सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

मेरी कुछ प्रकाशित कविताएँ

मां की तस्वीर

यह मेरी मां की तस्वीर है
इसमें मैं भी हूँ
कुछ भी याद नहीं मुझे
कब खींची गयी थी यह तस्वीर
तब मैं छोटा था
बीस बरस गुजर गए
अब भी वैसी ही है तस्वीर
इस तस्वीर में गुडिय़ा-सी दिखती
छोटी बहन अब ससुराल चली गयी
मां अभी तब बची है
टूटी-फूटी रेखाओं का घना जाल
और असीम भाव उसके चेहरे पर
गवाह हैं इस बात के
चिंताएं बढ़ी हैं उसकी
पिता ने भले ही किसी तरह धकेली हो जिंदगी
मां खुशी चाहती रही सबकी
ढिबरी से जीवन अंधकार को दूर करती रही मां
रखा एक एक का ख्याल
सिवाय खुद के
मैं नहीं जानता
क्या सोचती है मां
वह अभी भी गांव में है
सिर्फ तस्वीर है मेरे पास
सोचता हूं
मां क्या सचमूच
तब इतनी सुंदर दिखती थी।
(कथादेश के अगस्त 2004 के अंक में प्रकाशित कविता)

यह सच है


मेरे पिता कविताएं नहीं लिखाते
वे दादाजी के समान हैं जो कविताएं नहीं लिखते
वे दादी के समान हैं जो कविताएं नहीं लिखतीं
आपको आश्चर्य लगे पर यह सच है
मेरा कोई रिश्तेदार कविता नहीं लिखता

मेरे पिता के सिरहाने कविताएं नहीं होंती
न ही होती हैं उनकी डायरी या दराजों में
वे जब मेरे पास होते हैं
जानता हूं कविताएं नहीं सुनाएंगे मुझे
नसीहतें देते हैं जिंदगी की
पर उनमें छुपा स्वार्थ नहीं होता

मेरे पिता में अच्छे गद्य के आसार हैं
पर उनका सारा लेखन जिंदगी के

हिसाब-किताब में खत्म हो जाता है
मैं जब भी मिलता हूं
उनके पास इतना

इतना अधिक होता है
हने-बताने के लिए।
(साक्षात्कार के अक्टूबर 2003 के अंक में प्रकाशित कविता)

मेरे विदेशी मित्र ने पूछा

सुना है तुम्हारे देश में
रेल की छत पर भी बैठते हैं लोग
मैंने गदर फिल्म में देखा है...

क्या तुम्हारे यहां/अब भी लिखी जाती हैं चिट्ठियां
क्या अब भी कोई इनमें दिल बनाके भेजता है
क्या कबूतर ले जाता है इसको
इंडिया में लेटर बाक्स को
पेड़ पर लटके देखा हमने
बीबीसी न्यूज चैनल पर...

दुनिया में जब इतनी चीजें हैं खाने को
तुम लोग एक रोटी के ही पीछे क्यों भागते हो
चूल्हे की एक रोटी खाकर
मिट्टी के घड़े का पानी पीक
तुम सभी अब तक जिंदा हो!
(साक्षात्कार के अक्टूबर 2003 के अंक में प्रकाशित कविता)







1 टिप्पणी:

  1. Bhai mere youn to kavita published hai, par kya karun comment to karna hi hoga, Ma ki tasveer achchhi kavita hai par last line se asahmat hun. ma tab hi nahin, hamesha khoobsurat hoti hai

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