बुधवार, 5 दिसंबर 2012

वो सुबह-सुबह अखबार नहीं पढ़ते!


सुबह-सुबह जैसे ही अखबार खोलिए, कोई न कोई घपले-घोटाले की खबर जरू र मिलेगी. ऐसे में हर घोटालेबाज यही सोचता है, पता नहीं मेरा नंबर कब आ जाये. इसलिए वह अखबार जरा डरते-डरते ही खोलता है और अपना नाम उसमें न पाकर इत्मीनान की चाय पीता है.
पिछले दिनों बच्चों के एक कार्यक्रम में एक नेताजी को चीफ गेस्ट बनाया गया था. जिज्ञासा से लबरेज एक बच्चे ने प्रश्नोत्तर सत्र में नेताजी से पूछ लिया, ‘‘आप तो इतने सुरक्षा बल के बीच रहते हैं. क्या आपको भी किसी चीज से डर लगता है?’’ नेताजी सोच में पड़ गये. जिसका डर था वही हुआ. भरी सभा में कैसे बतायें. पर बचने का कोई उपाय न पाकर बोले, ‘‘मुङो अखबार से बहुत डर लगता है.’’ बच्चे खिलाखिला कर हंस पड़े. उन्हें शायद ‘क्यों’ पूछने की जरू रत नहीं थी.
मेरे मोहल्ले में रहनेवाले एक छुटभैये नेता ने बताया कि नेता हमेशा इस बात को लेकर खास अलर्ट रहते हैं. वह अखबार पढ़ रहे किसी व्यक्ति से बात नहीं करते, क्योंकि उन्हें इस बात का सदैव डर सताता रहता है कि पता नहीं कब कौन उनसे उल्टा-सीधा सवाल कर बैठे, जिसका जवाब देना उनके लिए मुश्किल भरा हो. एक ‘नामवर’ नेता की पत्नी ने बताया कि उनके ‘साहेब’ उनसे भी ज्यादा अखबार से डरते हैं. खास कर तब अगर कोई यह पूछे कि आज आपने अखबार पढ़ा क्या?’’ सुबह-सुबह अखबार छूने से डरते हैं. जब तक नहा-धोकर पूजा-पाठ नहीं कर लें, वह अखबार नहीं पढ़ते. यहां तक कि ‘राशिफल’ भी नहीं.
ऐसा नहीं कि केवल नेता ही इस सिंड्रोम से पीड़ित हैं, बल्कि कई अफसर भी इस बीमारी की गिरफ्त में हैं. एक आला अधिकारी के बंगले में चाकरी करनेवाले एक अर्दली ने राजफाश किया,‘‘मैडम हर वक्त साहब को ताना मारती रहती हैं- वैसे तो तुम बड़े बहादुर बने फिरते हो, पर सुबह-सुबह अखबार देख कर तुम्हारी घिग्गी क्यों बंध जाती है? अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को तो बेवजह गरियाते रहते हो पर अखबार देखकर क्यों भीगी बिल्ली बन जाते हो? मैडम चाहे कितना भी कुछ कहें पर साहब कुछ नहीं बोलते.’’
ये तो कुछ उदाहरण मात्र हैं. आपको ऐसे बहुतायत से प्राणी मिल जायेंगे जो वैसे तो मीडिया से दोस्ती रखना चाहते हैं, दूसरों का कच्च चिट्ठा खोलते रहते हैं, पर अपनी काली करतूतों के बारे में छपने से डरते हैं. इन्हें पसंद है दूसरों के बारे में गॉसिप पढ़ना, पर अपने बारे में सच्चई पढ़ने से भी डरते हैं. ये चाहते हैं चौराहे पर लगे एक आईना पर उसमें अपना चेहरा देखने से बचते हैं. ऐसे लोगों से विनम्र विनती है-
‘‘भइया! डरना ही है तो अपने आप से डरो, अखबार से क्यों डरते हो
लड़ना ही है तो तूफान से लड़ो, बयार से क्यों लड़ते हो.’’

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