बुधवार, 12 दिसंबर 2012

रोटी मजबूरी हो या दूरी पर सबके लिए जरूरी


प्रख्यात साहित्यकार प्रयाग शुक्ल की एक कविता है-
व्यंजन पकाने की विधियां कई हैं
व्यंजन भी कई हैं
ढेरों व्यंजनों के
पर व्यंजन विधियों को चकमा देकर
कब और कैसे स्वाद को
मधुर तिक्त करते हैं
यही चमत्कार है.
पर इससे भी बड़ा चमत्कार है ‘खाना-खिलाना’. चाहें तो आप इसे ‘डिनर डिप्लोमेसी’ भी कह लें. दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी यूपी में भोजन करने को ‘रोटी खाना’ कहते हैं. रोटी के लिए इनसान क्या-क्या नहीं करता? खेती से लेकर राजनीति तक सब इस रोटी की ही लाचारी है. अरे भई! कोई  रोटी बनाता है, कोई रोटी उगाता है. कई महानुभाव तो ऐसे भी होते हैं जो दूसरे की उगायी फसल काटने की फिराक में रहते हैं. कोई रोटी खिलाता है, कोई खाता है. किसी के लिए रोटी मजबूरी है तो किसी के लिए दूरी है. जो भी हो रोटी होती सभी के लिए जरू री है.
कुछ लोग रोटी छीन कर खाते हैं, तो कुछ लोग कमा कर. कुछ लोग दिखा कर, तो कुछ लोग छिपा कर. हमारे बड़े-बुजुर्ग आज भी इस बात को बहुत जोर देकर कहते हैं कि ‘रोटी और बेटी का रिश्ता हर किसी से नहीं किया जाता.’ रोटी के लिए कई लोग बेघर हो जाते हैं, तो कई लोग रोटी का व्यवसाय कर कई-कई घरों के मालिक बन जाते हैं. रोटी की महिमा जितनी भी बखानी जाये कम ही होगी. कोई रोटी खाने के लिए राजनीति करता है तो कोई रोटी खाकर राजनीति करता है. कई नेता तो गरीबों/दलितों/मजदूरों के घर जाकर रोटी खाने का दिखावा करते हैं. दरअसल, इनकी नजर रोटी पर कम उनके वोट बैंक पर ज्यादा होती है. यह बात कोई समझ नहीं पाता. क्या वह गरीब यह नहीं सोचता होगा कि नेताजी मेरे यहां आकर रोटी तोड़ रहे हो कभी मुङो भी अपने घर बुलाओ? तुमने खून-पसीने की कमाई का स्वाद तो चख लिया, जरा मैं भी देखूं मुफ्तखोरी का स्वाद कैसा होता है?
संभ्रांत लोग रोटी खाने-खिलाने को ‘डिनर डिप्लोमेसी’ कहते हैं. उन्हें ‘रोटी’ से गरीबी की दरुगध आती है. साझा पार्टियों के समर्थन पर टिकी सरकारें जब-तब अपने अल्पमत में होने का खतरा महसूस करती हैं और राजधानी में डिनर डिप्लोमेसी का दौर तेज हो जाता है. शादी-ब्याह तो बिना डिनर के होते ही नहीं. ये अलग बात है कि इस डिनर का लाभ उठाने के लिए कई बिन बुलाये ‘चतुर सुजान’ बन-ठन कर आयोजन स्थलों के पास मंडराते रहते हैं. कई पत्नियां लजीज डिनर बना कर पति महोदय का मूड ठीक करने का हुनर अब भी ढूंढ़ रही हैं. बड़े होटलों/रेस्तरां में पसंदीदा डिश खिला कर प्रेमिका को प्रेयसी बनाने का प्रयत्न करना आज भी प्रेमियों की पहली पसंद है. ‘लड़की-देखाई’ की रस्म हो, तो सास-ससुर यह पूछना नहीं भूलते कि ‘बेटी खाना बनाना तो जानती ही होगी?’

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