गुरुवार, 21 मार्च 2013

हमने एक शेर सुनाया तो बुरा मान गये!


अजीब हालात हैं. बेनी प्रसाद वर्मा ने जरा सा ‘कुछ’ कह दिया, तो उनके पुराने ‘दोस्त’ मुलायम सिंह यादव बुरा मान गये. राज्यसभा में कांग्रेस नेता प्रदीप बलमुचु ने जया बच्चन की जरा-सी तसवीर क्या ले ली, वे बुरा मान गयीं. करुणानिधि की एक छोटी इच्छा केंद्र सरकार ने पूरी नहीं की, तो वे इस कदर बुरा मान गये कि सरकार से अपना समर्थन ही वापस ले लिया. बिहारी बाबू (शत्रुघ्न सिन्हा) ने रानी मुखर्जी को ‘रानी चोपड़ा’ क्या कह दिया, वे भी बुरा मान गयीं और ऐसे रिएक्ट किया- मानो कह रही हों ‘खामोश!’
  भई! यह तो होली का मौसम है, बुरा क्या मानना. देखो, पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा सबकी जुबान यही कह रही है ‘बुरा न मानो होली है.’
पता नहीं ‘बुरा न मानने’ से लोग परहेज क्यों करते हैं. वैसे मैं बता दूं कि ‘बुरा न मानना’ कोई रोग नहीं है, लेकिन शायद इनको लगता है कि जहां सभी लोग बात-बिना बात बुरा मान रहे हों, वहां  बात  पर भी बुरा न मानना रोग ही है. अगर आपने गौर किया हो, तो ऐसा लगता है कि अपने देश में किसी किसी की शक्ल तो बुरा मानने के लिए ही बनायी गयी लगती है. मायावती, ममता बनर्जी, करुणानिधि, अब्दुल्ला बुखारी, आडवाणी, राखी सावंत, डैनी..आदि-आदि. इन लोगों के चेहरे पर कभी ख़ुशी के भाव नहीं देखे. ऐसा लगता है कि ऐसे लोग पैदा होते ही अपने मां-बाप से भी बुरा मान गये होंगे.
  वैसे होली का मौसम होता गजब का है. जिसे देखो वही बौराया हुआ लगता है. आम, लीची, जामुन, गेहूं, अरहर, सरसों से लेकर इनसान तक. और, कवियों की पूछिये ही मत. जहां देखो वहीं हास्य कवि सम्मेलन हो रहा है. एक मंच से किसी होलियाये कवि ने तुकबंदी पेश की-
तमाम रात सुनते रहे गज़लें उनकी
हमने एक शेर सुनाया तो बुरा मान गये.
जब भी चाहते हो कुरेद देते हो जख्मों को
हाथ हमने दबाया तो बुरा मान गये.
 दूसरे ने तेवर दिखाते हुए माइक थामा-
हर हाल में हमने तुम्हारा साथ दिया,
थोड़ा सच बोला तो बुरा मान गये.
ताउम्र खोजता रहा,रोशनी तेरे लिए,
दीये में तेल न बचा तो बुरा मान गये.
बरसाती मेढक जैसे कवियों की नयी खेप होली के मौसम में उग आती है. पता नहीं पूरे साल ये कहां रहते और क्या करते हैं. कवि भी गजब-गजब के.
खैर, हम यहां बात कर रहे हैं बुरा न मानने की. वैसे, अगर आप बुरा न मानें तो मेरी एक सलाह है कि हम लोगों को सिर्फहोली में ही बुरा मानने से क्यों रोकते हैं? इस मंत्र का प्रयोग पूरे साल करने में क्या हर्ज है? मसलन- बुरा न मानो  संडे  है,  मंडे  है,  वेलेंटाइन डे  है आदि आदि. इसी बहाने बुरा मानने की बुराई तो खत्म होगी. खैर चलते-चलते, बुरा न मानो होली है..

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