चाहे तो शर्त लगा लीजिए, यह सोलह आना बंगले पर ‘नजर लगी’ होने का ही मामला है. जी हां! हम यूपीए सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे चौधरी अजित सिंह के बंगले की बात कर रहे हैं. वैसे नजर लगाने वालों का भी कसूर नहीं है. चौधरी साहब का बंगला है ही इतना ‘खास’ कि किसी की भी नजर लग जाए! वैसे तो लुटियन की दिल्ली में न जाने कितने बंगले हैं. सांसदों का बंगला, मंत्रियों का बंगला, अधिकारियों का बंगला, और तो और कई कर्मचारियों का बंगला भी. पर, हरेक बंगला इतना ‘टिकाऊ’ नहीं होता. यह मामूली बात नहीं है कि सरकार किसी भी पार्टी की रहे, मगर बंगले और मंत्रलय में बंदे का टिकाऊपन बरकरार रहे. पर इस लोकसभा चुनाव में गोटी सेट हो नहीं पायी. नतीजा यह हुआ कि चौधरी साहब के सरकारी बंगले पर किसी की नजर लग गयी. पहले तो बंगला खाली करने का नोटिस मिला. आनाकानी की तो प्रशासन ने बिजली-पानी काट दी. हालांकि ऐसा सिर्फ उनके साथ ही नहीं हुआ. अजित सिंह समेत जिन 30 पूर्व सांसदों के सरकारी घरों के बिजली-पानी के कनेक्शन काटे गये उनमें जीतेंद्र सिंह, मोहम्मद अजहरुद्दीन, बृजेंद्र सिंगला, पीसी चाको, अवतार सिंह भडाना, बीएल मरांडी और अर्जुन रॉय जैसे नाम शामिल हैं. अब चौधरी साहब बिना बिजली के तो रह नहीं सकते, इसीलिए किसानों के नेता ने बंगले को रोशन और ठंडा रखने के लिए एक जनरेटर किराये पर ले लिया. जेनरेटर का रोज का किराया था 4000 रुपये और डीजल खर्च 200 लीटर प्रतिदिन. आखिर ऐसा कब तक चलता. सो, दुखी मन से आखिरकार अजित सिंह ने सरकारी बंगले को खाली करना ही बेहतर समझा. जबरन बंगला खाली कराने की बात जाट समुदाय को नागवार गुजरी और इसका पूरजोर विरोध हुआ. अपनी बात दिल्ली तक पहुंचाने के लिए उन्होंने गाजियाबाद के मुरादनगर में पानी के रेगुलेटर पर कब्जा कर लिया. गंग नहर से जुड़े इसी रेगुलेटर से दिल्ली को पानी की सप्लाई की जाती है. अब चौधरी अजित सिंह इस सरकारी बंगले को हाथ से निकलते देख इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की मांग कर रहे हैं. यह बंगला 1978 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को आवंटित हुआ था. चौधरी अजित सिंह उन्हीं के पुत्र हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के जाट परिवार में 1902 में जन्म लेने वाले चौधरी चरण सिंह देश के चौथे प्रधानमंत्री थे, लेकिन वह इस पद पर महज पांच महीने और 17 दिन ही रह सके. दुर्भाग्य की बात यह है कि वह अकेले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने एक दिन भी लोकसभा का सामना नहीं किया. आज चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत उनके परिवार (पुत्र अजित सिंह और पौत्र जयंत चौधरी) तक सिमट कर रह गयी है. इस लोकसभा चुनाव में तो उनकी पार्टी रालोद का खाता तक नहीं खुला और खुद पिता-पुत्र भी हार गये.