रविवार, 3 मई 2009

असफल पिता?

गांधीजी में एक द्वैधता थी, क्‍योंकि वे स्‍नेही पिता और महान तथा दुर्धष करिश्‍माई नेता होने की भूमिका साथ-साथ निभाना चाहते थे। उन्‍होंने चारों बेटों (हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास ) में अपनी ही छवि देखी और समझ नहीं पाये कि हरिलाल हरिलाल थे और मणिलाल मणिलाल। वे चाहते भी तो मोहनदास की प्रति-छवि नहीं बन सकते थे।

इसमें कोई संदेह नहीं कि उनकी संतान उन्‍हें 'पुराने करार के देवता' के रुप में देखते थे, जो आग उगलता था। उनकी पौत्री सीता धुपेलिया अपने चाचा हरिलाल को 'दयालू और भद्र व्‍यक्ति' मानती थीं,‍ जिन्‍हें बापू ने बिल्‍कुल तोडकर रख दिया था। वे यह लक्ष्‍य करने में भी नहीं चूकीं कि उनके माता-पिता सुशीला और मणि को अपने दिन 'बंदी की तरह' गुजारने पडे। उनके बेटे निश्‍चय ही सामान्‍य मनुष्‍य बनने के लिए छटपटा रहे होंगे, लेकिन गांधीजी उन्‍हें लघु संत बनाना चाहते थे।

गांधीजी को 1911 में ही एहसास हो गया था कि बच्‍चे उनसे प्‍यार करने से अधिक डरते हैं। उनके बेटों में दबाए जाने की भावना थी। एक उल्‍लेखनीय स्‍वीकारोक्ति में उन्‍होंने यह माना भी था-'पता नहीं, मुझमें क्‍या दोष है। कहते हैं मुझमें एक प्रकार की निष्‍ठुरता है, ऐसी कि मुझे खुश करने के लिए लोग चाहे जो करने के लिए यहां तक कि असंभव को भी संभव बनाने की कोशिश करने के लिए, खुद को मजबूर करते हैं। उनके राजनीतिक गुरु गोपालकृष्‍ण गोखले उन्‍हें कठोर और बिल्‍कुल बेमुरौवत मानते थे, जो दूसरों को अपने रास्‍ते पर लाने के लिए धौंस से काम लेता था। राष्‍ट्रीय लक्ष्‍य की प्राप्ति के लिए संघर्ष करने को कटिबद्ध और अपने कर्त्‍तव्‍य से प्रतिफलित तरह-तरह की अन्‍य प्रवृतियों में मग्‍न गांधीजी को अपने बच्‍चों को समझने का काफी समय नहीं मिला। क्‍या राष्‍ट्रपिता, उनके अपने ही पैमाने से देखें तो, अपनी संतान को संभालने में लडखडा गए?

यह अंश गिरजा कुमार लिखित Brahmcharya Gandhi and His Women Associates नामक पुस्‍तक से साभार है। इस पुस्‍तक का हिंदी अनुवाद विटास्‍टा पब्‍िलिशंग प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्‍ली ने महात्‍मा गांधी और उनकी महिला मित्र शीर्षक से प्रकाशित किया है। मित्रों जिन लोगों ने इस पुस्‍तक का अंग्रेजी या हिंदी वर्जन पढा है उनके लिए पुनर्स्‍मरण के तौर पर और जो अभी तक नहीं पढ पाये हैं उन्‍हें पढने को प्रेरित करने के उद़देश्‍य से इस पुस्‍तक के कुछ चुनिंदा अंश प्रस्‍तुत किए जा रहे हैं।

3 टिप्‍पणियां:

  1. It takes a man of great conviction to choose someone else over his family. Even the greatest of leaders have tried to pass on their legacy to their children. But not Gandhi. He made a strong effort to make sure his legacy was not passed on to his children. It was an effort I believe, to ensure that nothing would sully his good name.

    I think Gandhi knew what he stood for, and he could not bear to see any blemish on that. That is why he would not do anything that would lessen his message in any manner.

    Do you have any original thoughts on Gandhi or are you going to steal passages from a book and put them here?

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  2. ऐसा ही मैं अपने बारे में पाता हूं। मेरी पत्नीजी का विचार है कि मैने अपने बच्चों से इतनी अपेक्षायें पालीं, इतना सही बनाने का यत्न किया कि बहुत गैप आ गया मुझमें और उनमें।
    बच्चों में हम अपना अपने बाद का भविष्य देखते हैं और बहुत डिमाण्डिंग हो जाते हैं। बापू भी ऐसा ही कर रहे थे!

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