रविवार, 3 जुलाई 2016

यादों की तितलियां

मीडिया की नौकरी में अमूमन इतवार नहीं होता. यह दिन भी सामान्य दिनों की तरह ही होता है. फिर भी जाने क्यों, इतवार आते ही खुद पर एतबार बढ़ जाता है. इसलिए मेरे लिए इतवार का दिन एतबार का दिन होता है. आशी (बेटी) को स्कूल नहीं जाना होता, सो मेरे इस पूरे एक दिन पर जैसे वह अपना हक मानती है. न खेलकूद, न पढ़ाई. हर वक्त मेरे आसपास तितली की तरह उड़ती-मंडराती रहती है. आज सुबह से हो रही अनवरत बारिश के बीच अलसायी सुबह कब बीत गयी थी और दोपहर सिर पर कब आ गया पता ही नहीं चला. प्याज के पकौड़े और चाय की चुस्कियों के बीच अचानक माहौल नॉस्टैल्जिक हो गया. एक फोटो एलबम को पलटते हुए आशी बार-बार कभी हम दोनों तो कभी उस एलबम के फोटो को देख रही थी.
उसने अपनी मम्मी से कहा-
तुम पहले कितनी सुंदर थी न.
सब चुप थे...
थोड़ी देर बाद...
पापा, तुम पहले अजीब लगते थे...!
अब अच्छे लगते हो.
मैंने कहा- मतलब?
देखो, कहते हुए उसने एलबम मुझे दे दिया. दरअसल, वो जो एलबम देख रही थी, उसमें मेरे कॉलेज के समय की तसवीरें थीं. कुछ शादी के तुरंत बाद की भी. एलबम पलटते हुए मैं भी पुरानी यादों में खो गया. बाहर बारिश हो रही थी. कभी धीमी, कभी तेज. रंग-बिरंगी तितलियों का एक समुह खिड़की के रास्ते कमरे में दाखिल हो चुका था. आशी तितलियों को पकड़ने की चेष्टा में मग्न हो गयी.

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (09-07-2016) को  "आया है चौमास" (चर्चा अंक-2398)     पर भी होगी। 
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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