अभी चुनावी मौसम है. जिसे देखो वह राजनीति की बातें कर रहा है. गांव हो या शहर, घर हो या बाहर, स्कूल हो कॉलेज, मंदिर हो या मसजिद सब जगह बस राजनीति की ही बातें हो रही है. वैसे तो लोकसभा चुनाव में अभी कुछ महीने वक्त है, पर इन दिनों पांच राज्यों में विधानसभा की चुनावी सरगरमी है. वो कहावत है न.. बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना. वही हाल हमलोगों का भी है. चुनाव है छत्तीसगढ़, राजस्थान, दिल्ली और मिजोरम में, और बावले हुए जा रहे हैं हम. रोज नये-नये सर्वे की लत लग गयी है. आज का नया सर्वे क्या है? किस पार्टी को ज्यादा सीटें मिल रही हैं, किसको कम? यह जानने की उत्कंठा में टीवी का रिमोट घिसे जा रहे हैं या अखबारों के पन्ने चाट रहे हैं. हालत यह है कि जब पटना में सीरियल बम ब्लास्ट हुए, कई लोग मरे, कई घायल हुए. तब भी हमारे अंदर की संवेदना घास चरने गयी थी. हम इस बात में उलङो रहे कि कौन सांप्रदायिक है और कौन नहीं. हम यह भूल गये कि ब्लास्ट में जो मरे वह इंसान भी थे. पता नहीं हम किस राजनीति की बातें करते हैं, कैसे करते हैं? एक तरफ तो हमारे नेता ऐसे हैं जिनको जनता के बजाय अपनी जान की फिक्र ज्यादा है. विस्फोट होता है कई निदरेषों की जान चली जाती है, कई बेगुनाह जख्मी होकर वहीं पड़े तड़पते रहते हैं, पर इन नेताओं को तो फिक्र है अपनी. खुद की सुरक्षा के लिए बड़े लाव-लश्कर, एसपीजी सुरक्षा, ब्लैक कमांडो, कई-कई राज्यों की पुलिस..और न जाने क्या-क्या?
वैसे, राजनीति है बड़ी अजीब. यहां वैसे तो कोई दूध का धुला है नहीं, पर सब एक-दूसरे को दागदार बताने में मशगूल हैं. हाल यह हो गया है कि बस सब एक-दूसरे के दाग ढूंढ़ते फिर रहे हैं. दागी सभी हैं, पर अब लड़ाई इस बात की है कि कोई कम दागी है तो कोई अधिक दागी है. जो खुद को कम दागी समझता है, वह दूसरे को अधिक दागी बता कर ही ईमान की लड़ाई जीतना चाहता है. जो कम दागी है, वह अधिक दाग वाले प्रभावशाली व्यक्तित्व से जलन करता है. इतने बड़े-बड़े घोटाले के दाग देख कर वह अपने छोटे घोटालों वाले दागों पर शर्मिदा हो रहा है. कुछ लोग हैं जो दागी तो हैं, पर खूबसूरती से उसे कमीज के नीचे छिपाए हुए हैं. लोग देखते हैं तो बस सफेद ही सफेद ही नजर आता है. इस सफेदी के पीछे छिपा वह स्याह चेहरा लोग देख ही नहीं पाते, जो उसका असली चेहरा है. वोट मांगने के लिए यह एक कारगर हथियार है. वैसे वोट मांगने के और भी कई तरीके हैं. इस सीजन में कई बड़े नेता अपनी दादी, पिताजी, मां, चाचा, भाई-भाभी, बेटा-बेटी आदि के नाम पर भी वोट मांगते देखे जा रहे हैं. आखिरकार, यह लोकतंत्र है, वोट मांगना उनका अधिकार है और देना आपका. आप राजनीति या नेताओं को पसंद करें या न करें, नजरअंदाज नहीं कर सकते.
वैसे, राजनीति है बड़ी अजीब. यहां वैसे तो कोई दूध का धुला है नहीं, पर सब एक-दूसरे को दागदार बताने में मशगूल हैं. हाल यह हो गया है कि बस सब एक-दूसरे के दाग ढूंढ़ते फिर रहे हैं. दागी सभी हैं, पर अब लड़ाई इस बात की है कि कोई कम दागी है तो कोई अधिक दागी है. जो खुद को कम दागी समझता है, वह दूसरे को अधिक दागी बता कर ही ईमान की लड़ाई जीतना चाहता है. जो कम दागी है, वह अधिक दाग वाले प्रभावशाली व्यक्तित्व से जलन करता है. इतने बड़े-बड़े घोटाले के दाग देख कर वह अपने छोटे घोटालों वाले दागों पर शर्मिदा हो रहा है. कुछ लोग हैं जो दागी तो हैं, पर खूबसूरती से उसे कमीज के नीचे छिपाए हुए हैं. लोग देखते हैं तो बस सफेद ही सफेद ही नजर आता है. इस सफेदी के पीछे छिपा वह स्याह चेहरा लोग देख ही नहीं पाते, जो उसका असली चेहरा है. वोट मांगने के लिए यह एक कारगर हथियार है. वैसे वोट मांगने के और भी कई तरीके हैं. इस सीजन में कई बड़े नेता अपनी दादी, पिताजी, मां, चाचा, भाई-भाभी, बेटा-बेटी आदि के नाम पर भी वोट मांगते देखे जा रहे हैं. आखिरकार, यह लोकतंत्र है, वोट मांगना उनका अधिकार है और देना आपका. आप राजनीति या नेताओं को पसंद करें या न करें, नजरअंदाज नहीं कर सकते.
करार व्यंग ... क्या कहने इस राजनीति के ...
जवाब देंहटाएं