बुधवार, 7 नवंबर 2012

बाजार के ताल पर नाचतीं कठपुतलियां

पिछले दस वर्षो के अधिकतर हिट या सुपरहिट बॉलीवुड गीतों को याद कीजिए. इनमें से अधिकतर (लगभग 99 फीसदी) महिला केंद्रित हैं. ये गीत महिलाओं की पीड़ा, समस्याओं, मुद्दों को उठाने के लिए नहीं, बल्कि पुरुष मानसिकता को रिझाने या उकसाने के लिए बनाये जाते हैं. सिर्फ गीत ही क्यों? तमाम तरह के विज्ञापनों पर गौर फरमाइए, तो तसवीर और भी साफ हो जायेगी.

18 अगेन..! बाजार में पेश यह नया उत्पाद है, उन महिलाओं के लिए है जो पच्चीस-तीस-पैंतीस या शायद उससेज्यादा उम्र की हो चुकी हैं. इस उत्पाद के प्रचार के लिए दो रूपकों का इस्तेमाल हो रहा है. पूरे पन्ने के अखबारी विज्ञापन में एक पूरा खिला गुलाब और (इसके इस्तेमाल के बाद) नीचे गुलाब की ‘सख्त’ कली. यह क्रीम पूरे खिले गुलाब को ‘कली’ बनाती है. टीवी पर इसके विज्ञापन में एक महिला गाती है- ‘आइ एम 18 अगेन, फीलिंग..अगेन.’ यह एक उदाहरण मात्र है कि बाजार किस तरह हमारी जिंदगी को नियंत्रित कर रहा है. प्रोडक्ट किस तरफ हमारे निजी रिश्तों की दशा-दिशा तय करने की कोशिश में लगे हैं. शायद ही इस बात से कोई इनकार करे कि आप टेलीविजन देखते समय अपने बच्चों को आसपास नहीं रखना चाहते. क्योंकि जब आप अपना पसंदीदा कार्यक्रम देख रहे होते हैं तो इस बात का सदैव खतरा बना रहता है कि पता नहीं कब आपके टीवी स्क्रीन पर कंडोम का कोई अश्लील विज्ञापन नमूदार हो जाये. न जाने कब कोई पुरुष मॉडल किसी मल्टीनेशनल कंपनी का परफ्यूम या डियोड्रेंट लगा कर दर्जन भर युवतियों या महिलाओं को अपनी ओर ‘आकर्षित’ करने का ‘करतब’ दिखाने लगे. ऐसे में खतरा यह बना रहता है कि अगर आपके बच्चे ने ऐसे किसी भी विज्ञापन को अगर गौर से देख लिया और आपसे जिज्ञासा भरा कोई सवाल पूछ दिया तो आप क्या करेंगे? दरअसल, आज हमारी जिंदगी में रहन-सहन, संस्कृति, बोल-चाल, पर्व-त्योहार, सुख-दु:ख, हंसी-खुशी सबकुछ बाजार नियंत्रित हो गया है.

अब देखिए न दीपावली आ गयी है यह आपको बाजार बता रहा है. भारी डिस्काउंट से लदे बड़े-बड़े होर्डिग, कई-कई पेजों के अखबारी विज्ञापन, टेलीविजन पर आकर्षक विज्ञापनों की भरमार यह सबकुछ आपके लिए है. आपको यह बताने के लिए कि आप खर्च करने को तैयार हो जाइए. अभी-अभी दुर्गापूजा खत्म हुई है. मार्केट में खरीदारों की भीड़ देख कर यह भरोसा ही नहीं होता कि ये वही लोग हैं जो रसोई गैस या डीजल-पेट्रोल की कीमत बढने से गृहस्थी के डांवाडोल होने का रोना रोते हैं. कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारा अब खुद पर नियंत्रण रहा ही नहीं. हम किसी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण की तरह हो गये हैं जिसे हर वह शख्स संचालित कर सकता है जिसके हाथ में रिमोट हो!

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