शनिवार, 14 दिसंबर 2013

आप से भी खूबसूरत ‘आप’ के अंदाज हैं

‘दिल्ली दूर है’ वाली कहावत झूठी साबित हो चुकी है. आम आदमी ने यह साबित कर दिखाया है कि उसे सिर्फ राजनीति का छिद्रान्वेषण करना ही नहीं, बल्कि लाइलाज हो चुके मर्ज का इलाज करना भी आता है. हालिया संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (आप) को नयी दिल्ली में भले ही सिर्फ 28 सीटें ही मिल पायीं, पर उसने 15 वर्षो से सत्तासीन कांग्रेस को खदेड़ दिया. इस चक्कर में भाजपा कहीं की नहीं रह गयी. सबसे अधिक 32 सीटें हासिल करके भी भाजपा की स्थिति ‘सब धन 22 पसेरी’ वाली है. लेकिन यहां हम बात करेंगे ‘आप’ की. जी हां, आम आदमी पार्टी की. तमाम कयासों के बाद भी कांग्रेस और भाजपा ‘आप’ को वोटकटवा समझते रहे और जब रिजल्ट आया तो गच्चा खा गये. चुनाव परिणाम आने से पूर्व तक अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी ‘को जीभर गरियानेवाली कांग्रेस अब उससे बिना शर्त समर्थन लेने की चिरौरी कर रही है. जाहिर सी बात है उसे दिल्ली के पब्लिक की चिंता नहीं बल्कि अपना हित दिख रहा है. कांग्रेस आप की सरकार बनवा कर दिल्ली के लोगों की सिम्पैथी हासिल करना चाहती है. साथ ही आप के प्रकोप से बचने का रास्ता भी ढूंढ रही है. पर केजरीवाल कांग्रेस की यह होशियारी खूब समझते हैं. वह सतर्क हैं. इधर कई टीवी चैनलों पर दिखाये जा रहे सरकार बनाने के फामरूले की तर्ज पर किरन बेदी ने भी अपनी मुफ्त सलाह हवा में उछाल दिया ‘भाजपा और आप मिल कर सरकार बनायें.’ पर इस फ्री सलाह को भी न तो भाजपा ने तवज्जो दी और न ही आप ने. इधर आयुर्वेद की महंगी दवाएं बेचने और मोटी फी लेकर योग सलाह देने वाले बाबा रामदेव ने भी केजरीवाल को एक मशविरा फ्री में दे दिया ‘जब कांग्रेस समर्थन दे रही है तो केजरीवाल को सरकार बनाने के लिए आगे आना चाहिए.’ इस सब चीजों को नजरअंदाज कर आप के लोग जंतर-मंतर पर जीत का जश्न मनाने में लगे रहे. दरअसल, राजनीति के आंगन में उतरने के बाद इसकी ‘टेढ़ी चाल’ और ‘ननु नच’ के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी आप वालों को भी हो गयी है. वे जानते हैं कि दूसरे के कंधे पर रखकर  बंदूक चलाने वालों की यहां कोई कमी नहीं है. सच तो यह है कि कई राजनीतिक धुरंधरों को ‘दृष्टि दोष’ है, पर अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी अपने दूरदृष्टि का इस्तेमाल कर रही है. दिल्ली में जीत से दोगुने हुए जज्बे के साथ आप ने लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है. उन्हें पता है दिल्ली में दोबारा चुनाव ही अब एकमात्र विकल्प है. झाड़ू आप का राष्ट्रीय चुनाव चिन्ह बन गया है. अब आपका मिशन है ‘कश्मीर से कन्याकुमारी.’ सचमूच सफाई तो जरूरी है.  इन दिनों कुछ गीत खासे लोकप्रिय हो रहे हैं- आप यहां आये किसलिए.., आप से भी खूबसूरत आप के अंदाज हैं.. आप भी इसका आनंद लीजिए.

3 टिप्‍पणियां:

  1. खूब सूरत विश्लेषण किया है आपने अखिलेश्वर जी पांडे। "आप "लम्बी रेस का सारथि है। दिल्ली की संसदीय सीटों को अब कांग्रेस -बी जे पी के लिए प्राप्त करना आसन नहीं होगा। यही अनुपात रहेगा वहाँ भी।

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  2. मस्त विश्लेषण आप का ... गहरी चाल...
    खुली चाल कह के अंदर की चाल चल रही है आप ...

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