रामदरश काका पिछले पांच दशकों से वोट करते आ रहे हैं, लेकिन आज तक एक बार भी ऐसा नहीं हुआ कि वोट देने के तुरंत बाद वे पछताये ना हों. उन्हें लगता है कि वे पछताने के लिए ही मतदान करते हैं. ऐसा नहीं है कि वे हमेशा ही ईमानदार आदमी को चुनना चाहते हैं. जानते हैं कि ईमानदार आदमी अब पैदा होना बंद हो गये हैं. यहां-वहां कहीं दो-चार अदद मिलते भी हैं, तो ऐसे बिदकते हैं मानो राजनीति नहीं, सिर पर मैला उठाने की प्रथा हो! रामदरश काका मानते हैं कि वे खुद भी ईमानदार नहीं हैं. मौका मिलने पर अनेक बार उन्होंने दो-चार दिनों के लिए ईमानदारी-नैतिकता जैसी चीजों को लाल कपड़े में बांध कर खूंटी पर टांग दिया है. मौके और मजबूरियां किसके जीवन में नहीं आते. समझदार आदमी वही है जो सावधानी से इन्हें बरत ले. राजनीति में ईमानदार आदमी ढूंढ़ना खुद अपनी जगहंसाई करवाना है. फिर किसी और की ईमानदारी से हमें क्या, होगा तो अपने घर का. काम करनेवाला हो, तो बेईमान भी चलेगा. ठेकेदार से कमीशन खा ले, पर सड़क बनवा दे. चंदा वसूलता हो तो वसूले, पर भोजन-भंडारे बराबर करवाता रहे. अतिक्र मण हटानेवाले आयें तो प्रशासन से लड़ ले. शादी-ब्याह, मरे-जिये में आ कर खड़ा हो जाए. और, क्या चाहिए इसके सिवाय आम आदमी को!!
इतना काफी है. गरीब आम आदमी वैसे भी किस्मत का मारा होता है. कभी भूल से थाली में काने बैंगन की सब्जी दिख गयी, तो दिल्ली से आवाजें आने लगती हैं कि गरीब ने सब्जी खायी इसलिए महंगाई बढ़ गयी. अगर गरीब दो सब्जी खायेंगे, तो अपना रुतबा बनाये रखने के लिए अमीर आदमी को कम से कम बारह सब्जियां खानी पड़ेंगी. गरीब बिहार-यूपी से पहुंच जाए तो राजधानी में गंदगी पैदा हो जाती है. वैसे तो इन दिनों सभी पार्टियों के प्रत्याशी रोज ही रामदरश काका के यहां वोट मांगने आते हैं. पर, उस दिन गली के अंधेरे में एक प्रत्याशी से सामना हो गया. बोला- ‘काका ध्यान रखना, इस बार आपके वोट से ही सरकार बनेगी.’ इतना कह कर हौले से उनके हाथ में पांच सौ का एक कड़क नोट पकड़ा कर बोला- ‘बच्चों के लिए मिठाई ले लेना.’ वो कुछ सोच पाते इसके पहले पता नहीं चला कि वह नोट कब किसने ले लिया. ले लिया तो ले लिया. अब क्या हो सकता था. रोकते-रोकते मुंह से ‘थैंक्यू’ भी निकल गया. प्रत्याशी ने एक अंगूठा ऊंचा करके पूछा ‘चलती है क्या?’ काका कुछ समङों, मना करने या स्वीकारने के लिए तैयार हों, इससे पहले एक आदमी एक बोतल, जिसमें शहद के रंग जैसा कुछ था, पकड़ा गया. जब काका की आंखों के सामने का अंधेरा हटा तो देखा, बोतल पर लिखा था ‘रेड डाग’, और एक कुत्ता मुंह फाड़े बना हुआ था जिसकी आंखें लाल थीं. रामदरश काका बार-बार उसे देखते रहे, जबतक खुद उनकी आंखें लाल नहीं हो गयीं.
इतना काफी है. गरीब आम आदमी वैसे भी किस्मत का मारा होता है. कभी भूल से थाली में काने बैंगन की सब्जी दिख गयी, तो दिल्ली से आवाजें आने लगती हैं कि गरीब ने सब्जी खायी इसलिए महंगाई बढ़ गयी. अगर गरीब दो सब्जी खायेंगे, तो अपना रुतबा बनाये रखने के लिए अमीर आदमी को कम से कम बारह सब्जियां खानी पड़ेंगी. गरीब बिहार-यूपी से पहुंच जाए तो राजधानी में गंदगी पैदा हो जाती है. वैसे तो इन दिनों सभी पार्टियों के प्रत्याशी रोज ही रामदरश काका के यहां वोट मांगने आते हैं. पर, उस दिन गली के अंधेरे में एक प्रत्याशी से सामना हो गया. बोला- ‘काका ध्यान रखना, इस बार आपके वोट से ही सरकार बनेगी.’ इतना कह कर हौले से उनके हाथ में पांच सौ का एक कड़क नोट पकड़ा कर बोला- ‘बच्चों के लिए मिठाई ले लेना.’ वो कुछ सोच पाते इसके पहले पता नहीं चला कि वह नोट कब किसने ले लिया. ले लिया तो ले लिया. अब क्या हो सकता था. रोकते-रोकते मुंह से ‘थैंक्यू’ भी निकल गया. प्रत्याशी ने एक अंगूठा ऊंचा करके पूछा ‘चलती है क्या?’ काका कुछ समङों, मना करने या स्वीकारने के लिए तैयार हों, इससे पहले एक आदमी एक बोतल, जिसमें शहद के रंग जैसा कुछ था, पकड़ा गया. जब काका की आंखों के सामने का अंधेरा हटा तो देखा, बोतल पर लिखा था ‘रेड डाग’, और एक कुत्ता मुंह फाड़े बना हुआ था जिसकी आंखें लाल थीं. रामदरश काका बार-बार उसे देखते रहे, जबतक खुद उनकी आंखें लाल नहीं हो गयीं.
तीखी कड़वी सचाई ...
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