भले ही ‘खास’ लोगों की नजर में आम आदमी यानी ‘मैंगो मैन’ की कोई औकात नहीं होती हो, पर मुङो लगता है कि ‘मैंगो मैन’ होना कोई आसान बात नहीं है. अब देखिए न! अपनी गाढ़ी कमाई और काफी जुगाड़-जतन से जो उसने कभी रसोई गैस का कनेक्शन लिया था, उसका पंजीकरण बचाने के लिए अनिवार्य किये गये केवाईसी फॉर्म भरने के बाद वह खुद को ऐसा गौरवान्वित महसूस करता है मानो उसने केबीसी (कौन बनेगा करोड़पति) का एंट्री फॉर्म भर दिया हो. फ्री में मिलने वाला केवाईसी फॉर्म भी वह बगल की फोटोकॉपी सेंटर से पांच रुपये में खुशी-खुशी खरीदता है. जब उसे पता चलता है कि इस फॉर्म पर तो फोटो भी चिपकाना है, तो उसकी बांछे खिल उठती हैं. हां भई! आखिरी फोटो उसने शादी में खिंचवाई थी, जो अब घर के किसी कोने में पड़े-पड़े रंग से बदरंग हो चुकी है. अब फोटो स्टूडियो वाले की अपनी मरजी. वह भी सिर्फ एक फोटो तो खींचेगा नहीं. बोला- देखो जी! तीस रुपये में तीन फोटो दूंगा.‘मैंगो मैन’ खुश हो गया. इसी बहाने दो फोटो एक्सट्रा हो जायेंगे.
छठ-दीपावली मनाने लोगबाग अपने-अपने घर आये हुए हैं. कोलकाता-मुंबई हो या दिल्ली. बिहार आने-जाने वाली सभी ट्रेनें ठसाठस भरी हुई हैं. वैसे यह कालजयी परंपरा है. क्योंकि ‘मैंगो मैन’ ट्रेन में रिजव्रेशन (आरक्षण) नहीं करवाता. भई! ट्रेन हुई सार्वजनिक संपत्ति. मतलब जितनी तेरी उतनी ही मेरी तो भला इसमें आरक्षण क्या करवाना? वैसे भी ट्रेनों में जब तक भीड़ न हो सफर का मजा अधूरा रह जाता है. और जिसने बर्थ आरक्षित करा ही रखी है, उसको ही कौन से मजे आ रहे हैं. वह बेचारा किनारे हो कर दुबक कर बैठा है. बिना टिकट वाला उसी की बर्थ पर सो रहा है. आखिर छठ मइया का ठेकुआ खाना इतना आसान थोड़े ही न है!
‘मैंगो मैन’ की अपनी कुछ खासियत होती है. उसे सपने भी भीड़भाड़ के ही आते हैं. जैसे राशन के लिए लाइन लगा कर खड़ा है. बीमार बच्चे के इलाज के लिए अस्पताल में अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहा है. रेलवे स्टेशन पर शौचालय का उपयोग करने के लिए सात लोगों के पीछे शांत हो कर पंक्तिबद्ध है..आदि-आदि. जब कोई ‘मैंगो मैन’ एक साथ इतनी जद्दोजहद कर रहा हो, तो वह भला खुद को स्विट्जरलैंड की वादियों में कटरीना कैफ के साथ गाना गाते हुए कैसे देख सकता है?
उसे तो सब्जी से लेकर शादी तक में सब्सिडी हासिल करने की लड़ाई लड़नी पड़ती है. घर से हजार-दो हजार किलोमीटर दूर रहनेवाला ‘मैंगो मैन’ ठेकुआ खाने के लिए छठ मइया के घाट पर नंगे पांव पहुंचता है. क्या यह खास बात नहीं है? इसीलिए ‘मैंगो मैन’ खास है.
सोमवार, 26 नवंबर 2012
बुधवार, 7 नवंबर 2012
बाजार के ताल पर नाचतीं कठपुतलियां
पिछले दस वर्षो के अधिकतर हिट या सुपरहिट बॉलीवुड गीतों को याद कीजिए. इनमें से अधिकतर (लगभग 99 फीसदी) महिला केंद्रित हैं. ये गीत महिलाओं की पीड़ा, समस्याओं, मुद्दों को उठाने के लिए नहीं, बल्कि पुरुष मानसिकता को रिझाने या उकसाने के लिए बनाये जाते हैं. सिर्फ गीत ही क्यों? तमाम तरह के विज्ञापनों पर गौर फरमाइए, तो तसवीर और भी साफ हो जायेगी.
18 अगेन..! बाजार में पेश यह नया उत्पाद है, उन महिलाओं के लिए है जो पच्चीस-तीस-पैंतीस या शायद उससेज्यादा उम्र की हो चुकी हैं. इस उत्पाद के प्रचार के लिए दो रूपकों का इस्तेमाल हो रहा है. पूरे पन्ने के अखबारी विज्ञापन में एक पूरा खिला गुलाब और (इसके इस्तेमाल के बाद) नीचे गुलाब की ‘सख्त’ कली. यह क्रीम पूरे खिले गुलाब को ‘कली’ बनाती है. टीवी पर इसके विज्ञापन में एक महिला गाती है- ‘आइ एम 18 अगेन, फीलिंग..अगेन.’ यह एक उदाहरण मात्र है कि बाजार किस तरह हमारी जिंदगी को नियंत्रित कर रहा है. प्रोडक्ट किस तरफ हमारे निजी रिश्तों की दशा-दिशा तय करने की कोशिश में लगे हैं. शायद ही इस बात से कोई इनकार करे कि आप टेलीविजन देखते समय अपने बच्चों को आसपास नहीं रखना चाहते. क्योंकि जब आप अपना पसंदीदा कार्यक्रम देख रहे होते हैं तो इस बात का सदैव खतरा बना रहता है कि पता नहीं कब आपके टीवी स्क्रीन पर कंडोम का कोई अश्लील विज्ञापन नमूदार हो जाये. न जाने कब कोई पुरुष मॉडल किसी मल्टीनेशनल कंपनी का परफ्यूम या डियोड्रेंट लगा कर दर्जन भर युवतियों या महिलाओं को अपनी ओर ‘आकर्षित’ करने का ‘करतब’ दिखाने लगे. ऐसे में खतरा यह बना रहता है कि अगर आपके बच्चे ने ऐसे किसी भी विज्ञापन को अगर गौर से देख लिया और आपसे जिज्ञासा भरा कोई सवाल पूछ दिया तो आप क्या करेंगे? दरअसल, आज हमारी जिंदगी में रहन-सहन, संस्कृति, बोल-चाल, पर्व-त्योहार, सुख-दु:ख, हंसी-खुशी सबकुछ बाजार नियंत्रित हो गया है.
अब देखिए न दीपावली आ गयी है यह आपको बाजार बता रहा है. भारी डिस्काउंट से लदे बड़े-बड़े होर्डिग, कई-कई पेजों के अखबारी विज्ञापन, टेलीविजन पर आकर्षक विज्ञापनों की भरमार यह सबकुछ आपके लिए है. आपको यह बताने के लिए कि आप खर्च करने को तैयार हो जाइए. अभी-अभी दुर्गापूजा खत्म हुई है. मार्केट में खरीदारों की भीड़ देख कर यह भरोसा ही नहीं होता कि ये वही लोग हैं जो रसोई गैस या डीजल-पेट्रोल की कीमत बढने से गृहस्थी के डांवाडोल होने का रोना रोते हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारा अब खुद पर नियंत्रण रहा ही नहीं. हम किसी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण की तरह हो गये हैं जिसे हर वह शख्स संचालित कर सकता है जिसके हाथ में रिमोट हो!
18 अगेन..! बाजार में पेश यह नया उत्पाद है, उन महिलाओं के लिए है जो पच्चीस-तीस-पैंतीस या शायद उससेज्यादा उम्र की हो चुकी हैं. इस उत्पाद के प्रचार के लिए दो रूपकों का इस्तेमाल हो रहा है. पूरे पन्ने के अखबारी विज्ञापन में एक पूरा खिला गुलाब और (इसके इस्तेमाल के बाद) नीचे गुलाब की ‘सख्त’ कली. यह क्रीम पूरे खिले गुलाब को ‘कली’ बनाती है. टीवी पर इसके विज्ञापन में एक महिला गाती है- ‘आइ एम 18 अगेन, फीलिंग..अगेन.’ यह एक उदाहरण मात्र है कि बाजार किस तरह हमारी जिंदगी को नियंत्रित कर रहा है. प्रोडक्ट किस तरफ हमारे निजी रिश्तों की दशा-दिशा तय करने की कोशिश में लगे हैं. शायद ही इस बात से कोई इनकार करे कि आप टेलीविजन देखते समय अपने बच्चों को आसपास नहीं रखना चाहते. क्योंकि जब आप अपना पसंदीदा कार्यक्रम देख रहे होते हैं तो इस बात का सदैव खतरा बना रहता है कि पता नहीं कब आपके टीवी स्क्रीन पर कंडोम का कोई अश्लील विज्ञापन नमूदार हो जाये. न जाने कब कोई पुरुष मॉडल किसी मल्टीनेशनल कंपनी का परफ्यूम या डियोड्रेंट लगा कर दर्जन भर युवतियों या महिलाओं को अपनी ओर ‘आकर्षित’ करने का ‘करतब’ दिखाने लगे. ऐसे में खतरा यह बना रहता है कि अगर आपके बच्चे ने ऐसे किसी भी विज्ञापन को अगर गौर से देख लिया और आपसे जिज्ञासा भरा कोई सवाल पूछ दिया तो आप क्या करेंगे? दरअसल, आज हमारी जिंदगी में रहन-सहन, संस्कृति, बोल-चाल, पर्व-त्योहार, सुख-दु:ख, हंसी-खुशी सबकुछ बाजार नियंत्रित हो गया है.
अब देखिए न दीपावली आ गयी है यह आपको बाजार बता रहा है. भारी डिस्काउंट से लदे बड़े-बड़े होर्डिग, कई-कई पेजों के अखबारी विज्ञापन, टेलीविजन पर आकर्षक विज्ञापनों की भरमार यह सबकुछ आपके लिए है. आपको यह बताने के लिए कि आप खर्च करने को तैयार हो जाइए. अभी-अभी दुर्गापूजा खत्म हुई है. मार्केट में खरीदारों की भीड़ देख कर यह भरोसा ही नहीं होता कि ये वही लोग हैं जो रसोई गैस या डीजल-पेट्रोल की कीमत बढने से गृहस्थी के डांवाडोल होने का रोना रोते हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारा अब खुद पर नियंत्रण रहा ही नहीं. हम किसी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण की तरह हो गये हैं जिसे हर वह शख्स संचालित कर सकता है जिसके हाथ में रिमोट हो!
रविवार, 4 नवंबर 2012
सक्सेस होना है तो इन छह किस्म के लोगों को बनाएं मित्र
यदि आप सक्सेस होना चाहते हैं तो अपनी मित्रमंडली में छह किस्म के लोगों को शामिल करें. विशेषज्ञों का दावा है कि आपकी मित्रमंडली में छह किस्म के लोग होने चाहिए.
1. जो आपसे ज्यादा ठंडे दिमाग का हो.
2. जो आपसे ज्यादा साहसी हो.
3. जो ऐसा शख्स हो जिसकी तरह आप बनना चाहते हों.
4. जो आपके बाकी किसी दोस्त के बारे में न जानता हो.
5. जो निहायत ही ईमानदार हो.
6. जिसे आप खुद से भी ज्यादा जानते हों.
हाल ही में मेलबर्न में किये गये एक रिसर्च के बाद द पॉजिटिविटी इंस्टीट्यूट के मनोवैज्ञानिक डॉ. सूजी ग्रीन ने बताया, विविधता होना बहुत जरुरी है और यह भी बहुत जरुरी है कि जब वक्त आए तो आपको अलग-अलग सोर्स से मदद मिल सके. ग्रीन का कहना है, ‘‘ऐसी चीजों से हम अपनी जिंदगी जिंदादिली से जीते हैं और हमारा नजरिया भी काफी अलग होता है. अलग-अलग तरह के दोस्त हमारी जिंदगी खुशियों से भर देते हैं.’’
1. जो आपसे ज्यादा ठंडे दिमाग का हो.
2. जो आपसे ज्यादा साहसी हो.
3. जो ऐसा शख्स हो जिसकी तरह आप बनना चाहते हों.
4. जो आपके बाकी किसी दोस्त के बारे में न जानता हो.
5. जो निहायत ही ईमानदार हो.
6. जिसे आप खुद से भी ज्यादा जानते हों.
हाल ही में मेलबर्न में किये गये एक रिसर्च के बाद द पॉजिटिविटी इंस्टीट्यूट के मनोवैज्ञानिक डॉ. सूजी ग्रीन ने बताया, विविधता होना बहुत जरुरी है और यह भी बहुत जरुरी है कि जब वक्त आए तो आपको अलग-अलग सोर्स से मदद मिल सके. ग्रीन का कहना है, ‘‘ऐसी चीजों से हम अपनी जिंदगी जिंदादिली से जीते हैं और हमारा नजरिया भी काफी अलग होता है. अलग-अलग तरह के दोस्त हमारी जिंदगी खुशियों से भर देते हैं.’’
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