गुरुवार, 23 दिसंबर 2010

जोहार दोस्तों

दोस्तों जोहार.
मेरठ से जमशेदपुर आ गया हूं. झारखंड की औधोगिक राजधानी. उर्फ टाटानगरी. यहां आकर और प्रभात खबर से जुड़कर अच्‌छा लग रहा है. आपन माटी, आपन बोली, आपन लोग. खुश हूं.
कुछ-कुछ अंतर है मेरठ और जमशेदपुर में. बोली-विचार, रहन-सहन, खान-पान. हर चीज थोड़ा अलग सा है यहां. यहां की पत्रकारिता का कल्चर भी वहां से काफी अलग है. कुछ अलग सीखने और समझने का अवसर मिल रहा है.
एक बात जो अब तक समझ में आई है वह यह कि मेरठ के बारे में मशहूर है- यह अलग मिजाज का शहर है जरा फासले से मिला करो. जबकि जमशेदपुर में मुझे लगता है कि हर कोई आपसे मिलना चाहता है, आपके बारे में जानना चाहता है, अपने बारे में बताना चाहता है-दिल खोलकर. है न कितना कुछ अंतर दोनों शहरों में.
मेरा आशय मेरठ को कमतर दिखाने या बताने का कतई नहीं है. मेरठ ने मुझे काफी कुछ दिया है. वहां मैंने जिंदगी और कैरियर के महत्वपूर्ण वर्ष बिताये हैं. आज भी वहां मेरे कई करीबी और अजीज दोस्त हैं जिनसे बात किये बिना मुझे चैन नहीं मिलता. मेरठ के गुड़ और गजक की मिठास के साथ-साथ वहां की मीठी यादें भी मेरे साथ सदा ही रहेगी. फिलहाल तो जमशेदपुर में लिट्टी-चोखा और चना-चबेना का स्वाद ले रहा हूं. अपनों के साथ-सपनों के साथ. फिलहाल इतना ही...

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा लगा आप अपने शहर मे आ गये, लेकिन पुराने को भी नही भुले, धन्यवाद

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  3. दरअसल, किसी शहर का मिजाज अलग नहीं होता। हर शहर की एक रवायत होती है। वहां के लोगों की एक सामान्य आदते होती हैं और जीवनशैली भी। निर्भर करता है कि हम उस शहर में किन लोगों के बीच होते हैं। यकीन मानिए, मेरठ और उसके आसपास के जिलों बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर आदि में मैंने अपने जीवन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण आठ वर्ष गुजारे हैं...काफी लोगों के करीब रहा हूं और काफी लोग मेरे...जिस जिंदादिली से लोग मुझे मिले और जितना प्यार दिया उसकी मैं उम्मीद भी नहीं करता था...हां, इसका दूसरा पक्ष भी था...दूसरे तरह के लोग भी थे लेकिन, उनसे अपना वास्ता ही क्या था? मैं मेरठ को बहुत मिस्स करता हूं...खासकर अपने दोस्तों को और अपनों को...दरअसल, अपनी जिंदगी तो यायावर जैसी है...चलना अपनी जिंदगी है और शहर महज एक पड़ाव...जमशेदपुर उनमें से ही एक है...मेरठ के लोगों की जिंदादिली और बेलागलपेट मुझे भाया...दायरे में रहना मेरी आदत नहीं है...इसलिए भी मेरठ मुझे अच्छा लगता है...वो जिंदगी अच्छी लगती है...बाकी मेरठ क्या और जमशेदपुर क्या? अगर जन्मभूमि की मिट्टी नहीं तो फिर कश्मीर क्या और कन्याकुमारी क्या? हां, घर से नजदीक होने का मानसिक सुकून जरूर मिलता है...जरूरतों की पूर्ति होती है...

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