बुधवार, 29 अप्रैल 2009

बापू का दुखी दांपत्‍य

आम धारणा है कि महात्‍मा गांधी और कस्‍तूरबा आंधी एक आदर्श और असाधारण दंपती थे, लेनिक वस्‍तुत: वे भारत की किसी भी साधारण विवाहित इकाई की तरह ही थे। उनके 62 साल के विवाहित जीवन में सामान्‍य उतार-चढाव आते रहे। आरं‍भिक वर्ष तनावों, झगडों, गलतफहमियों और लगभग संबंध-विच्‍छेद की नौबतों से भरे हुए थे। एक-दूसरे को प्‍यार करने वाले दंपती के रूप में नकी सार्वजनिक छवि सही थी, लेकिन यह उनके विवाहित जीवन के अंतिम चरण की स्थिति थी। अपने विवाहित जीवन के आरंभ में ही कस्‍तूरबा ( बा) को अपने सहज क्रोधी पति से कुछ कहने-सुनने की निरर्थकता का भान हो गया था। एक करिश्‍माई नेता की छत्र-छाया में जीने की उनकी नियति का यह कठोर सच था।
गांधी दंपती 1883 में परिणय-सूत्र में बंधा। पहली संतान हरिलाल का जन्‍म 1884 में हुआ। 1888 में यूनाइटेड किंगडम रवाना हो गये और बैरिस्‍टर बनकर 1891 में लौटे। उनकी विदेशी शिक्षा को कस्‍तूरबा ने अपने दहेज की वस्‍तुएं बेचकर संभव बनाया था। 1924 में गांधीजी को महात्‍मा की उपाधि मिली। लेकिन इस उपलिब्‍ध के लिए एक भारी कीमत चुकानी पडी उनके परिवार को। बा और उनके चार बेटे महात्‍माजी के सामुदायिक जीवन-पद़धति के प्रयोगों के विषय बनकर रह गए। ‍दक्षिण अफ्रीका में पैर जमाते ही गांधीजी ने परिवार को अपने पूर्व निर्धारित सामाजिक सिद़धांतों और व्‍यवहारों के खांचे में ढालने का एकतरफा फैसला कर लिया। उन्‍हें अपनी पत्‍नी बा बौदि़ध बहस-मुबाहसों के दायरे में प्रवेश करने लायक नहीं लगीं। वे अक्‍सर यूरोपीय सहयोगियों की पत्‍िनयों से उनके फर्क का जिक्र करते रहते थे। पति-पत्‍नी के इच्‍छाओं के टकराव की यह घटना जो 1897 की है -


चूं-चपड पसंद नहीं था
गांधीजी के दफ़तर के मुंशी उन्‍हीं के घर रहते थे। वे उनके साथ अपने घर के सदस्‍य की तरह व्‍यवहार करते थे। पानी की व्‍यवस्‍था न होने के कारण मल-पात्रों को बाहर सफाई करने के लिए ले जाना पडता था। यही नियम परिवार असली सदस्‍यों पर लागू होता था। गांधीजी ने अपने एक पत्र में इसके बारे में जो लिखा है वह शब्‍दश: इस प्रकार है - बा को यह बर्दाश्‍त नहीं था कि उन पात्रों को मैं साफ करूं। हाथ में मल का पात्र लिये जीने से उतरती हुई वह मुझे धिक्‍कार रही है और उसकी क्रोध से लाल आंखों से आंसू की बूंदें निकल कर उसके गालों तक आ रही है यह दृश्‍य में आज भी याद कर सकता हूं।
गांधीजी बा से दिये गये काम को बिना किसी चूं-चपड के पूरा करने की अपेक्षा रखते थे। बा इससे इनकार करती थीं और उन पर फट पडती थीं: रखो अपना घर-बार अपने पास और मुझे जाने दो।
बा के इस अप्रत्‍याशित प्रतिक्रियात्‍मक वाक्‍य पर गांधीजी विचलित होते हुए गरजे : भगवान के लिए अपने आपे में रहो और गेट बंद कर दो। लोगों को इस तरह तमाशा होते नहीं देखने दो।


बेमेल दांपत्‍य
14 अप्रैल 1914 को गांधीजी ने कैलनबैक को जो पत्र लिखा उसमें बा के प्रति कैसी अनुदारता दिखाई आप भी देखिये : उसमें देवता और दानव अपने अति प्रबल रूप में उपस्थित हैं। कल उसने एक जहरीली बात कही। मैंने नरमी से लेकिन फटकारते हुए उससे कहा कि तुम्‍हारे विचार पापमय हैं, तुम्‍हारे रोग का कारण भी मुख्‍य रुप से तुम्‍हारे पाप ही हैं। बस, इस पर वह चीखने-चिल्‍लाने लगी। कहा कि मुझे मारने के लिए ही तुमने मुझसे सारा अच्‍छा खाना छुडवाया, तुम मुझसे उब गए हो और चाहते हो कि मैं मर जाउं। तुम नाग हो नाग। मैंने ऐसी जहरीली स्‍त्री दूसरी नहीं देखी।

यह पत्र किसी मनोविश्‍लेषक के लिए बडे काम की चीज होगा। साधारण मनुष्‍य के लिए यह किसी बारुदी सुरंग पर पैर रख देने के समान है। यह गांधी और बा के बीच की विषमता का स्‍पष्‍ट संकेत है। साथ ही यह अलग-अलग बौदि़धक स्‍तरों पर काम करते दंपती के बेमेलपन की ओर भी इशारा करता है। सभी विवाहों का मर्म सामंजस्‍य है। जब तक बा झुकती रहीं, सब कुछ ठीकठाक था। आखिरकार उन्‍हें बहुत लंबे समय से कोंचा जा रहा था। उनका बत्‍तीस वर्षों का पूरा विवाहित जीवन एकतरफा स्‍पर्धा रहा था। कुल मिलाकर बा की उपेक्षा और अवहेलना की जाती रही थी। बा ने गांधीजी को पोलक जैसी महिलाओं के साथ, जिनमें शारीरिक आकर्षण ज्‍यादा था, अन्‍यत्र सहज व्‍यवहार करते देखा था। उन्‍होंने अपमानित महसूस किया होगा। जारी-----


यह अंश गिरजा कुमार लिखित Brahmcharya Gandhi and His Women Associates नामक पुस्‍तक से साभार है। इस पुस्‍तक का हिंदी अनुवाद विटास्‍टा पब्‍िलिशंग प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्‍ली ने महात्‍मा गांधी और उनकी महिला मित्र शीर्षक से प्रकाशित किया है। मित्रों जिन लोगों ने इस पुस्‍तक का अंग्रेजी या हिंदी वर्जन पढा है उनके लिए पुनर्स्‍मरण के तौर पर और जो अभी तक नहीं पढ पाये हैं उन्‍हें पढने को प्रेरित करने के उद़देश्‍य से इस पुस्‍तक के कुछ चुनिंदा अंश प्रस्‍तुत किए जा रहे हैं।

मंगलवार, 28 अप्रैल 2009

वीर्यपात और गंदे सपनों से विचलित हो उठते थे बापू

ब्रह़मचर्य के प्रयोग की हठधर्मिता और इसके साइड इफेक्‍ट से बवंडर खडा हो गया जिसके कारण गांधीजी का पूरा परिवार अशांत हो चुका था। बिनोबा भावे, काका कालेलकर और नरहरि पारिख जैसे उनके घनिष्‍ठ सहयोगियों ने विरोध-स्‍वरूप हरिजन के संपादक मंडल से त्‍यागपत्र दे दिया। इनमें से कई ने उनके ब्रह़मचर्य के प्रयोग को अधर्म कहा, कई ने इसे शीघ्र रोक देने की सलाह दी। जयप्रकाश नारायण, जीवराज मेहता, आचार्य कृपलानी, निर्मल कुमार बोस आदि ने गांधीजी के खिलाफ घोर असहमति दर्ज करायी। इतना ही नहीं गांधीजी की कई नजदीकी महिला मित्रों ने भी उन्‍हें अपने चुने हए रास्‍ते का त्‍याग कर देने के लिए समझाया। आश्रम के बाहर-भीतर अब तक यह बात फैल चुकी थी। कई तत्‍कालीन पत्र-पत्रिकाओं में यह सुर्खियां भी बनी। पर सबसे संयमित रहे जवाहरलाल नेहरू। उन्‍होंने इस मामले में खुद को एकदम अलग रखा। लेकिन अपनी प्रिजन डायरी की 30 अप्रैल 1935 की प्रविष्टि में उन्‍होंने एक अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण बात कही, जो बापू के चरित्र-चित्रण के प्ररिप्रेक्ष्‍य में बिल्‍कुल निशाने पर लगने वाले तीर की तरह थी- बापू भी या तो असहयोगी हैं या पूर्ण असहयोगी। उनकी सोच केवल अतिवादी ही होती है। इस सबने बापू को थका दिया। वे टूट गये। साबरमती अब उनके लिए दूसरा घर नहीं रह गया था। अनुभव का भव्‍य महल ढह गया था। उन्‍होंने अपने एक सहयोगी को पत्र लिखकर अपनी इस पीडा का वर्णन किया- भगवान ही जानता होगा कि अब मैं फ‍िर कहां फेंक दिया जाने वाला हूं।

सामान्‍य वैवाहिक या दाम्‍पत्‍य संबंध गांधीजी की दृष्टि में निषिद़ध थे। इस सबका उद़देश्‍य जीवनदायिनी वीर्य की रक्षा करना था। उसका कभी उपयोग नहीं करना था। वे वीर्य को ईश्‍वर का वरदान मानते थे, जिसे हर हालत में परिरक्षित, भंडारित और सुरक्षित रखना था। हालांकि चिकित्‍सा शास्‍त्र इस बात को बकवास बताता है। गांधीजी को इस बात से बहुत चिंता होती थी कि अनजाने ही उनका वीर्यपात हो जाता था। अनजाने में हुए वीर्यपात और गंदे सपनों की चर्चा उन्‍होंने कई बार अपने राजदार महिला मित्रों से की। वे इस बात से बहुत दुखी थे कि 60 और 70 के पार की उम्रों में इस तरह उनका वीर्य-स्‍खलन हुआ। इस तरह के प्रसंग सामान्‍य और स्‍वस्‍थ व्‍यक्ति के जीवन में होते ही रहते हैं लेकिन गांधीजी के लिए यह उनके ब्रह़मचर्य के अभ्‍यास में रह गए दोष का परिचायक था। ज्‍यादा काम करने से पक्षाघात से पीडित हो जाने के बाद गांधीजी को मुंबई जाना पडा। वहां आराम ही आराम था। वहां उन्‍होंने एक दारुण अनुभव किया। इसका जिक्र उन्‍होंने अपनी मित्र प्रेमाबहन कंटक से किया। गांधीजी ने उनसे स्‍वीकार किया कि - मेरा स्‍खलन हो गया, लेकिन मैं जगा हुआ था और मेरा मन मेरे नियंत्रण में था। बाद में उन्‍होंने इसे अनिश्चित दुर्घटना बताते हुए उसे अनिश्चित स्‍खलन कहा। उन्‍होंने प्रेमाबहन को लिखे पत्र में बताया कि अनिश्चित स्‍खलन उन्‍हें हमेशा होता रहा है। दक्षिण अफ्रीका प्रवास के दौरान कई-कई साल के अंतराल से होता था। मुझे ठीक से याद नहीं। यहां भारत में महीनों के अंतराल से होता रहा है। उन्‍होंने दुखी लहजे में आगे लिखा कि अगर मेरा जीवन स्‍ख्‍लनों से पूर्णत मुक्‍त होता तो मैंने दुनिया को जितना दिया है उससे ज्‍यादा दे पाता, लेकिन जो व्‍यक्ति 15 से 30 वर्ष की आयु तक विषय-भोग में, भले ही अपनी पत्‍नी के ही साथ लिप्‍त रहा हो वह इतना जल्‍द इस पर नियंत्रण कर पायेगा इसमें मुश्किल लगता है। जारी-----

यह अंश गिरजा कुमार लिखित Brahmcharya Gandhi and His Women Associates नामक पुस्‍तक से साभार है। इस पुस्‍तक का हिंदी अनुवाद विटास्‍टा पब्‍िलिशंग प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्‍ली ने महात्‍मा गांधी और उनकी महिला मित्र शीर्षक से प्रकाशित किया है। मित्रों जिन लोगों ने इस पुस्‍तक का अंग्रेजी या हिंदी वर्जन पढा है उनके लिए पुनर्स्‍मरण के तौर पर और जो अभी तक नहीं पढ पाये हैं उन्‍हें पढने को प्रेरित करने के उद़देश्‍य से इस पुस्‍तक के कुछ चुनिंदा अंश प्रस्‍तुत किए जा रहे हैं।

सोमवार, 27 अप्रैल 2009

स्‍त्री बनना चाहते थे गांधीजी

गांधीजी में स्‍त्री बनने की गहरी चाह थी। उन्‍होंने मनु गांधी से कहा था, मैं तुम्‍हारी मां हूं। मनु गांधी ने भी इस विषय पर - बापू- माई मदर नाम से एक पुस्तिका लिखी थी। जब गांधीजी के चचेरे भाई मगनलाल गांधी का निधन हुआ तो गांधीजी ने कहा था- मुझे विधवा कर गए।गांधीजी के साथ रहने वाली कई प्रसिद़ध महिलाओं को उनमें स्‍त्रीत्‍व का गुण दिखा। उनके इसी स्‍त्रीत्‍व गुण के कारण ही महिलाएं उनके करीब सहज महसूस करती थीं।

शायद यह सब उन्‍होंने अपने ब्रह़मचर्य धर्म के प्रयोग के लिए किया हो। जो भी हो गांधीजी के आलोचकों की दृष्टि में ब्रह़मचर्य कोई जीवन दर्शन नहीं, बल्कि महिलाओं के प्रति मोहातिरके था। यही वजह है कि उनके ब्रह़मचर्य के पालन का व्रत उनके खुद द़वारा ही कई खंडित किया गया। 1936, 1938, 1939, 1945 और 1947 में कभी उन्‍होंने अपना यह व्रत बंद किया और कभी शुरू किया। सालों से गुपचुप चल रहा उनके इस व्रत पर लोगों का ध्‍यान 1920 में गया। एक पत्र में गांधीजी ने तब लिखा था- जहां तक मुझे याद है, मुझे ऐसा कोई एहसास नहीं था कि मैं कुछ गलत कर रहा हूं, लेकिन कुछ साल पहले साबरमती में एक आश्रमवासी में मुझसे कहा कि इस क्रिया में युवतियों और स्त्रियों को शामिल करने से शिष्‍टता की स्‍वीकृत मान्‍यताओं को चोट पहुंचती है। 1935 में बात और भी बिगड गयी। उनसे वर्धा मिलने आए उनके सहयोगियों ने उन्‍हें सचेत किया कि वे बुरा उदाहरण पेश कर रहे हैं। उन्‍हें गांधीजी के आचरण का औरों के द़वारा अनुसरण किये जाने का खतरा दिखाई दे रहा है।

गांधीजी के जिन पुरुष सहयोगियों का वस्‍तुत कुछ महत्‍व था, उनमें से ऐसे बहुत कम थे जिन्‍हें गांधीजी के ब्रह़मचर्य के अभ्‍यास में विश्‍वास था। जब मुन्‍नालाल शाह ने शंका व्‍यक्‍त की तो गांधीजी का उत्‍तर था- निर्वसन मालिश करवाने या जब मैंने आंखे बंदकर रखी हों उस समय मेरी बगल हजार निर्वसन स्त्रियों के भी स्‍नान करने में भी क्‍या यह खतरा है कि कामदेव का बाण मुझे बेध देगा। निर्मल-मना सुशीला बहन से मालिश करवाते समय मुझे अपने आप से डर अवश्‍य लगता है। बावजूद उनके खुद के अंदर के इस डर के बाद भी उनका प्रयोग चालू रहा।

किसी बात की हद होती है। आखिरकार उनके घर में ही इसे लेकर भारी विरोध शुरु हो गया। देर रात उनकी शरीर को गरमाहट देने के काम के लिए आश्रम में रह रही उनकी कुछ रिश्‍तेदार ‍महिलाओं के पति ने यहां तक कह दिया कि ऐसा अगर जरुरी है तो हम खुद गांधीजी को शरीर की गरमाहट देने को तैयार हैं पर महिलाओं को आश्रम से हटाया जाए। इस विषय पर विनोबा भावे ने अंतिम बात कह डाली। उन्‍होंने कहा, अगर गांधीजी पूर्ण ब्रह़मचारी हैं तो उन्‍हें अपनी पात्रता को कसौटी पर कसने की जरुरत नहीं है। और अगर वे अपूर्ण ब्रह़मचारी हैं तो उन्‍हें ऐसे प्रयोग से बचना चाहिए। जारी---

यह अंश गिरजा कुमार लिखित Brahmcharya Gandhi and His Women Associates नामक पुस्‍तक से साभार है। इस पुस्‍तक का हिंदी अनुवाद विटास्‍टा पब्‍िलिशंग प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्‍ली ने महात्‍मा गांधी और उनकी महिला मित्र शीर्षक से प्रकाशित किया है। मित्रों जिन लोगों ने इस पुस्‍तक का अंग्रेजी या हिंदी वर्जन पढा है उनके लिए पुनर्स्‍मरण के तौर पर और जो अभी तक नहीं पढ पाये हैं उन्‍हें पढने को प्रेरित करने के उद़देश्‍य से इस पुस्‍तक के कुछ चुनिंदा अंश प्रस्‍तुत किए जा रहे हैं।

रविवार, 26 अप्रैल 2009

सेक्‍स और महात्‍मा गांधी

महात्‍मा गांधी के बारे में पढना कभी भी उबाऊ नहीं रहा। तभी तो रोमां रौला ने उन्‍हें दूसरे ईसा मसीह की संज्ञा दी थी। ठीक ईसा मसीह की तरह ही गांधीजी सहनशीलता भी पीडा और मौत का प्रतीक बन गयी। गांधीजी वैसे इक्‍का-दुक्‍का लोगों में शुमार हैं, जिन्‍होंने खुद को स्‍वनिर्मित हिजडा कहकर सेक्‍स की विभाजन रेखा समाप्‍त करने का दुस्‍साहस किया था। यहां हम गांधीजी के इसी दर्शन व उनकी जिंदगी के उन पक्षों में बात करेंगे जिसपर शायद अभी तक बहुत कम या नहीं के बराबर बात हुई है। ऐसा इसलिए कि हम जिन्‍हें पूजते हैं, उन्‍हें आंख मूंदकर पूजते हैं। पर क्‍या यह सच नहीं कि मन और शरीर के बीच के दुविधा के संबंध में स्‍वयं गांधीजी ने जो कुछ कहा उसे यदि हम पढने और समझने से इनकार करते हैं तो इस महानतम आधुनिक भारतीय के बारे में हमारी समझ हमेशा अधूरी ही रहेगी। क्‍या हमें यह नहीं जानना चाहिये कि जिस व्‍यक्ति ने करोडों लोगों को राजनीतिक स्‍वतंत्रता दिलाने वाले आंदोलन की अगुवाई की, वह क्‍या व्‍यक्तिगत स्‍वतंत्रता के प्रश्‍न पर गुमराह हो गया था।

महिलाएं ही महिलाएं
गांधीजी के ब्रह़मचर्य दर्शन और इसके प्रयोग का अध्‍ययन करते हुए उनके जीवन पर नजर डालें तो एक बात बरबस ध्‍यान खींचती है - जिस व्‍यक्ति को समस्‍त दैहिक कामनाओं से परहेज था उसके जीवन में, एक स्‍तर पर मात्र महिलाएं ही महिलाएं थीं। उनके जीवन में दक्षिण अफ्रीका प्रवास से लेकर मरने तक उनका महिलाओं से घनिष्‍ठ संबंध रहा। ये सब जानते हैं कि दो युवतियों के कंधों पर हाथ रखकर सुबह-शाम टहलना उन्‍हें बहुत प्रिय था। इसी दिशा में अगला कदम था युवतियों से देर-देर तक मालिश करवाना। मालिश के बाद गांधीजी स्‍नान करते थे और उस दौरान भी उनकी सहायता के लिए किसी स्‍त्री की उपिस्थिति आवश्‍यक थी। ये महिला सहयोगी गांधीजी के साथ ही खुद भी स्‍नान करती थीं। ब्रह़मचर्य साधना की दिशा में गांधीजी का अगला कदम था अपनी बगल में या अपने से सटाकर स्त्रियों को सुलाना। अपने इस प्रयोग के संबंध में उनमें बेबाक सच्‍चाई थी। वे अपने नजदीकी लोगों को इस प्रयोग की जानकारी देते रहते थे, क्‍योंकि उन्‍हें मालूम था कि एक-न-एक दिन दुनिया को इस सबका पता लगना ही है।

आदर्श हिजडा
बहुतों की राय में गांधीजी में कोई शारीरिक आकर्षण नहीं था। लेकिन अपनी महिला सहयोगियों की नजर में उनमें काफी मोहकता थी। गांधीजी के प्रयोग का लक्ष्‍य पुरुष और नारी के बीच के भेद की समाप्ति था। उनका शयन स्‍थान प्रयोगशाला था। एकलिंगता शब्‍द के लोकप्रिय या प्रचलित होने से बहुत पहले ही उन्‍होंने इस हेतु का पक्ष-पोषण किया। एक बार गांधीजी ने अपने एक अनन्‍य सहयोगी रावजी भाई पटेल को एक पत्र में कहा था कि इंद्रियों के दमन से मन के विकार नहीं मिटते। यहां तक कि हिजडों में भी कामेच्‍छा होती है और इसलिए वे अप्राकृतिक कृत्‍यों के दोषी पाये गए हैं। गांधीजी ने केवल हिंदू परंपरा से ही नहीं, बल्कि ईसाइयत और इस्‍लाम से भी प्रेरणा ली। उन्‍हीं के शब्‍दों में- मुहम्‍मद साहब ने उन लोगों को कोई अहमियत नहीं दी, जिन्‍हें बधिया करके हिजडा बनाया गया था। लेकिन जो लोग अल्‍ला की इबादत के बल पर हिजडे बन गए थे, उनका उन्‍होंने स्‍वागत किया। उनकी आकांक्षा वैसी ही हिजडेपन की थी। जारी........

अगली कडी - स्‍त्री बनना चाहते थे गांधीजी

यह अंश गिरजा कुमार लिखित Brahmcharya Gandhi and His Women Associates नामक पुस्‍तक से साभार है। इस पुस्‍तक का हिंदी अनुवाद विटास्‍टा पब्‍िलिशंग प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्‍ली ने महात्‍मा गांधी और उनकी महिला मित्र शीर्षक से प्रकाशित किया है। मित्रों जिन लोगों ने इस पुस्‍तक का अंग्रेजी या हिंदी वर्जन पढा है उनके लिए पुनर्स्‍मरण के तौर पर और जो अभी तक नहीं पढ पाये हैं उन्‍हें पढने को प्रेरित करने के उद़देश्‍य से इस पुस्‍तक के कुछ चुनिंदा अंश प्रस्‍तुत किए जा रहे हैं।

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

माडलिंग में भी महात्‍मा गांधी सबके बापू

माडल व माडलिंग - ये दो शब्‍द ऐसे हैं जिन्‍हें सुनने या पढने के बाद हमारे जेहन में किसी सुंदर काया की लडकी या चिकने-चुपने या फ‍िर रफ--टफ युवक की छवि उभरने लगती है। और वह भी किसी न किसी प्रोडक्‍ट के साथ। यानि, हर माडल की पहचान किसी न किसी प्रोडक्‍ट के साथ जुडी रहती है। और हां, अगर आपको यह बताना हो कि इंडिया का सबसे बडा माडल कौन है तो निश्चित ही आप कुछ देर सोचने पर विवश भी हो जाएं। पर आपको जानकर आश्‍चर्य होगा कि एक नई जानकारी के अनुसार महात्‍मा गांधी इंडिया के सबसे बडे माडल हैं। टेलीविजन, फ‍िल्‍म, न्‍यूजपेपर, मैगजीन और इंटरनेट जैसे मशहूर माध्‍यमों पर अधिकाधिक दिखने वाले और कमाई के स्‍तर पर अव्‍वल अमिताभ बच्‍चन, शाहरुख खान उनके आगे कहीं भी नहीं हैं।

यह बात थोडी अटपटी सी है पर इस बात का खुलासा तब हुआ जब खादी ने अपनी ब्रांडिंग के लिए किसी बडे माडल की तलाश शुरू की। अमिताभ बच्‍चन के अलावा राहुल गांधी सहित कई युवा नेताओं के नामों पर विचार करने के बाद निष्‍कर्ष यह निकला कि खादी के लिए महात्‍मा गांधी से बडा माडल कोई नहीं हो सकता। पूरी दुनिया में खादी की पहचान गांधी से ही है। यह बात शायद सबसे लोकप्रिय अभिनेता अमिताभ बच्‍चन के फैन्‍स को नागवार गुजरे।

केवीआईसी जो खादी के निर्माण व विपणन की केंद्रीय एजेंसी है ने इसके बाद खादी के ब्रांड एम्‍बेसेडर की नियुक्ति पर विचार करना ही छोड दिया। खादी के ब्रांड एम्‍बेसेडर की नियुक्ति के लिए अमिताभ व राहुल गांधी के अलावा जिन और नामी-गिरामी लोगों के नाम पर विचार किया गया उनमें हेमामालिनी, कपिल देव, ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया, उमर अब्‍दुल्‍ला, प्रकाश्‍ा जावडेकर और नवीन जिंदल आदि शामिल हैं। पर ये सारे के सारे महात्‍मा गांधी के आगे फेल हो गए। यानि, बापू से उपर कोई नहीं हो सकता। हो भी क्‍यों न। आखिर महात्‍मा गांधी ने ही तो खादी को स्‍वतंत्रता की पोशाक कहा था।

बुधवार, 15 अप्रैल 2009

मंगलसूत्र पहनते हैं पार्टी के कार्यकर्ता

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि हिंदू विवाह में मंगलसूत्र का क्‍या महत्‍व है। इसकी पवित्रता और इसका क्‍या रस्‍म-रिवाज है। पर क्‍या आपने कभी सोचा है कि मंगलसूत्र का कोई राजनीतिक उपयोग भी हो सकता है। नहीं न। तो लीजिये पढिये यह रोचक जानकारी-

यह चुनावी सीजन है। जाहिर सी बात है कि अभी चुनावी खबरों का बोलबाला है। नई व रोचक जानकारियां भी मिल रही हैं। ऐसी ही एक रोचक जानकारी चेन्‍नई से आई है- द्रमूक नामक राजनीतिक पार्टी के कार्यकर्ता संगठन के प्रति अपनी वफादारी को साबित करने के लिए पार्टी के नाम का मंगलसूत्र पहनते हैं।

द्रमूक पार्टी के कार्यकर्ता अपने विवाह के अवसर पर बनने वाले मंगलसूत्र में पार्टी का चुनाव चिन्‍ह उगता सूर्य खुदवा कर अपनी पत्नियों को देते हैं जिसे वे खुशी-खुशी धारण करती हैं। यह पार्टी के प्रति वफादारी की मिसाल है। तमिलनाडू के एक गांव पट़टी में पिछले तीन पीढियों से यह परंपरा आज भी जारी है।
क्‍यों है न कमाल की जानकारी।


जरा सो‍चिये-
अगर राजद के कार्यकर्ताओं को ऐसी वफादारी दिखानी पडे तो उनकी पत्नियों को लालटेन पहनना पडेगा और कांग्रेस कार्यकर्ता अपना हाथ काटकर पत्‍नी के गले में लटका देंगे। इससे आपको अंगुलीमाल डाकू की कहानी तो याद आ ही गयी होगी। रालोद वालों की दुर्दशा तो सोचिये बेचारों को अपनी श्रीमति को जी इस बात के लिए सहमत करना कितना मुश्किल होगा कि प्‍लीज हैंडपंप अपने गले में लटका लो आखिर यह मेरी पार्टी का चुनाव चिन्‍ह है। इससे भी बुरा हश्र तो बसपा वालों का हो जाएगा वे हाथी को गले में लटकाएंगे या हाथी के गले में ही लटक जाएंगे। और न जाने किन-किन पार्टियों के क्‍या-क्‍या चुनाव चिन्‍ह होते हैं उनका क्‍या होगा।
है न फनी थिंकिंग ----

रविवार, 12 अप्रैल 2009

बिन मांगे बीवी मिले, मांगे मिले न भीख

मानो या न मानो। है सत्‍य घटना। यूपी के बागपत जिले में पिछले दिनों हुआ यह अजीब वाकया। मुजफ़फरनगर जिले के गांव बिराल का एक फकीर जिसका नाम धनराज है भीख मांगते-मांगते एक दिन पहुंचा बागपत जिले के गांव लुहारी में। एक दर पर भीख दे दो की रट लगाते-लगाते काफी देर हो चुकी थी पर कोई रेस्‍पांस नहीं मिल रहा था। निराश होकर वह वहां से निकलने ही वाला था कि उस घर से एक लगभग 65 वर्षीया महिला निकली और भीख देने के बजाय उसे भौंचक देखती रह गयी। तुरंत ही वह महिला मेरे प्राणनाथ आ गए कहते हुए उस फकीर के पैरों पर गिर पडी। और फ‍िर झट से उसे खींचते हुए घर के अंदर ले गयी। फकीर हैरान-परेशान था कि न जाने यह हो क्‍या रहा है। घर के अंदर दाखिल होते ही लगभग तीस वर्षीया एक युवती ने उसे देखते ही पिता कहकर पुकारना शुरु कर दिया। उस अधेड महिला ने भी उस पर कई सवाल दागे। मसलन, तीस साल पहले तुम हमलोगों को छोडकर कहां और क्‍यों चले गए थे।

अब तक फकीर धनराज को थोडी-थोडी बात समझ में आने लगी थी। उसने सफाई पेश की- देखिये आपलोगों को जरुर कोई लगतफहमी हो रही है। मैं मुजफ़फरनगर जिले के कांधला क्षेत्र के गांव बिराल का बीवी-बच्‍चे वाला आदमी हूं। आपलोगों से भला मेरा क्‍या लेना-देना। पर धनराज की इस सफाई का उन मां-बेटी पर कुछ असर नहीं हुआ। उनदोनों ने यह कहते हुए कि इतने सालों बाद लौटे हो, अब तुम्‍हें कहीं न जाने देंगें, घर में कैद कर लिया। धनराज की मुश्किलें बढ गयीं। वह परेशान हो उठा। खैर किसी तरह दो दिनों बाद वह वहां से निकल भागा। लेकिन यह क्‍या, वह जैसे ही अपने घर पहुंचा। दोनों मां-बेटी वहां भी पंचायत लेकर पहुंच गयीं। पंचायत के सामने भी मुश्किल खडी हो गयी कि आखिर वह फैसला किसके हक में करे। पंचायत ने यह तर्क दिया कि एक 65 वर्ष की महिला का कोई 35 वर्ष का युवक पति कैसे हो सकता है। पर वह महिला किसी भी तर्क को सुनने को तैयार नहीं थी। वह तो अपने तीस साल बाद मिले पति को अपने साथ ले जाने पर अडिग थी। अब मामला पुलिस के पास पहुंच चुका है। पर पुलिस भी हैरत में है कि आखिरकार वह इस मसले को कैसे सुलझाये।

क्‍या आपके पास कोई उपाय है इस मसले को सुलझाने के लिए।

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009

क्‍या आप जरनैलिज्‍म से सहमत हैं

दोस्‍तों दो सप्‍ताह बाद लौटा हूं। एक नये ख्‍यालात के साथ! आपने गौर तो किया ही होगा जितने ही जूता प्रकरण हुए उनमें मुख्‍य रुप से उपस्थित रहा है। जैदी-जार्ज, जरनैल और अब जिंदल। खैर मैं यहां आपका तव्‍वजों दूसरी बात की तरफ चाहता हूं। मेरे मन में एक विचार आया है। शायद आप भी सहमत होंगे। क्‍या विरोध जताने के लिए जूत्‍ते मारने के तरीके को कोई नया नाम नहीं दिया जाना चाहिए। वह भी तब जबकि यह तरीका खूब तेजी से लोगों को रास आ रहा है, पसंद आ रहा है।

मेरा मानना है कि जूत्‍ते मारकर या फेंककर विरोध जताने की प्रक्रिया को हमें जरनैलिज्‍म नाम दे देना चाहिए। ऐसा इसलिए कि इस नाम में देशीपन है। मिट़टी की सोंधी खूशबू है। भले ही इस तरह विरोध करने का तरीका विदेश से लोकप्रिय हुआ हो पर भारत में यह तेजी से चलन में आ गया है। क्‍या आप इस बात से सहमत हैं। या कुछ और सोच रहे हैं-

खैर, इस बात पर भी आम राय बनानी जरुरी है कि क्‍या विरोध का यह तरीका सही है।