अ-शब्द
गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009
आंखों भर आकाश
ये धन, ये वैभव
नहीं चाहिये मुझे
चाहो तो तुम इसे ले लो
मुझे मेरे आंखों भर आकाश दे दो
इसे ले जाउंगा मैं
मुंबई, मद्रास या हालीवुड
बिकेंगे उंचे भाव
मिलते कहां हैं आजकल ये।
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