बुधवार, 28 जनवरी 2015

गोरेपन की देवी को एक सांवली लड़की का खत

निखरे-निखरे रूप, दमकती त्वचा और लंबे काले-घने जुल्फों वाली ‘गोरेपन की देवी’ आपको एक सांवली लड़की की तरफ से बार-बार प्रणाम है. आप ये कहती/चाहती हैं कि आपका क्रीम लगा कर समस्त जहान की लड़कियां गोरी-सुंदर दिखने लगेंगी/लगें. आपके इस दावे में कितना दम है, मैं यह तो नहीं जानती और न ही जानने में कोई रुचि है पर टीवी और अखबार में आपकी सुंदर सी तसवीर देख कर मेरे जैसी सांवली लड़कियों के माता-पिता पर क्या गुजरती है यह आपने कभी सोचा है? इस देश में आज भी अधिकांश माता-पिता लड़की के जन्म लेते ही उसकी शादी और दहेज की चिंता में असमय बूढ़े हो जाते हैं. अगर लड़की सांवली या काली हुई तब तो वे उसे खुद के लिए कोई दैवीय प्रकोप ही मान लेते हैं. क्योंकि अखबारों या वेबसाइटों पर शादी के लिए दिये गये विज्ञापन इस बात के उदाहरण हैं, जिनमें ‘फेयरनेस’ और ‘ब्यूटीफुल’ के बाद ही दूसरी विशेषताओं का स्थान आता है. क्या सांवली लड़कियां सुंदर नहीं होती?  हे गोरेपन की देवी! मैं आपको बार-बार नमन करती हूं. वैसे तो आप ‘अंतर-यामी’ हैं फिर भी मैं अपने मन की कुलबुलाहटों को आप तक पहुंचाना चाहती हूं. आखिर ऐसा क्यूं है कि  किसी लड़की का सांवला या गोरा होना उसके वजूद से जुड़ जाता है. क्यों कोई उस लड़की के अंतर्मन की सुंदरता को नहीं देख पाता. क्यों कोई जाने-माने शायर कैफी आजमी की तरह नहीं कहता ‘सांवला होना ठीक है और काला होना सचमुच में सुंदर है.’ क्यों अभिभावक अपनी बच्चियों को ‘बार्बी डॉल’ की जगह सांवली या काली गुड़िया तोहफे में नहीं देते.  हे गोरेपन की देवी! आप मेरी यह अज्ञानता दूर करें कि क्या गोरी लड़कियां ज्यादा प्रतिभावान होती हैं. या वे अपने माता-पिता, जीवनसाथी और ससुराल वालों को ज्यादा सम्मान देती हैं. आप ग्लैमर जगत की मोहतरमा हैं आपको तो मालूम ही होगा कि शबाना आजमी, काजोल, रानी मुखर्जी और नंदिता दास का रंग गोरा नहीं था. क्या वे अपने समय की कमजोर शख्सीयत हैं? तो फिर क्यों हमें विज्ञापनों के माध्यमों से यह बताने की कोशिश की जाती है कि फलां क्र ीम लगा कर या किसी खास साबुन से नहा कर गोरा और सुंदर बना जा सकता है और ‘जो सुंदर है, वही सफल है.’ क्यों लड़कियों के मन में पहले कुंठा पैदा की जाती है और फिर इसी कुंठा को भुनाते हुए गोरेपन को उनके सामने ‘पावर’ या हथियार की तरह पेश किया जाता है. तमाम सौंदर्य प्रतियोगिताएं भी इसीलिए आयोजित की जाती हैं कि लड़कियों को यह अहसास कराया जाए कि खूबसूरत दिखना बेहद जरूरी है. हे गोरेपन की देवी! कोई ऐसी क्रीम क्यों नहीं बनायी जाती जिससे लोगों का मन-मस्तिष्क साफ हो सके और उनकी दूषित मानसिकता में बदलाव हो. ताकि इस समाज में सांवली/गोरी सभी लड़कियां शुकून से जी सकें. - एक दुखियारी सांवली लड़की.

बुधवार, 14 जनवरी 2015

पापा, हम लोग कवन जात हैं?

जब हम पैदा हुआ रहा, हमको अपना जात-धरम कुछो मालूम नहीं रहा. मास्टर जी जब हाजिरी बनावत रहें, उ समय सभन लक्ष्कन के किसिम-किसिम का नाम पुकारें.. सिंह, ठाकुर, पांडेय, मांझी, महतो, प्रसाद, हुसैन, अहमद.. हम तो कनफुजिया ही गये. बाप रे बाप.. इ सब का है? सुबह-सुबह कवनो चाय पीने समय हमरे घर आता तो दादी उके अलग बरतन में चाय भिजवातीं. हमरा दिमाग चकरा जाता कि अलग-अलग बरतन काहे? दादी बहुत प्यार करत रहीं हमका. उनही से एक दिन मालूम पड़ा कि हमन के जात पंडित है.. दूसरे जात का छूआ हमनी के खाइल बरजित रहे. हम अभियो नाहीं समझ पावत रहीं कि आखिर दूसर जात का होत है और इके पहचानत कइसे हैं. हम जब कुछ बड़ा हुवै तो हमैं हिस्टरी में बड़ा इंटेरेस्ट आवै लगा. हिस्टरी में हम पढ़ा कि मुसलमान लोग अपने लिए अलग पाकिस्तान बनवाया. हम सोचा कि हमरा दोस्त अनवर फिर हियां कैसे रह गया. एक दिन हम अनवर से पूछ बैठा, ‘‘जब मुसलमान लोग अपने लिए पाकिस्तान बनाया तब तुम पाकिस्तान काहे नहीं गया.’’ अनवरवा हमरा मुंह ताकता रहा, बोला कुछो नहीं. हम उके लेके ओकरे घर गये. उइके अब्बा से इहे बतिया फिर पूछे तो मुस्कराने लगे.. हमरा हाथ पकड़ के बोले- ‘‘पाकिस्तान कइसे जाते बेटवा, हमै तो यहीं की धरती प्यारी है. पाकिस्तान तौ जिन्ना बनाए हैं बेटवा, उन्हें गवर्नर जनरल बनै का रहा. हमें तो यहीं किसानी करना मंजूर रहा बेटवा.’’ नौकरी करने मेरठ पहुंचे तो हुआं भी गड़बड़झाला देखै का पड़ा. हुआं एगो तिवारी जी मिले. उ हमको ढेरे दिन तक भूमिहार समझत रहें. एही चक्कर में ढेरे बार उ हमरे कान में फुसफसा के पंडित लोगन के बुराई करत रहें. एगो दोसर दोस्त ने हमसे कहा कि आप इन्हैं बताते काहे नाहीं कि आप कौन हैं. हम कहा- ‘‘जे जऊन कहता है कहन दो, हम काहे अपना एनर्जी सबका समझावै मां भेस्ट करैं.’’ एइके बाद हम इत्मीनान से रह रहे थे. जमशेदपुर आये भी कई साल होई गवा. सोचे अब सब ठीक.. तभी एक दिन चौथी क्लास में पढ़ रही हमरी बेटी ने हमसे पूछ लिया कि हम लोग कवन जात हैं? सवाल सुन के हम उके टुकुर-टुकुर देखन लगे.. हमारी सिरीमतीजी ने उससे पूछा- ‘‘काहे, तुम इ सवाल काहे कर रही आज?’’ उ बोली- ‘‘मेरी एक दोस्त ने पूछा है.’’ फिर सिरीमतीजी हमरा मुंह देखन लगीं. हमरे दिमाग में उथल-पुलथ मच गया.. मोहन भागवत जी कहत हैं कि जवन भी हिंदुस्तान में पैदा हुआ है ऊ सब हिंदू है, अऊर ओवैसी जी कहत हैं कि हर केऊ मुसलिम पैदा होता है. एक जगह हम पढ़ा हूं कि वेद में लिखा है कि हर केऊ शूद्र पैदा होता है अऊर संस्कार से आदमी अलग-अलग वर्ण वाला होय जाता है.. एगो निहोरा है : हम सब अपने लक्ष्कन के का सिखाईं..हमही का तय करे दो नो भागवतो/ओवैसियो!