हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार महाकवि आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री पेट और ह्रदय के रोग से ग्रस्त होकर बिहार के मुजफ्फरपुर मेडिकल अस्पताल में सप्ताह भर से भरती हैं. 96 वर्षीय यह वयोवृद्ध साहित्यकार आज उपेक्षा का शिकार है. सरकार को कौन कहे खुद साहित्य बिरादरी के लोग भी आज शास्त्री जी का हालचाल जानने की जहमत नहीं उठा रहे. दवा और उचित चिकित्सा का अभाव झेल रहा यह महान शख्सियत आर्थिक अभाव से भी जूझ रहा है.
वर्ष 1916 में गया जिले के मैगरा गांव में जन्मे आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री ने अपने सृजनकाल में राधा, रुप-अरुप, तीर-तरंग, मेघगीत, कालिदास, कानन, अवंतिका, धूपतरी आदि जैसी कालजयी कृतियों का सृजन किया. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और नन्द दुलारे वाजपेयी के काफी करीब और उनके प्रिय कवियों में शामिल रहे शास्त्री जी का हिंदी साहित्य में महती योगदान है. आचार्य जी के निर्देशन में 100 से अधिक लोगों ने पीएचडी किया पर अधिकांश लोग उन्हें आज भूल चुके हैं. संस्कृत और हिंदी के प्रकांड विद्वान शास्त्री जी के आंगन में साहित्यकारों की कई पीढियों ने आश्रय पाया. उनके कई कनिस्ठों को उनसे बडा पुरस्कार-सम्मान मिल चुका है. दुर्भाग्य यह कि पद्मश्री, राजेंद्र शिखर सम्मान, भारत-भारती सम्मान और शिवपूजन सहाय जैसे प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कारों से नवाजे गए इस साहित्यकार की अमर रचनाओं, उपन्यासों और ग्रंथों को सहेजने वाला तक कोई नहीं है. दोनों दंपती बीमार हैं.
वर्ष 1916 में गया जिले के मैगरा गांव में जन्मे आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री ने अपने सृजनकाल में राधा, रुप-अरुप, तीर-तरंग, मेघगीत, कालिदास, कानन, अवंतिका, धूपतरी आदि जैसी कालजयी कृतियों का सृजन किया. सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और नन्द दुलारे वाजपेयी के काफी करीब और उनके प्रिय कवियों में शामिल रहे शास्त्री जी का हिंदी साहित्य में महती योगदान है. आचार्य जी के निर्देशन में 100 से अधिक लोगों ने पीएचडी किया पर अधिकांश लोग उन्हें आज भूल चुके हैं. संस्कृत और हिंदी के प्रकांड विद्वान शास्त्री जी के आंगन में साहित्यकारों की कई पीढियों ने आश्रय पाया. उनके कई कनिस्ठों को उनसे बडा पुरस्कार-सम्मान मिल चुका है. दुर्भाग्य यह कि पद्मश्री, राजेंद्र शिखर सम्मान, भारत-भारती सम्मान और शिवपूजन सहाय जैसे प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कारों से नवाजे गए इस साहित्यकार की अमर रचनाओं, उपन्यासों और ग्रंथों को सहेजने वाला तक कोई नहीं है. दोनों दंपती बीमार हैं.
भाई,यह बहुत दुखद स्थिति है। आदरणीय शास्त्री जी साहित्य की बडी धरोहर हैं। बिहार सरकार न सही वहाँ के साहित्यकारो को तो उनकी ओर ध्यान देना चाहिए।असल मे हमारा समय और समाज साहित्य की दृष्टि से भी पतित हो चुका है। स्वाभिमानी साहित्यकार की जीवन सन्ध्या इस प्रकार की तो नही होनी चाहिए। एक समय मे शास्त्री जी ने ही लिखा था- सब अपनी अपनी कहते हैं/कोई न किसी की सुनता है/नाहक कोई सिर धुनता है।
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