मेरे दरवाजे की सांकल
मेरे पैरों की बिवाई
मेरे घिसे हुए चप्पल
मेरे अधूरे पड़े खत
मेरे कांपते हुए होठ
मेरी फटी हुई लिहाफ
सब मुझसे नफरत करते हैं
सच कहूं तो-
सिवाय तुम्हारे
कोई नहीं करता मुझसे प्रेम
मैं एक ठहरा हुआ समय हूं
अधूरे पड़े किसी मीनार की तरह
जिसे किसी शहंशाह ने
यूं ही छोड़ दिया
अपनी बेगम की याद में
तुम्हें बुरा तो नहीं लगा
मेरे बारे में जानकर
अगर हां तो-
माफ कर देना मुझे
क्योंकि सच तो यही है!
मेरे पैरों की बिवाई
मेरे घिसे हुए चप्पल
मेरे अधूरे पड़े खत
मेरे कांपते हुए होठ
मेरी फटी हुई लिहाफ
सब मुझसे नफरत करते हैं
सच कहूं तो-
सिवाय तुम्हारे
कोई नहीं करता मुझसे प्रेम
मैं एक ठहरा हुआ समय हूं
अधूरे पड़े किसी मीनार की तरह
जिसे किसी शहंशाह ने
यूं ही छोड़ दिया
अपनी बेगम की याद में
तुम्हें बुरा तो नहीं लगा
मेरे बारे में जानकर
अगर हां तो-
माफ कर देना मुझे
क्योंकि सच तो यही है!
Amazing or I can say this is a remarkable article.
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