गुरुवार, 2 अगस्त 2012

खाली ‘तरकश’ से मेडल नहीं मिला करते

ओलिंपिक के लिए जाने से पहले से भारतीय तीरंदाजों को लेकर बड़े-बड़े दावे किए गए थे. पर वे उन्हें हकीकत में बदलने में पूरी तरह नाकाम रहे. इससे ज्यादा शर्मनाक क्या हो सकता है कि जिन स्टार खिलाड़ियों से गोल्ड की उम्मीद की जा रही थी, वे क्वालिफाई करने में भी नाकाम रहे. हमारे खिलाड़ियों के लिए जब खेल से ज्यादा अपने हित महत्वपूर्ण होने लगें, जिम्मेदारी व अनुशासन का कोई दायरा उन्हें बांध न सके, तो फिर भला जीत की उम्मीद कैसे की जा सकती है? जीत मिल गई, तो अपनी ताकत की वजह से कम, सामने वाले की कमजोरी से अधिक.

अतिआत्मविश्वास ने डूबोया

भारतीय तीरंदाजी टीम ने लंदन ओलिंपिक में करोड़ों खेल प्रेमियों को जिस तरह से निराशा किया है वह निंदनीय है. क्वालिफाइंग राउंड से ही खासकर महिला तीरंदाजों में न तो एकाग्रता नजर आई और न ही वह कूबत जिसकी उम्मीद भारतवासी कर रहे थे. हमारे सभी
धुरंधरतीरंदाज अपने प्रतिद्वंदियों के सामने ढेर होते नजर आए. सबसे ज्यादा निराश किया महिला तीरंदाजों ने. उसमें भी लोग दीपिका से कुछ ज्यादा ही दुखी हैं, क्योंकि वह तो दुनिया की नंबर एक तीरंदाज हैं. यह खिताब ओलिंपिक में जाने से कुछ दिन पूर्व ही उन्हें हासिल हुआ था. अफसोस कि दीपिका ने उसकी गरिमा को बरकरार नहीं रखा. आत्मविश्वास तो ठीक है, लेकिन अतिआत्मविश्वास ने दीपिका को डूबो दिया. ओलिंपिक के लिए रवाना होने से पूर्व दीपिका ने कहा था ओलिंपिक कोई भूत नहीं है, जिससे डर लगेगा.अब शायद उन्हें यह अहसास भली भांति हो गया होगा कि ओलिंपिक क्या बला है. जीत का दंभ भरने और जीतने में फर्क भी उन्हें मालूम हो गया होगा. उन्हें यह भी मालूम हो गया होगा कि ओलिंपिक का मेडल पाने के लिए लक्ष्य भेदना पड़ता है सही निशाना लगाना पड़ता है. इसके लिए तीरंदाज के तरकश में कैसा तीरहोना चाहिए. भारतीय तीरंदाजों का तरकशतो खाली था, उन्हें भला मेडल कैसे मिलता? यह सवाल वे जब खुद से करेंगे तो इसका जवाब उन्हें खुद-ब-खुद मिल जाएगा कि क्या उनके तरकश में संकल्प का तीर था, मनोबल का तीर था, एकाग्रता का तीर था, जोश का तीर था. जवाब है नहीं.

ले डूबा अहंकार

काश, भारतीय खिलाड़ी थोड़ा और ज्यादा प्रेशर ङोलने का माद्दा रखते, तो आज ओलिंपिक मेडल लिस्ट में भारत के नाम के आगे लिखे मेडल की संख्या कुछ ज्यादा होती. काश, हमारे तीरंदाज अपनी अभ्यास को और धार देते और एकाग्रता को बनाये रखते तो आज कुछ और बात होती.

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