शुक्रवार, 20 जनवरी 2017

जब तुम बोल रही थी

सुना मैंने तुम्हें
पर वैसे नहीं 
जैसे तुम कहना चाहती थी
कोशिश की मैंने बहुत
पर कम नहीं कर पाया अहम
आंखे झुका कर
नजरें गड़ा कर
सुनता रहा तुम्हें

तुम बोलती रही
मैं विचरता रहा
बिस्तर की उन सलवटों में
जो छोड़ आयी थी तुम
उस अंधेरे कमरे में
सहलाते हुए अपनी पीठ
मैं महसूस करता रहा
तुम्हारे नर्म हाथों की छूअन
बिखरे बालों को सहलाते हुए
सुना मैंने तुम्हे

तुम बोलती रही
मैं सोचता रहा
तुम्हारी हर हर्फ का
 कोई अलहदा मतलब
तुम्हारी सोच से परे
मैं था वहीं
तुम्हारे पास
जब तुम बोल रही थी
मैं सुन नहीं पाया वह
जो तुम कहना चाहती थी.

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