गुरुवार, 22 मई 2014

अरुण यह मोदीमय देश हमारा..!

चुनाव का शोर थम गया है. प्रचंड बहुमत हासिल करके भाजपा नरेंद्र मोदी की अगुवाई में केंद्र में सरकार बनाने की तैयारी में है. वक्त जरा ठहरा हुआ सा लगता है. सभी पार्टियां और प्रत्याशी जीत-हार की समीक्षा में जुटे हैं. कई इस्तीफा दे चुके हैं, कई इस्तीफा देने वाले हैं और कई से इस्तीफा मांगा जा रहा है. वाराणसी में जन्मे हिंदी के पुरोधा कवि जयशंकर प्रसाद की वर्षो पूर्व लिखित यह पंक्तियां बरबस ही याद आ रही हैं- अरु ण यह मधुमय देश हमारा/ जहां पहुंच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा. यह कविता याद आने की दो वजहें हैं- एक तो कवि वाराणसी का है, दूसरा कि हर जगह राष्ट्रीय गौरव और भारत माता की बात हो रही है.  पूरे चुनावी परिदृश्य पर अगर आप गौर करें तो इस बार के चुनाव का केंद्र बिंदु नयी दिल्ली नहीं, बल्कि वाराणसी रहा. जितनी चर्चा नयी दिल्ली की नहीं हुई, उससे अधिक वाराणसी की हुई.  इन सबके बीच खुद नरेंद्र मोदी भी वड़ोदरा के बजाय वाराणसी में हुई अपनी जीत को ज्यादा अहमियत दे रहे हैं. तो क्या आज अगर महाकवि जयशंकर प्रसाद जीवित होते तो इन पंक्तियों को कुछ इस तरह लिखते- अरुण (जेटली) यह मोदीमय देश हमारा/ जहां पहुंच अनजान क्षितिज को मिलता एक सहारा.
पूरा देश मोदीमय हुआ पड़ा है. इंदौर के एक दंपती ने अपने जुड़वा बच्चों का नाम ‘नरेंद्र’ और ‘मोदी’ रख दिया, तो एक मोदी फैन ने अपनी दीवानगी की पराकाष्ठा दिखाते हुए अपनी किडनी समते कई अंग दान कर दिये. कई तो सिर और बाजुओं पर मोदी नाम का टैटू बनवाये घूम रहे हैं. यहां तक तो बात समझ में आती है पर अब जरा आगे की कहानी सुनिये. कई चाय दुकानों पर मोदी नाम से ‘स्पेशल चाय’ बिक रही है. जिसकी कीमत भी ‘स्पेशल’ है. मोदी नाम से चप्पल, टोपियां, टी शर्ट समेत अन्य कपड़े और न जाने कितने और प्रोडक्ट बाजार में आने की तैयारी में हैं. अब भला ऐसी दीवानगी में क्या बुराई है? इसमें तो फायदा ही फायदा है. नाम का नाम और दाम का दाम. अर्थशास्त्री ठीक ही कहते हैं ‘बाजार से ज्यादा धूर्त और मतलबपरस्त कोई नहीं है.’ आज मोदी नाम का शोर है तो सब इसको भुनाने में जुट गये हैं. चाहे वह बाजार हो या राजनेता. मुंबई की एक महिला फैशन डिजाइनर साई सुमन ने तो मोदी के शपथग्रहण समारोह के लिए जोधपुरी सूट तैयार किया है जिसमें बिना बांह वाले दो जैकेट हैं. इसमें हस्तशिल्प वाले बटन भी हैं और भाजपा का चुनाव चिह्न् भी बना हुआ है.
  नरेंद्र मोदी और वाराणसी की चर्चा हो तो आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल का स्मरण भी आवश्यक है. निश्चित ही जयशंकर प्रसाद अपनी इन पंक्तियों को अरविंद केजरीवाल को समर्पित करते- आह! वेदना मिली विदाई/मैंने भ्रमवश जीवन संचित/ मधुकरियों की भीख लुटाई.

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