शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

अपनी बात

मैं अक्सर निकल जाता हूँ भीडभाड गलियों से
रौशनी से जगमग दुकाने मुझे परेशान करती हैं
मुझे परेशां करती है उन लोगों की बकबक
जो बोलना नहीं जानते

मै भीड़ नहीं बनना चाहता बाज़ार का
मैं ग्लैमर का चापलूस भी नहीं बनना चाहता
मुझे पसंद नहीं विस्फोटक ठहाके
मै दूर रहता हूँ पहले से तय फैसलों से

क्योंकि एकदिन गुजरा था मै भी लोगों के चहेते रास्ते से
और यह देखकर ठगा रह गया की
मेरा पसंदीदा व्यक्ति बदल चूका था
बदल चुकी थी उसकी प्राथमिकताएं
उसका नजरिया, उसके शब्द
उसका लिबास भी

लौट आया मैं चुपचाप
भरे मन से निराश होकर
तभी से अकेला ही अच्छा लगता है
अच्छा लगता दूर रहना ऐसे लोगों से
जिन्होंने अपना बदनुमा चेहरा छिपाने को
लगा रखा है सुन्दर सा मास्क।

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री की हालत गंभीर

हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार महाकवि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री पेट और ह्रदय के रोग से ग्रस्त होकर बिहार के मुजफ्‌फरपुर मेडिकल अस्पताल में सप्‌ताह भर से भरती हैं. 96 वर्षीय यह वयोवृद्ध साहित्यकार आज उपेक्षा का शिकार है. सरकार को कौन कहे खुद साहित्य बिरादरी के लोग भी आज शास्त्री जी का हालचाल जानने की जहमत नहीं उठा रहे. दवा और उचित चिकित्सा का अभाव झेल रहा यह महान शख्सियत आर्थिक अभाव से भी जूझ रहा है.
वर्ष 1916 में गया जिले के मैगरा गांव में जन्मे आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री ने अपने सृजनकाल में राधा, रुप-अरुप, तीर-तरंग, मेघगीत, कालिदास, कानन, अवंतिका, धूपतरी आदि जैसी कालजयी कृतियों का सृजन किया. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और नन्द दुलारे वाजपेयी के काफी करीब और उनके प्रिय कवियों में शामिल रहे शास्त्री जी का हिंदी साहित्य में महती योगदान है. आचार्य जी के निर्देशन में 100 से अधिक लोगों ने पीएचडी किया पर अधिकांश लोग उन्हें आज भूल चुके हैं. संस्कृत और हिंदी के प्रकांड विद्वान शास्त्री जी के आंगन में साहित्यकारों की कई पीढियों ने आश्रय पाया. उनके कई कनिस्ठों को उनसे बडा पुरस्कार-सम्मान मिल चुका है. दुर्भाग्य यह कि पद्मश्री, राजेंद्र शिखर सम्मान, भारत-भारती सम्मान और शिवपूजन सहाय जैसे प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कारों से नवाजे गए इस साहित्यकार की अमर रचनाओं, उपन्यासों और ग्रंथों को सहेजने वाला तक कोई नहीं है. दोनों दंपती बीमार हैं.

सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

पत्रकारों की पत्नियाँ

समाज सुधार का संकल्प लिए
रातों-दिन काम में जुटे बेपरवाह
ये आज के हिंदी पत्रकार
घर-बार की चिंताओं से परे
उन्मुक्त रूप से ठहाके लगाते हुए
अपनों से दूर कई दिनों से
लेकिन सबको अपनापन देते हुए
ये आज के हिंदी पत्रकार
वे तरस खाते हैं हर दुखी औरत पर
छापते हैं उसकी बड़ी सी तस्वीर
समझते हैं खुद को शोषितों की आवाज़
संवेदनाओं के साझीदार
पर उनके इस समूचे कार्य-व्यवहार से
नदारद है तो केवल इन पत्रकारों की पत्नियाँ
और उनके मुरझाये चेहरे
जिसने संभाल रखी है पूरी गृहस्थी
हाथों में सब्जी का थैला/बच्चों का स्कूल बैग
बिजली-पानी का बिल/ मेडिसिन की पर्ची
उनके मुरझाये चेहरे पर
अब असर नहीं करता कोई fair an lovely
पत्रकारों की पत्नियों को नहीं मालूम
मिस्र में हो गया है सत्ता परिवर्तन
अब यह आग दुसरे मुल्को में भी फ़ैल रही है
संसद में ख़त्म हो गया है जे पी सी पर गतिरोध
मलकानगिरी में नक्सली मांग रहे दो के बदले ७०० की रिहाई
कसाब कैसे बच सकता था फांसी से
वे तो इससे से भी बेखबर हैं की उनके इस अज्ञानता की
उड़ाई जा रही खिल्ली इस समय
पत्रकारों द्वारा शराब पीते हुए.

रविवार, 20 फ़रवरी 2011

मंहगाई और बारिश

दोस्तों जमशेदपुर में कल से ही हलकी-हलकी बारिश हो रही है। मौसम काफी सुहाना सा हो रहा है। मेरे मन में एक भींगा-भींगा सा ख्याल आ रहा है- मंहगाई ने आग लगा रखा ज़माने में, अब कुछ रखा नहीं कमाने में.

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

मिस्र में आज़ादी की सुबह

मिस्र में तानाशाह शासक हुस्नी मुबारक का इस्तीफा। यह एक एहसास की सुबह लाने वाली घटना है। इस बात की आस कि अवाम की आवाज़ को संगीनों के बल पर खामोश नहीं किया जा सकता। इस घटना ने यह बात साबित कर दिया है कि अवाम की आवाज़ में सचमुच बहुत ताक़त होती है। इस बात को दुनिया के तमाम हुक्मरानों को समझ लेना चाहिए। मिस्र के तहरीर चौक पर १८ दिनों तक चली जनक्रांति ने पूरी दुनिया में एक नूतन सन्देश दे दिया है। इस मुल्क में परिवर्तन के बाद यहाँ के लोगों की तकलीफें कम होती है या नहीं, यह तो आने वाला वक़्त ही बताएगा पर हाँ मिस्र ने दुनिया के तमाम पीड़ित लोगों को अपने सपने को जिन्दा बचाए रखने की शक्ति तो दे ही दी है।
इस सन्दर्भ में क्या आप कुछ और सोचते हैं?

रविवार, 16 जनवरी 2011

आप मीडिया से हैं या राडिया से?

राडिया प्रकरण ने भारतीय राजनीति को कितना शर्मसार किया है यह बाद की बात है लेकिन इसने मीडिया की विश्वसनीयता को कठघरे में जरुर खड़ा क़र दिया है। युवा पीढ़ी ने जिन बरखा दत्त, वीर सांघवी को अपना आइकॉन मान मीडिया जगत में कदम रखा है उसमें किरचें आ गयी हैं। मीडिया जगत में अन्दर और बाहर तमाम तरह की बहश जारी है। साहित्य की प्रतिष्ठित पत्रिका पाखी ने भी अपने जनवरी अंक में इसी विषय पर एक सार्थक बहश प्रकाशित की है। जिसमें राम बहादुर राय, पुण्य प्रसून वाजपेयी, दिलीप मंडल जैसे कईनामी गिरामी पत्रकारों ने लिखा है. उसके कुछ चुनिन्दा अंश:
राम बहादुर राय : पेड न्यूज़ से संस्थानों का स्वरूप बदला है। जो यह कह रहें हैं कि मंदी से बचने की खातिर संस्थानों को ऐसा करना पड़ रहा है, वे गलत हैं।
पुण्य प्रसून वाजपेयी : कीमत अब ब्रांड की है, न्यूज़ चैनेल भी ब्रांड बन गएँ हैं। उनके लिए पत्रकारिता मायने नहीं रखती।
दिलीप मंडल : अब वह पुरानी बात हो गयी कि मीडिया में छपने से किसी को कुछ असर पड़ता है। इस साल मीडिया का नया रूप लोगों ने देखा है। आगे यह और भयावह हो सकता है।
और भी बहुत कुछ पढ़ा जा सकता है पाखी के नए अंक में.

गुरुवार, 13 जनवरी 2011

शनिवार, 1 जनवरी 2011

नया साल मुबारक

नया वर्ष सभी को शुभ हो।
दुष्यंत कुमार की कुछ पंक्तियाँ खास आपके लिए-

मरना लगा रहेगा यहाँ जी लीजिये,
ऐसा भी क्या परहेज, जरा सी पी लीजिये।
ये रोशनी का दर्द, ये सिहरन, ये आरजू,
ये चीज जिन्दगी में नहीं थी तो लीजिये।

गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

जोहार दोस्तों

दोस्तों जोहार.
मेरठ से जमशेदपुर आ गया हूं. झारखंड की औधोगिक राजधानी. उर्फ टाटानगरी. यहां आकर और प्रभात खबर से जुड़कर अच्‌छा लग रहा है. आपन माटी, आपन बोली, आपन लोग. खुश हूं.
कुछ-कुछ अंतर है मेरठ और जमशेदपुर में. बोली-विचार, रहन-सहन, खान-पान. हर चीज थोड़ा अलग सा है यहां. यहां की पत्रकारिता का कल्चर भी वहां से काफी अलग है. कुछ अलग सीखने और समझने का अवसर मिल रहा है.
एक बात जो अब तक समझ में आई है वह यह कि मेरठ के बारे में मशहूर है- यह अलग मिजाज का शहर है जरा फासले से मिला करो. जबकि जमशेदपुर में मुझे लगता है कि हर कोई आपसे मिलना चाहता है, आपके बारे में जानना चाहता है, अपने बारे में बताना चाहता है-दिल खोलकर. है न कितना कुछ अंतर दोनों शहरों में.
मेरा आशय मेरठ को कमतर दिखाने या बताने का कतई नहीं है. मेरठ ने मुझे काफी कुछ दिया है. वहां मैंने जिंदगी और कैरियर के महत्वपूर्ण वर्ष बिताये हैं. आज भी वहां मेरे कई करीबी और अजीज दोस्त हैं जिनसे बात किये बिना मुझे चैन नहीं मिलता. मेरठ के गुड़ और गजक की मिठास के साथ-साथ वहां की मीठी यादें भी मेरे साथ सदा ही रहेगी. फिलहाल तो जमशेदपुर में लिट्टी-चोखा और चना-चबेना का स्वाद ले रहा हूं. अपनों के साथ-सपनों के साथ. फिलहाल इतना ही...

मंगलवार, 21 जुलाई 2009

उम्र मुठी में ऐसे आती है

पहले पहल जापानी सभ्‍यता पर पश्चिम का प्रभाव सिर चढकर बोला था लेकिन हिरोशिमा और नागासाकी के हादसे के बाद जापान ने अपनी परंपराएं खुद गढी हैं। उन्‍हीं में शामिल है स्‍वस्‍थ दिनचर्या। जापान में या तो फास्‍ट ट्रेनें चलती हैं या लोग पैदल चलते हैं।

जापानी लोग अपने दिन की शुरुआत बडे ही सलीके से करते हैं। एक्टिव लाइफस्‍टाइल यहां के लोगों के सोने में भी है और जागने में भी। दिन का शुभारंभ दैनिक कार्यों से निवृत होने के बाद पैदल चलने से होता है। कामकाजी लोग रेलवे स्‍टेशन तक और बुजुर्ग बागों की ओर पैदल निकल पडते हैं। जापान में फर्क नहीं पडता कि कंपनी का सीइओ ट्रेन से जा रहा है और चपरासी कार से आफ‍िस पहुंच रहा है। धुन के पक्‍के यहां के लोग पैदल चलने में जरा भी शर्म महसूस नहीं करते।

जापान के लोगों के काम करने का ढंग इतना व्‍यवस्थित और त्रुटिरहित है कि आज दुनिया के कई देशों और मशहूर कंपनियों ने जापानी माडल को अपनाया है। एक समान यूनीफार्म पहनना, हर लक्ष्‍य को जोश के साथ समय से पहले पूरा करने की कोशिश जापानी विशेषताएं हैं। कम खाने, कम बोलने और कम सोने में उसका भरोसा है।

जीने के लिए खाना - जापान के लोग खाने के लिए कम और जीने के लिए ज्‍यादा खाते हैं। वे खाने में स्‍वाद के बजाय सेहत ज्‍यादा ढूंढते हैं। खाने में कच्‍चापन जापान की विशेषता है। वे तले-गले और मसालेदार खाने से परहेज करते हैं। ज्‍यादा जीना है तो कम खाओ जापानी लोगों के व्‍यवहार का सबल पक्ष है। उनकी सक्रियता और स्‍फूर्ति का भी यही राज है कि वे उतना ही खाते हैं जितना शरीर की जरुरत है। जीभ की जरुरत के हिसाब से खाना जापान में ठीक नहीं माना जाता।

पशुओं के मांस से परहेज - मांसाहार और महंगे और गरिष्‍ठ रेड मीट के बजाय ताजा और मछली खाना जापानियों की सेहतमंदी का खास राज है। वे मछली को ज्‍यादा पकाने या मसालों में लपेटने के बजाय उसे कच्‍चा व कम पकाकर खाते हैं।

औषधीय उलांग चाय - जापानियों के
खान-पान और सेहतमंदी का सबसे खास राज है उलांग चाय। यह हरी चाय है जो चीन और जापान में सेहत के लिए बेहद अच्‍छी मानी जाती है। इसे ठंडे और गर्म पेय के रूप में पिया जाता है। यह पाचन तंत्र के लिए भी अच्‍छी होती है।


ये कुछ ऐसी बाते हैं जिससे हम भी प्रेरणा ले सकते हैं और अपनी जिंदगी को खुशहाल और स्‍वस्‍थ बना सकते हैं।