गुरुवार, 30 जून 2011
हमें तो लूट लिया मिलके हुस्नवालों ने के गीतकार का निधन
अगर आप भी उनके बारे में कुछ कहना चाहतें हैं तो आपका स्वागत है.
शुक्रवार, 4 मार्च 2011
अरुंधति राय की न्यूड पेंटिंग
इन दिनों अरुंधति राय की एक न्यूड पेंटिंग चर्चा का विषय बनी हुई है। पेंटिंग में अरुंधति को अल कायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन और चीन के कम्युनिस्ट तानाशाह माओ के साथ दिखाया गया है। तस्वीर में अरुंधति को इन दोनों के बीच न्यूड दिखाया गया है। कला जगत के कुछ लोगों ने इसे पब्लिसिटी स्टंट करार दिया तो किसी ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बताया है। दरअसल युवा पेंटर प्रणव राय ने बुकर पुरस्कार विजेता अरुंधति राय की एक न्यूड पेंटिंग बनाई है। इस पेंटिंग में अरुंधति को अल कायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन और चीन के कम्युनिस्ट तानाशाह माओ के साथ दिखाया गया है। पेंटर प्रणव का कहना है कि उन्होंने ऐसा अरुंधति के प्रति विरोध जाहिर करने के लिए किया है। पेंटिंग को नाम ‘गॉडेस ऑफ फिफ्टीन मिनट्स ऑफ फेम’ यानि पंद्रह मिनट की प्रसिद्ध की देवी दिया गया है। अरुंधति की बुकर अवार्ड विजेता किताब ‘द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स’ और एंडी वारहोल के बयान ‘इन कमिंग टाइम एवरीबडी विल गेट फिफ्टीन मिनट्स ऑफ फेम’ को मिलाकर पेंटिंग का नाम ‘गॉडेस ऑफ फिफ्टीन मिनट्स ऑफ फेम’ दिया गया है।
प्रणव के मुताबिक अरुंधति पब्लिसिटी के लिए उन लोगों के हाथ की कठपुतली बनने को भी तैयार है जैसे एक मदारी बंदर को केले का लालच देकर नचाता है। कश्मीरी अलगाववादियों के समर्थन में अरुंधति का विवादित बयान भी पेंटिंग का विषय है। पेंटर अरुंधति के बेड पर ओसामा बिन लादेन को भी दिखाया है। प्रणव इससे पहले दाऊद इब्राहिम के साथ मशहूर पेंटर एमएफ हुसैन की न्यूड तस्वीर बनाकर विवादों में रह चुके हैं। अब उनकी अरुंधति की इस पेंटिंग पर बड़ी बहस शुरू हो गई है।
जाने-माने पेंटर अशोक भौमिक का कहना है कि इस तरह की पेंटिंग केवल चर्चा में बने रहने के लिए बनाई जाती है। लोग आजादी का गलत फायदा उठाते हैं। अगर एक कलाकार को किसी के खिलाफ कुछ कहना हो तो उसके और भी तरीके हैं। किसी भी महिला की न्यूड तस्वीर बनाकर विरोध करने का तरीका बिल्कुल गलत है। वहीं पेंटर किरण पुंडीर भी इसे केवल पब्लिसिटी स्टंट मानती हैं। उन्होंने कहा कि ये विरोध का तरीका सरासर गलत है, भारतीय समाज में इसकी कोई जगह नहीं है।
साथ ही उन लोगों पर भी सवालिया निशान लग गए हैं चर्चा में रहने के लिए अक्सर विवादित बयानों का सहारा लेते हैं। अरुंधति की न्यूड तस्वीर में एक तरफ माओ तो दूसरी तरफ ओसामा बैठा है। बेड पर बिखरे सिक्के भी कुछ इशारा कर रहे हैं। प्रणव राय का कहना है कि उन्होंने काफी सोच समझकर इस तस्वीर को तैयार किया है। प्रणव इसे अपना Socio-pop मेनिफेस्टो कहते हैं। लेकिन सवाल ये है कि क्या न्यूड पेंटिंग के जरिए विरोध प्रदर्शन को अभिव्यक्ति की आजादी कहा जा सकता है।
वहीं पब्लिसिटी के न्यूड गेम से मशहूर चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन को भी अलग करके नहीं देखा जा सकता। उनके द्वारा भी बनाई गई कई न्यूड तस्वीरें काफी विवादों में थीं।
IBN Khabar se sabhar.
शनिवार, 26 फ़रवरी 2011
अपनी बात
रौशनी से जगमग दुकाने मुझे परेशान करती हैं
मुझे परेशां करती है उन लोगों की बकबक
जो बोलना नहीं जानते
मै भीड़ नहीं बनना चाहता बाज़ार का
मैं ग्लैमर का चापलूस भी नहीं बनना चाहता
मुझे पसंद नहीं विस्फोटक ठहाके
मै दूर रहता हूँ पहले से तय फैसलों से
क्योंकि एकदिन गुजरा था मै भी लोगों के चहेते रास्ते से
और यह देखकर ठगा रह गया की
मेरा पसंदीदा व्यक्ति बदल चूका था
बदल चुकी थी उसकी प्राथमिकताएं
उसका नजरिया, उसके शब्द
उसका लिबास भी
लौट आया मैं चुपचाप
भरे मन से निराश होकर
तभी से अकेला ही अच्छा लगता है
अच्छा लगता दूर रहना ऐसे लोगों से
जिन्होंने अपना बदनुमा चेहरा छिपाने को
लगा रखा है सुन्दर सा मास्क।
गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011
आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री की हालत गंभीर
वर्ष 1916 में गया जिले के मैगरा गांव में जन्मे आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री ने अपने सृजनकाल में राधा, रुप-अरुप, तीर-तरंग, मेघगीत, कालिदास, कानन, अवंतिका, धूपतरी आदि जैसी कालजयी कृतियों का सृजन किया. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और नन्द दुलारे वाजपेयी के काफी करीब और उनके प्रिय कवियों में शामिल रहे शास्त्री जी का हिंदी साहित्य में महती योगदान है. आचार्य जी के निर्देशन में 100 से अधिक लोगों ने पीएचडी किया पर अधिकांश लोग उन्हें आज भूल चुके हैं. संस्कृत और हिंदी के प्रकांड विद्वान शास्त्री जी के आंगन में साहित्यकारों की कई पीढियों ने आश्रय पाया. उनके कई कनिस्ठों को उनसे बडा पुरस्कार-सम्मान मिल चुका है. दुर्भाग्य यह कि पद्मश्री, राजेंद्र शिखर सम्मान, भारत-भारती सम्मान और शिवपूजन सहाय जैसे प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कारों से नवाजे गए इस साहित्यकार की अमर रचनाओं, उपन्यासों और ग्रंथों को सहेजने वाला तक कोई नहीं है. दोनों दंपती बीमार हैं.
सोमवार, 21 फ़रवरी 2011
पत्रकारों की पत्नियाँ
रातों-दिन काम में जुटे बेपरवाह
ये आज के हिंदी पत्रकार
घर-बार की चिंताओं से परे
उन्मुक्त रूप से ठहाके लगाते हुए
अपनों से दूर कई दिनों से
लेकिन सबको अपनापन देते हुए
ये आज के हिंदी पत्रकार
वे तरस खाते हैं हर दुखी औरत पर
छापते हैं उसकी बड़ी सी तस्वीर
समझते हैं खुद को शोषितों की आवाज़
संवेदनाओं के साझीदार
पर उनके इस समूचे कार्य-व्यवहार से
नदारद है तो केवल इन पत्रकारों की पत्नियाँ
और उनके मुरझाये चेहरे
जिसने संभाल रखी है पूरी गृहस्थी
हाथों में सब्जी का थैला/बच्चों का स्कूल बैग
बिजली-पानी का बिल/ मेडिसिन की पर्ची
उनके मुरझाये चेहरे पर
अब असर नहीं करता कोई fair an lovely
पत्रकारों की पत्नियों को नहीं मालूम
मिस्र में हो गया है सत्ता परिवर्तन
अब यह आग दुसरे मुल्को में भी फ़ैल रही है
संसद में ख़त्म हो गया है जे पी सी पर गतिरोध
मलकानगिरी में नक्सली मांग रहे दो के बदले ७०० की रिहाई
कसाब कैसे बच सकता था फांसी से
वे तो इससे से भी बेखबर हैं की उनके इस अज्ञानता की
उड़ाई जा रही खिल्ली इस समय
पत्रकारों द्वारा शराब पीते हुए.
रविवार, 20 फ़रवरी 2011
मंहगाई और बारिश
शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011
मिस्र में आज़ादी की सुबह
इस सन्दर्भ में क्या आप कुछ और सोचते हैं?
रविवार, 16 जनवरी 2011
आप मीडिया से हैं या राडिया से?
राम बहादुर राय : पेड न्यूज़ से संस्थानों का स्वरूप बदला है। जो यह कह रहें हैं कि मंदी से बचने की खातिर संस्थानों को ऐसा करना पड़ रहा है, वे गलत हैं।
पुण्य प्रसून वाजपेयी : कीमत अब ब्रांड की है, न्यूज़ चैनेल भी ब्रांड बन गएँ हैं। उनके लिए पत्रकारिता मायने नहीं रखती।
दिलीप मंडल : अब वह पुरानी बात हो गयी कि मीडिया में छपने से किसी को कुछ असर पड़ता है। इस साल मीडिया का नया रूप लोगों ने देखा है। आगे यह और भयावह हो सकता है।
और भी बहुत कुछ पढ़ा जा सकता है पाखी के नए अंक में.
गुरुवार, 13 जनवरी 2011
शनिवार, 1 जनवरी 2011
नया साल मुबारक
दुष्यंत कुमार की कुछ पंक्तियाँ खास आपके लिए-
मरना लगा रहेगा यहाँ जी लीजिये,
ऐसा भी क्या परहेज, जरा सी पी लीजिये।
ये रोशनी का दर्द, ये सिहरन, ये आरजू,
ये चीज जिन्दगी में नहीं थी तो लीजिये।