच नहीं कि नयेपन को हमेशा ही संदेह भरी दृष्टि से देखा जाता है. इतिहास में झांक कर देखिये तो पता चलेगा कि रेलगाड़ी, महिलाओं की शिक्षा, फिल्मों और रेडियो सुनने तक पर कितना हंगामा हुआ. फिल्मी गाने सुनने वालों को बड़े-बुजुर्ग हिकारत भरी नजर से देखते थे. रेडियो और फिल्मों के प्रति आकर्षण जिनमें पैदा हो गई वे ‘नालायक पुत्र’ घोषित कर दिये जाते थे. पर जैसे ही टेलीविजन क्रांति आई मां-बाप पूरे परिवार के साथ बैठकर दूरदर्शन पर चित्रहार देखने लगे. बहुसंख्य परिवारों ने महाभारत और रामायण सीरियल में दिखाये गये अंतरंग दृश्यों को भी बड़े-बुजुर्गो और बच्चों के साथ श्रद्धाभाव से खूब देखा और वर्षो तक देखते रहे. कुछ उसी तरीके का डर इन दिनों न जाने कितने मां-बाप के मन में घर बना चुका है. यानि, उन्हें इस बात का डर सता रहा है कि इंटरनेट हमारे बच्चों को बिगाड़ रहा है. वह यह समझते हैं कि हमारे बच्चे इंटरनेट पर ईल सामग्री देख रहे हैं, नशीली सामग्री लेने के तरीके सीख रहे हैं. पर इंटरनेट के प्रादुर्भाव से पहले बच्चों को ईल पत्रिकाएं देखने से कितने मां-बाप रोक पाते थे? किशोरावस्था में सिगरेट पीने का रोमांच किसके अंदर नहीं पैदा हुआ? दरअसल, किशोरावस्था और युवावस्था के दौरान ऐसा दौर हर किसी की जिंदगी में आता है. हम सभी अपने अनुभवों से जानते हैं कि उम्र के साथ इस सबका आकर्षण भी स्वत: ही खत्म हो जाता है. यह सच है कि टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के दौरान विवेक की जरू रत होती है पर यह तो व्यक्ति के स्व विवेक से ही उपजता है. मैंने बचपन में अपने परिवार में चीटियों को चीनी देने, पक्षियों को दाना देने और गर्मियों में राहगीरों के लिए शीतल जल की व्यवस्था करने की परंपरा देखी है. मेरा ऐसा मानना है कि इसके पीछे उपकार करने या मृत्यु के बाद स्वर्ग जाने की लालसा नहीं, बल्कि अन्यान्य प्रजातियों पर मनुष्य की निर्भरता को स्वीकार करने का बोध ही रहा होगा. आज जब अपनी छह वर्षीया बेटी को गौरेयों के पीछे भागते और उनको दाना खिलाते देखता हूं तो अपना बचपन याद आता है. ॅ हम सभी को मालूम है कि मां-बाप ही बच्चे के पहले गुरु होते हैं. इसीलिए मां-बाप जन्म से बच्चों को संस्कारों की घुट्टी पिलाते हैं. अपने गलत कामों को बच्चों से छुपकर अंजाम देते हैं और न जाने क्या-क्या इंतजाम करते हैं. हमें उसे बचपन से ही सच को सच और झूठ को झूठ बताने की आदत डाल लेनी चाहिए ताकि जिंदगी में सबकुछ साफ-सुथरा रहे. यह तो सर्वविदित है कि आपको जिस काम के लिए रोका जाए उसे करने की इच्छा बलवती होती जाती है. तो नयी जेनरेशन और नयी टेक्नोलॉजी को फलने-फूलने दीजिए. उससे डरिये नहीं समङिाये.
सोमवार, 30 अप्रैल 2012
शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012
यह अँधा कानून है
मिस्र में पतियों को जल्द ही क़ानूनी तौर पर उनकी मृत पत्नियों के साथ सेक्स करने की इजाजत होगी- उनकी मौत के बाद 6 घंटे तक के लिए. यह विवादस्पद नया कानून उन उपायों का एक हिस्सा है जिसे इस्लामी-बहुल संसद द्वारा शुरू किया जा रहा है. नए कानून के तहत शादी की न्यूनतम उम्र को घटाकर 14 किया जायेगा और महिलाओं को मिलने वाले पढाई और रोजगार के अधिकारों को ख़त्म किया जायेगा.
गुरुवार, 26 अप्रैल 2012
गोया शादीशुदा होना कोई गुनाह हो
अहले सुबह ‘सात बजे’ मेरे एक अजीज मित्र का फोन आया. मैं गहरी नींद में था. मैं अभी ‘हेलो’ बोलता उससे पहले ही वह उधर से शुरू हो गया. बोला, तुमलोग क्या लट-पट खबर छापते रहते हो. सुबह-सुबह मूड खराब कर दिया.
अब तक मेरी समझ में कुछ भी नहीं आया था. कभी-कभार मिस्ड कॉल करने वाला बंदा आज इतना सुबह फोन कैसे कर दिया. और तो और गुस्सा इतना कि उसे यह भी याद नहीं कि कॉल लंबा हुआ जा रहा है. अब तक शायद उसके डेढ-पौने दो रुपये तो खर्च हो ही गये होंगे. मामला समझ से परे था. अब मेरे अंदर भय का प्रवेशीकरण हो चुका था. मैं यह तय मानने लगा था कि भईया आज तो मेरी खैर नहीं.
मैंने थोड़ा संभलते हुए पूछा ‘क्या बात हो गई?’
‘बात क्या होगी? तुम तो लंबी तान के सो रहे हो. अरे निक्कमे, खबर छापते वक्त यह भी सोचते हो कि इसका लोगों पर असर क्या होगा?’
मैंने पूछा, किस खबर की बात कर रहे हो भाई?
‘केंद्र सरकार के नये नियम के मुताबिक अब शादी का रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य होगा. यानि, अब शादी-विवाह भी सरकार से पूछ कर करना होगा. यह तो हद हो गई. जिस देश में शादी पहले से ही एक समस्या हो वहां इस पर इतना कायदे-कानून बनाना कहां तक व्यवहारिक है. तुमलोग इस बारे में भी कुछ छापोगे या नहीं?
मुङो तो अब अंदर ही अंदर हंसी आने लगी थी. मैंने खुद पर काफी कंट्रोल किया फिर भी मुंह से बरबस ही निकल गया ‘बस इतनी सी बात है. इसके लिए सुबह-सुबह नींद खराब कर दी.’
‘इतनी सी बात. यह तुम्हें इतनी सी बात लग रही है. अच्छा, मैं तो भूल ही गया था तुम्हारी तो शादी हो चुकी है न. तुम्हें क्या फर्क पड़ता है. भइल बियाह मोर करबे का. तुम तो यह भी भूल गये होगे कि मैंने तुम्हारी शादी में रू माल का बीन बनाकर धूल-मिट्टी की परवाह किये बगैर रोड पर लोट-लोट कर नागिन डांस किया था. कमबख्त मेरा सफेद सफारी सूट ऐसा गंदा हुआ कि ड्राई क्लीन वाला भी फादर-फादर कर गया पर दाग न गया. तुम्हें तो यह भी याद नहीं होगा कि मैंने अपने पिताजी की परवाह किये बगैर मेरे यार की शादी है गाने पर ऑरकेस्ट्रा वाली लड़की के साथ खुलेआम डांस किया था. खैर तुम यह सब क्यों याद रखोगे. बिना शादी के बैंड तो मेरी बज रही है न. तुम तो बस सोते रहो.’
मैं अब बचाव की मुद्रा में आ गया.‘भाई मेरे इतना मत भड़को. बात अगर नाचने की है तो मैं भी चिकनी चमेली और मुन्नी बदनाम गाने पर लोट-लोट कर नाचूंगा. शादी तो करो..’
बात अधूरी ही रह गयी क्योंकि मोबाइल डिस्चार्ज हो कर स्वीच ऑफ हो गया. मानो वह भी मेरे मित्र का फेवर कर रहा हो. गोया शादीशुदा होना कोई गुनाह हो.
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