बुधवार, 10 अप्रैल 2013
समंदर में सू-सू करने से सुनामी नहीं आती!
अभी कल की ही बात है मार्केट में रुसवा साहब मिल गये. मैंने खैर मकदब के बाद पूछा इधर कैसे आना हुआ चाचू? मुंह में पान की गिलौरी चबाते रुसवा साहब ने मुङो उपर से नीचे तक देखा. मानो आरबीआइ गवर्नर सुब्बाराव की तरह वे भी बढती महंगाई के लिये मुङो दोषी मान रहे हों. वे धीरे से बोले ‘बस यूं ही.’ मैंने पूछा- रांची में सब कैसा है, चाय पीना पसंद करेंगे? वे कुछ बोले तो नहीं पर मेरे साथ चाय की दुकान की तरफ हो लिये. चाय की पहली चुस्की के साथ ही मैंने पूछा-
चाचू, महंगाई के लिये आप किसे दोषी मानते हैं?
पब्लिक को. महंगाई सरकार ने नहीं बढ़ाई. महंगाई को बढ़ाया ज्यादा खाने-पीने वाले लोगों ने! अंट-संट कमाने वाले लोगों ने! हद है, खुद के पेट पर कंट्रोल है नहीं और सरकार से कहते हैं कि महंगाई को कंट्रोल करे. सरकार भला महंगाई को कैसे कंट्रोल कर सकती है. हालांकि सरकार की हरदम यह कोशिश रहती है कि वो जनता को महंगाई से मुक्त रखे मगर क्या करे, उसकी हर कोशिश पर विरोधी विरोध शुरू कर देते हैं. उसे जन-विरोधी करार देते हैं. उसे बाजारवाद और पूंजीवाद का हितैषी कहते हैं.
लेकिन चाचू ये पब्लिक इतना खाती क्यों है?
भतीजे, खाते रहना पब्लिक की जरूरत या मजबूरी नहीं, उसकी नियति होती है. पब्लिक अच्छा खाना खाये. यह सरकार की सेहत के लिए भी अच्छा नहीं माना जाता. इसलिए सरकार इतना चिंतित हो जाती है.
लेकिन चाचू पब्लिक के अच्छा खाने से सरकार को क्या नुकसान होता है?
दरअसल, पब्लिक के अच्छा खाने से सरकार का काम-धाम और उसकी जवाबदेही बढ़ जाती है. बाजार में दूध, मीट, दाल, फल और सब्जियों की कीमतों में भी इजाफा हो जाता है. शेयर बाजार के सूचकांक हिलोरे मारने लगते हैं.
लेकिन चाचू सरकार महंगाई न सही भ्रष्टाचार तो रोक सकती थी?
भ्रष्टाचार को रोकने में सरकार फेल हुई लेकिन कथित ईमानदार लोग भी भ्रष्टाचार को कहां रोक पाए? जोर तो बहुत लगा लिया ईमानदारों ने कभी रामलीला मैदान, कभी जंतर-मंतर पर हो-हल्ला काटके मगर रहे ढाक के तीन पात. हो-हंगामे का असर इत्ता हुआ कि ईमानदारों ने अपना राजनीतिक दल खड़ा कर लिया.
इतने में चाय खत्म हो गयी और रुसवा चाचू पान की दुकान की तरफ बढ लिये. मैंने पूछा चाचू-चाचू आप तो पूरी तरह संप्रग सरकार के पक्ष में खड़े दिखते हैं. कहीं 2014 का चुनाव लड़ने का इरादा तो नहीं? वे फिर मुङो उपर से नीचे तक देखते हुए बोले- बाल सफेद हो जाने से नादानी नहीं जाती और समंदर में सू-सू करने से सुनामी नहीं आती.
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
वाह वाह ... लाजवाब व्यंग ...
जवाब देंहटाएंसही टोंट आज के माहो पे ...
धन्यवाद नासवा जी.
हटाएंशुक्रिया रविकर जी.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति | बधाई
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बहुत बढ़िया कटाक्ष
जवाब देंहटाएंlatest post वासन्ती दुर्गा पूजा
LATEST POSTसपना और तुम
नवसम्वत्सर की वधाई!अच्छा व्यंग्य !
जवाब देंहटाएंझरीं नीम की पत्तियाँ (दोहा-गीतों पर एक काव्य) (ज)स्वर्ण-कीट)(१) मैली चमक
‘सोने के पिंजर’ फँसी, ‘मैना’ हुई गुलाम |
‘बन्दी’ बन कर भोग सुख, ‘दण्ड’ को समझ ‘इनाम’ ||
व्यंग में चर चांद लगाकर---मंहगाई को रुसवा कर दिया.
जवाब देंहटाएं