मंगलवार, 8 मई 2012

चिंतित हूं कि मेरे पास कोई चिंता नहीं है

थोबड़ापोथी (फेसबुक) के सभी मुरीदों को मेरा हार्दिक अभिवादन. मित्रों! कई लोग मुझ अनामदास से नाराज हैं क्योंकि इससे उन्हें मेरे सरनेम का अंदाजा लगाने में मुश्किल हो रही है. ऐसे लोगों को मैं कबीर काका की याद दिलाते हुए कहना चाहूंगा, ‘जात न पूछो साधु की.’ मेरे अनुसार तो इसका अभिप्राय यह कि जिसकी कोई जाति नहीं होती, वह साधु होता है. यह तो सभी जानते हैं कि साधुओं की कोई जाति नहीं होती. पर इसका अभिप्राय आप यह कतई न लगायें कि मैं साधु हूं. अब छोड़िए भी, मैं कहां इस ‘धर्मसंकट’ में फंस गया.

दरअसल, मैं यहां इसलिए अवतरित हुआ हूं कि आप सभी से अपनी परेशानी बांट सकूं. परेशानी यह है कि इन दिनों मुङो एक चिंता खाये जा रही है. चिंता यह है कि मुङो कोई चिंता ही नहीं होती, जबकि कई लोग हमेशा चिंता में डूबे रहते हैं. चुनाव हो रहा हो तो चिंता, नहीं हो रहा तो चिंता. चुनाव में हार गये तो चिंता, जीत गये तो चिंता. प्रत्याशी का नमा तय करना हो तो चिंता, प्रत्याशी का नाम तय न हो रहा तो चिंता. किरपा बरसे तो चिंता, किरपा बरसाने वाले पर धन बरसे तो चिंता. अन्ना हजारे अनशन पर बैठें तो चिंता, न बैठें तो भी चिंता. किसी पार्टी के बड़बोले प्रवक्ता उल्टा-सीधा बयान दें तो चिंता, कई महीने मौन साधे रखें तो चिंता. बारिश हो तो चिंता, बारिश न हो तो चिंता. मंत्री महोदय कुछ न करें तो चिंता और कुछ ‘कर’ दें तो और भी चिंता.

चिंता होने या न होने का मामला केवल बाहरी नहीं है, यह भीतर तक समाया हुआ है. तभी तो मैं अंदर से चिंतित होना चाहता हूं लेकिन हो नहीं पाता. पता है क्यूं? क्योंकि मेरी चिंता की वजह खुद ही चिंतित रहती है. वजह एक नहीं कई. बच्च स्कूल जाये तो चिंता, न जाये तो चिंता. शोरगुल मचाये तो चिंता, चुप रहे तो भी चिंता. मुङो ऑफिस में देर हो जाये तो चिंता और किसी दिन अगर ऑफिस न गया तो चिंता. खाने की तारीफ कर दूं तो चिंता, कुछ न बोलूं तो चिंता. अपने माता-पिता की बात करूं तो चिंता, ससुराल की बात करूं तो चिंता. थोड़ा ठीक-ठाक होकर घर से निकलूं तो चिंता, फटीचर बना घर में आलसी की तरह पड़ा रहूं तो भी चिंता.

मैं चिंता के इतने आयाम देख चुका हूं कि चिंता मुङो देख कर दूर से ही प्रणाम करने लगती है. अब भला आप ही बताइए इस रचना में मैंने इतनी चिंताएं गिनायीं, आप चिंतित हुए क्या? इसलिए मैं थोबड़ापोथी (फेसबुक) के मित्रों से गुजारिश करता हूं कि नाम, उपनाम और पदनाम में क्या रखा है, भावनाओं को समङिाए. ‘भावना’ अच्छी हो तो ‘किरपा’ अपने आप आयेगी. भावनाओं का ‘समागम’ कीजिए. बरफी, गोलगप्पे, समोसा, हरी चटनी, लाल चटनी, खीर और बताशे को बतकही की मलाई में लपेट कर ‘भक्तों’ पर ‘न्योछावर’ कर दीजिए. देखिये चारो तरफ से बा-बा की पुकार सुनायी देगी.

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