राडिया प्रकरण ने भारतीय राजनीति को कितना शर्मसार किया है यह बाद की बात है लेकिन इसने मीडिया की विश्वसनीयता को कठघरे में जरुर खड़ा क़र दिया है। युवा पीढ़ी ने जिन बरखा दत्त, वीर सांघवी को अपना आइकॉन मान मीडिया जगत में कदम रखा है उसमें किरचें आ गयी हैं। मीडिया जगत में अन्दर और बाहर तमाम तरह की बहश जारी है। साहित्य की प्रतिष्ठित पत्रिका पाखी ने भी अपने जनवरी अंक में इसी विषय पर एक सार्थक बहश प्रकाशित की है। जिसमें राम बहादुर राय, पुण्य प्रसून वाजपेयी, दिलीप मंडल जैसे कईनामी गिरामी पत्रकारों ने लिखा है. उसके कुछ चुनिन्दा अंश:
राम बहादुर राय : पेड न्यूज़ से संस्थानों का स्वरूप बदला है। जो यह कह रहें हैं कि मंदी से बचने की खातिर संस्थानों को ऐसा करना पड़ रहा है, वे गलत हैं।
पुण्य प्रसून वाजपेयी : कीमत अब ब्रांड की है, न्यूज़ चैनेल भी ब्रांड बन गएँ हैं। उनके लिए पत्रकारिता मायने नहीं रखती।
दिलीप मंडल : अब वह पुरानी बात हो गयी कि मीडिया में छपने से किसी को कुछ असर पड़ता है। इस साल मीडिया का नया रूप लोगों ने देखा है। आगे यह और भयावह हो सकता है।
और भी बहुत कुछ पढ़ा जा सकता है पाखी के नए अंक में.
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