धन के साथ नाम भी हो, ऐसी ख्वाहिश अमूमन हर शख्स पालता है. ‘नाम’ और ‘नामा’ एकसाथ बहुसंख्य लोगों की किस्मत में नहीं होते. कुछ ताउम्र धन कमाने में ही संलग्न रहते हैं, नाम कमाने की उनमें इच्छा ही नहीं होती. कुछ भद्रजन केवल नाम ही कमाना चाहते हैं. खुद नाम न पैदा कर सके तो पैदा किए हुए से उम्मीद पालते हैं- मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राजदुलारा. शोहरत जब बुलंदियों को छूती है, तो आदमी को लगता है कि उसका जीवन सार्थक हुआ. गली की प्रधानी से लेकर देश की प्रधानी के पीछे यही दीवानगी है. कवि-लेखक नाम चमकाने के चक्कर में मसि-कागद के सिलबट्टे पर अक्ल घिसते हैं. हालांकि टन भर अक्ल खर्च करने के बाद यह नाचीज प्राणी छटांक भर इज्जत ही अर्जित कर पाता है. वह भी जरूरी नहीं कि जीते जी मिले. कइयों का नंबर मरणोपरांत आता है. आजीवन कहीं न छप पाने के क्षोभ में कई कवि/लेखक बाद के दिनों में प्रकाशक बन गये. इन्होंने नाम और नामा का महत्व समझा और छपने की खुजली से त्रस्त कई नामचीनों को दाम लेकर नाम दिया.
हाल के वर्षो में कुछ चेहरों ने जिस तरह से नाम ‘कमाया’ है, वह अनुकरणीय हो या न हो, ‘स्मरणीय’ अवश्य है. इनमें मॉडल पूनम पांडेय, पोर्न स्टार सनी लियोनी, निर्मल बाबा और अध्यात्म जगत की नयी सनसनी राधे मां का नाम उल्लेखनीय है. वास्तविकता तो यह है कि एक खास तबका इन नये अवतारों का सर्वाधिक मुखर प्रशंसक और समर्थक है. वैसे भी इस उम्रवालों को ‘मन-मन भावे मुड़िया हिलावे’ वाली डिप्लोमेसी आती ही नहीं.
दरअसल, राधे मां ने ख्याति का वो शार्टकट अपनाया है, जहां कामयाबी के गंतव्य तक पहुंचना असंदिग्ध और न्यूनतम जोखिम से भरा होता है. वह इस रास्ते की न तो निर्माता हैं, न कोलंबस सरीखी अन्वेषक ही. यह शार्टकट तो सदियों से वहीं का वहीं है बस इसे अब एक नाम मिल गया है. इतिहास गवाह है कि हर युग में समाज दुस्साहसियों की तीव्र आलोचना और विरोध के साथ सराहना और अनुसरण भी करता आया है. समय चाहे जितना बदल चुका हो, राधे मां को चाहने और दुत्कारने वाले दोनों हैं. राधे मां के ‘आइ लव यू फ्रॉम द बॉटम ऑफ माइ हार्ट’ जैसे जुमलों पर अमेरिका से लेकर अमृतसर तक और मुंबई से लेकर मुरी तक के ‘भक्त’ जान छिड़क रहे हैं.
राधे मां महामंडलेश्वर रहें या ना रहें, इससे उनके चहेतों को कोई खास फर्क पड़ने वाला नहीं है. यकीनन उनके चाहने वालों का बहुमत उनके साथ है. पूनम पांडेय और राधे मां सरीखे नाम कमानेवाले यशस्वियों को आप सराहें या कोसें, पर भुला नहीं पायेंगे. वह अनेक संघर्षरत यशप्रार्थियों के लिए प्रेरणादायक हैं और अनुकरणीय भी!
हाल के वर्षो में कुछ चेहरों ने जिस तरह से नाम ‘कमाया’ है, वह अनुकरणीय हो या न हो, ‘स्मरणीय’ अवश्य है. इनमें मॉडल पूनम पांडेय, पोर्न स्टार सनी लियोनी, निर्मल बाबा और अध्यात्म जगत की नयी सनसनी राधे मां का नाम उल्लेखनीय है. वास्तविकता तो यह है कि एक खास तबका इन नये अवतारों का सर्वाधिक मुखर प्रशंसक और समर्थक है. वैसे भी इस उम्रवालों को ‘मन-मन भावे मुड़िया हिलावे’ वाली डिप्लोमेसी आती ही नहीं.
दरअसल, राधे मां ने ख्याति का वो शार्टकट अपनाया है, जहां कामयाबी के गंतव्य तक पहुंचना असंदिग्ध और न्यूनतम जोखिम से भरा होता है. वह इस रास्ते की न तो निर्माता हैं, न कोलंबस सरीखी अन्वेषक ही. यह शार्टकट तो सदियों से वहीं का वहीं है बस इसे अब एक नाम मिल गया है. इतिहास गवाह है कि हर युग में समाज दुस्साहसियों की तीव्र आलोचना और विरोध के साथ सराहना और अनुसरण भी करता आया है. समय चाहे जितना बदल चुका हो, राधे मां को चाहने और दुत्कारने वाले दोनों हैं. राधे मां के ‘आइ लव यू फ्रॉम द बॉटम ऑफ माइ हार्ट’ जैसे जुमलों पर अमेरिका से लेकर अमृतसर तक और मुंबई से लेकर मुरी तक के ‘भक्त’ जान छिड़क रहे हैं.
राधे मां महामंडलेश्वर रहें या ना रहें, इससे उनके चहेतों को कोई खास फर्क पड़ने वाला नहीं है. यकीनन उनके चाहने वालों का बहुमत उनके साथ है. पूनम पांडेय और राधे मां सरीखे नाम कमानेवाले यशस्वियों को आप सराहें या कोसें, पर भुला नहीं पायेंगे. वह अनेक संघर्षरत यशप्रार्थियों के लिए प्रेरणादायक हैं और अनुकरणीय भी!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें