बुधवार, 6 मार्च 2013

यह तो मीना कुमारी कॉम्प्लेक्स है जनाब!


निर्माता-निर्देशक विशाल भारद्वाज की चर्चित फिल्म ‘मटरू की बिजली का मंडोला’ में नायक  नायिका को कहता है ‘तुङो मीना कुमारी कॉम्प्लेक्स है.’ नायिका सवाल करती है ‘कैसे?’ नायक बताता है ‘तुम दुखी रहकर खुश रहती हो.’ यह बात भले ही एक मुहावरे की तरह फिल्म में इस्तेमाल हुई हो पर अगर हम गौर करें तो हमारे आसपास कई लोग ऐसे नजर आते हैं जिन्हें सच में मीना कुमारी कॉम्प्लेक्स है. अच्छे खासे लोग, जिन्हें न रोजी-रोटी की चिंता है न घर-परिवार की. न पाने की खुशी है न खोने का गम. जिंदगी की हर सुख-सुविधाएं  हासिल हैं, फिर भी वे मुकेश के दर्द भरे नगमे सुनना पसंद करते हैं. भारतीय प्रशासनिक सेवा से सेवानिवृत्त एक अधिकारी के यहां एक दिन जाना हुआ. पहुंचा तो म्यूजिक की हल्की आवाज कमरे के बाहर तक आ रही थी ‘जब दिल ही टूट गया तो जीकर क्या करें’ मैं ठिठक गया. गार्ड ने बताया कि घबराइये नहीं. यह रूटीन का हिस्सा है. मैंने पूछा ‘सर आप यह गीत?’ बोले ‘बस यूं ही. अच्छा लगता है.’
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि हाल ही में संपन्न राजधानी दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी ‘मीना कुमारी कॉम्प्लेक्स’ का बोलबाला  रहा. वजह थे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी. पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह से लेकर वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज तक हर कोई नरेंद्र मोदी का मुरीद नजर आया. मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को जब भाषण देने का मौका मिला तो उन्होंने अपनी उपलब्धियों को मोदी की उपलब्धियों के बराबर दिखाने की कोशिश की. हद तो तब हो गयी जब पार्टी के भूतपूर्व पीएम-इन-वेटिंग लालकृष्ण आडवाणी के दिल का दर्द उनके भाषण में छलक आया ‘मुङो नरेंद्र मोदी से जलन होती है. वे इतने प्रखर वक्ता हैं कि उनके बोलने के बाद किसी को बोलने के लिए कुछ बचता ही नहीं है.’ ऐसी ही बात उन्होंने सुषमा स्वराज के लिए भी कही ‘जब मैं अटल बिहारी वाजपेयी के साथ जनसंघ में काम करता था, तो उनकी प्रखर भाषण शैली के कारण जनसभाओं में बोलने से कतराता था. आज सुषमा स्वराज भी अपने ओजस्वी विचारों से मेरे अंदर कॉम्प्लेक्स पैदा करती हैं.’
मनोविज्ञान में खुद को पीड़ा देकर आनंद पाने को ‘मैसोचिस्म’ कहते हैं. आपने शायद गौर किया हो, बीजेपी के हर बड़े आयोजनों में आडवाणी जी अक्सर आंखों में आंसू लिये देखे जाते हैं. कोई उनकी प्रशंसा कर दे तो आंसू, किसी ने पुरानी यादें ताजा कर दी तो आंसू. आप कहेंगे यह तो खुशी के आंसू हैं. जी हां जनाब!  सही फरमा रहे हैं आप. यह खुशी के ही आंसू हैं. पर यह आंसू ही उनके अंदर का ‘मीना कुमारी कांम्प्लेक्स’ उजागर करता है.

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