शुक्रवार, 4 मार्च 2011

अरुंधति राय की न्यूड पेंटिंग

इन दिनों अरुंधति राय की एक न्यूड पेंटिंग चर्चा का विषय बनी हुई है। पेंटिंग में अरुंधति को अल कायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन और चीन के कम्युनिस्ट तानाशाह माओ के साथ दिखाया गया है। तस्वीर में अरुंधति को इन दोनों के बीच न्यूड दिखाया गया है। कला जगत के कुछ लोगों ने इसे पब्लिसिटी स्टंट करार दिया तो किसी ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बताया है। दरअसल युवा पेंटर प्रणव राय ने बुकर पुरस्कार विजेता अरुंधति राय की एक न्यूड पेंटिंग बनाई है। इस पेंटिंग में अरुंधति को अल कायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन और चीन के कम्युनिस्ट तानाशाह माओ के साथ दिखाया गया है। पेंटर प्रणव का कहना है कि उन्होंने ऐसा अरुंधति के प्रति विरोध जाहिर करने के लिए किया है। पेंटिंग को नाम ‘गॉडेस ऑफ फिफ्टीन मिनट्स ऑफ फेम’ यानि पंद्रह मिनट की प्रसिद्ध की देवी दिया गया है। अरुंधति की बुकर अवार्ड विजेता किताब ‘द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स’ और एंडी वारहोल के बयान ‘इन कमिंग टाइम एवरीबडी विल गेट फिफ्टीन मिनट्स ऑफ फेम’ को मिलाकर पेंटिंग का नाम ‘गॉडेस ऑफ फिफ्टीन मिनट्स ऑफ फेम’ दिया गया है।

प्रणव के मुताबिक अरुंधति पब्लिसिटी के लिए उन लोगों के हाथ की कठपुतली बनने को भी तैयार है जैसे एक मदारी बंदर को केले का लालच देकर नचाता है। कश्मीरी अलगाववादियों के समर्थन में अरुंधति का विवादित बयान भी पेंटिंग का विषय है। पेंटर अरुंधति के बेड पर ओसामा बिन लादेन को भी दिखाया है। प्रणव इससे पहले दाऊद इब्राहिम के साथ मशहूर पेंटर एमएफ हुसैन की न्यूड तस्वीर बनाकर विवादों में रह चुके हैं। अब उनकी अरुंधति की इस पेंटिंग पर बड़ी बहस शुरू हो गई है।

जाने-माने पेंटर अशोक भौमिक का कहना है कि इस तरह की पेंटिंग केवल चर्चा में बने रहने के लिए बनाई जाती है। लोग आजादी का गलत फायदा उठाते हैं। अगर एक कलाकार को किसी के खिलाफ कुछ कहना हो तो उसके और भी तरीके हैं। किसी भी महिला की न्यूड तस्वीर बनाकर विरोध करने का तरीका बिल्कुल गलत है। वहीं पेंटर किरण पुंडीर भी इसे केवल पब्लिसिटी स्टंट मानती हैं। उन्होंने कहा कि ये विरोध का तरीका सरासर गलत है, भारतीय समाज में इसकी कोई जगह नहीं है।

साथ ही उन लोगों पर भी सवालिया निशान लग गए हैं चर्चा में रहने के लिए अक्सर विवादित बयानों का सहारा लेते हैं। अरुंधति की न्यूड तस्वीर में एक तरफ माओ तो दूसरी तरफ ओसामा बैठा है। बेड पर बिखरे सिक्के भी कुछ इशारा कर रहे हैं। प्रणव राय का कहना है कि उन्होंने काफी सोच समझकर इस तस्वीर को तैयार किया है। प्रणव इसे अपना Socio-pop मेनिफेस्टो कहते हैं। लेकिन सवाल ये है कि क्या न्यूड पेंटिंग के जरिए विरोध प्रदर्शन को अभिव्यक्ति की आजादी कहा जा सकता है।

वहीं पब्लिसिटी के न्यूड गेम से मशहूर चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन को भी अलग करके नहीं देखा जा सकता। उनके द्वारा भी बनाई गई कई न्यूड तस्वीरें काफी विवादों में थीं।

IBN Khabar se sabhar.