सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

कुछ टिप्पणियां

कुछ संबंधों से हम बाहर नहीं निकल सकते। कोशिश करें, तो निकलने की कोशिश में मांस के लोथड़े बाहर आ जाएंगे, खून में टिपटिपाते हुए।

जुदाई का हर निर्णय संपूर्ण और अंतिम होना चाहिए। पीछे छोड़े हुए सब स्मतिचिन्हों को मिटा देना चाहिए, और पुलों को नष्ट कर देना चाहिए, किसी भी तरह कि वापसी को असंभव बनाने के लिए।

यह ख्याल ही ·कितनी सांत्वना देता है कि हर दिन, वह चाहे कितना लंबा, असह्य क्यों न हो, उसका अंत शाम में होगा, एक शीतल-से झुपपुटे की तरह।

मेरे लिए 'सफलताÓ एक ऐसे खिलौने की तरह है, जिसे एक अजनबी किसी बच्चे को देता है, इससे पहले कि वह उसे स्वीकार करे, उसकी नजर अपने मां-बाप पर जाती है और वह अपने हाथ पीछे खींच लेता है।

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