दुर्गापूजा का उफान फैलिन तूफान से भी फींका नहीं पड़ा. रेनकोट पहने और छाता लगाये श्रद्धालुओं का रेला जगह-जगह मेलों में देखा जा सकता था. धर्म-अध्यात्म के जानकार बताते हैं कि ऐसे त्योहारों, आयोजनों के दौरान लोगों का उत्साह दोगुना हो जाता है. ‘कुंडलिनी’ जाग्रत हो जाती है. मैंने भी इसे ‘महसूस’ किया. महिलाओं-बच्चे, बीमार- स्वस्थ, बड़े-बूढ़े सभी उत्साह से लबरेज दिखे. यहां तक कि चोर-उचक्के भी. दुर्गापूजा के दौरान लौहनगरी में चोरी-लूट की घटनाएं भी बढ गयी थीं. किसी का पर्स चोरी, तो किसी का जेवर. किसी की स्कूटी चुरा ली, तो किसी की कार गायब कर दी.
मेला देखने के जोश में होश खो बैठी श्रीमती जी का मंगलसूत्र किसी उचक्के ने उड़ा लिया. उन्हें दुखी देख कर मैंने समझाने की कोशिश की- ‘इसमें इतना अफसोस करने की क्या बात? त्योहार का दिन है, इंज्वाय करो.’ वह बोलीं- ‘क्या खाक इंज्वाय करूं, माता के दरबार में आयी थी और ऐसा हो गया.’ मैंने कहा- ‘कोई जरूरतमंद रहा होगा, माता ने उसकी सुन ली. अब चलो, दूसरा ले लेना.’ श्रीमती जी मां चंडी की तरह मुझ पर बरस पड़ीं- ‘दूसरा कहां से ले लेंगे. इस महंगाई में दो वक्त की सब्जी तो खरीद नहीं पाते, जेवर कहां से खरीद लेंगे?’
मैंने अपना ज्ञान (या शायद अज्ञान) बघारने की कोशिश की. सोचा कि शायद इससे बात बन जाये. बोला- ‘देखो, उन्नाव (उत्तर प्रदेश) में 1000 टन सोना मिलने वाला है. आज के बाजार मूल्य के मुताबिक, इस सोने की कीमत तीन लाख करोड़ रुपये होगी. हमारे रिजर्व बैंक के पास 550 टन सोने का रिजर्व है और वह इस मामले में दुनिया में 11वें नंबर पर है. खजाने से मिलने वाले सोने को जोड़ देने पर आरबीआइ दुनिया में 8वें नंबर पर आ जायेगा. इससे हमारे रु पये की आंतरिक कीमत भी बढ़ जायेगी. कुल मिला कर कहें, तो हमारा देश अमीर हो जायेगा. सोने की कीमत घट जायेगी. इस प्रकार इसे आम आदमी भी आसानी से खरीद पायेगा.’ पर वह कहां मानने वाली थीं. बोलीं- ‘जिस देश में आालू-प्याज आम आदमी की पहुंच से दूर हो, वहां सोना किस प्रकार सहजता से उपलब्ध होगा? कभी सोने की चिड़िया कहलाने वाले इस देश में आज चिड़िया जितना भी सोना नहीं रहा.’ मैं चुप हो गया. मुङो इसी में अपनी भलाई लगी.
अब भला उन्हें कौन समझाये कि हमारा देश साधु-संतों का देश है. संत जो कह दें, वह पत्थर की लकीर होती है. आखिर शोभन सरकार ने जो सपना देखा है, वह गलत तो नहीं होगा. हम ताउम्र देखे-अनदेखे सपनों को पूरा करने के लिए ही तो भागते रहते हैं. वैसे राजनीति के जानकार यह भी कह रहे हैं कि इस सोने की खुदाई के पीछे नेताजी (मुलायम सिंह यादव) का दिमाग है. आगामी लोस चुनाव में ‘मोदी प्रकोप’ से बचने के लिए नेताजी का यह ‘खोदी दावं’ है.
मेला देखने के जोश में होश खो बैठी श्रीमती जी का मंगलसूत्र किसी उचक्के ने उड़ा लिया. उन्हें दुखी देख कर मैंने समझाने की कोशिश की- ‘इसमें इतना अफसोस करने की क्या बात? त्योहार का दिन है, इंज्वाय करो.’ वह बोलीं- ‘क्या खाक इंज्वाय करूं, माता के दरबार में आयी थी और ऐसा हो गया.’ मैंने कहा- ‘कोई जरूरतमंद रहा होगा, माता ने उसकी सुन ली. अब चलो, दूसरा ले लेना.’ श्रीमती जी मां चंडी की तरह मुझ पर बरस पड़ीं- ‘दूसरा कहां से ले लेंगे. इस महंगाई में दो वक्त की सब्जी तो खरीद नहीं पाते, जेवर कहां से खरीद लेंगे?’
मैंने अपना ज्ञान (या शायद अज्ञान) बघारने की कोशिश की. सोचा कि शायद इससे बात बन जाये. बोला- ‘देखो, उन्नाव (उत्तर प्रदेश) में 1000 टन सोना मिलने वाला है. आज के बाजार मूल्य के मुताबिक, इस सोने की कीमत तीन लाख करोड़ रुपये होगी. हमारे रिजर्व बैंक के पास 550 टन सोने का रिजर्व है और वह इस मामले में दुनिया में 11वें नंबर पर है. खजाने से मिलने वाले सोने को जोड़ देने पर आरबीआइ दुनिया में 8वें नंबर पर आ जायेगा. इससे हमारे रु पये की आंतरिक कीमत भी बढ़ जायेगी. कुल मिला कर कहें, तो हमारा देश अमीर हो जायेगा. सोने की कीमत घट जायेगी. इस प्रकार इसे आम आदमी भी आसानी से खरीद पायेगा.’ पर वह कहां मानने वाली थीं. बोलीं- ‘जिस देश में आालू-प्याज आम आदमी की पहुंच से दूर हो, वहां सोना किस प्रकार सहजता से उपलब्ध होगा? कभी सोने की चिड़िया कहलाने वाले इस देश में आज चिड़िया जितना भी सोना नहीं रहा.’ मैं चुप हो गया. मुङो इसी में अपनी भलाई लगी.
अब भला उन्हें कौन समझाये कि हमारा देश साधु-संतों का देश है. संत जो कह दें, वह पत्थर की लकीर होती है. आखिर शोभन सरकार ने जो सपना देखा है, वह गलत तो नहीं होगा. हम ताउम्र देखे-अनदेखे सपनों को पूरा करने के लिए ही तो भागते रहते हैं. वैसे राजनीति के जानकार यह भी कह रहे हैं कि इस सोने की खुदाई के पीछे नेताजी (मुलायम सिंह यादव) का दिमाग है. आगामी लोस चुनाव में ‘मोदी प्रकोप’ से बचने के लिए नेताजी का यह ‘खोदी दावं’ है.
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