शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2009

अंडरडाग मानसिकता के शिकार हैं हमारे फ‍िल्‍‍‍मकार

दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित फिल्म अवार्ड आस्‍कर की आठ श्रेणियों में झंडा गाडऩे के बाद अब भले ही हम और हमारे फिल्मकार स्लमडाग... की जय हो बोल रहे हैं पर सच्चाई तो यह है कि हमीं कुछ दिन पहले तक इस फिल्म के निर्देशक डेनी बोएल की मानसिकता पर सवाल खड़े करने में लगे थे। दरअसल, हमारे तथाकथित बौद्धिक फिल्मकारों को यह कतई पसंद नहीं कि उनकी अंडरडाग मानसिकता (हताश, जिसके जीतने की संभावना कम हो) को कोई आईना दिखाए। वे खुश और संतुष्ट हैं शोले, डान और राज जैसी फिल्मों के रीमेक बनाकर। वे तो इस गणित में उलझे हैं कि फिल्‍मराज की रीमेक तो चली पर शोले की क्यों नहीं? जानकारों को यह खूब पता है कि हिंदी सिनेमा उद्योग के आठ दशक के इतिहास में हमने खूब पसीने बहाकर भी इससे पहले जैसे-तैसे सिर्फ तीन आस्‍कर (सत्यजीत रे, भानू अथैया और शेखर कपूर ) ही हासिल कर पाए हैं। हम आस्‍कर पाना तो चाहते हैं पर उसके लिए आवश्यक प्रयास नहीं करते। हमारी घिसी-पिटी शैली, पारंपरिक सोच और कुछ नया न करने की जिद इसकी प्रमुख वजह है। उदाहरण के तौर पर गुलजार के जिस गाने- जय हो को आस्‍कर अवार्ड से नवाजा गया उस गाने में युवराज फिल्म बनाते समय हिंदी फिल्मों के दूसरे शोमैन के नाम से मशहूर सुभाष घई साहब को कुछ भी खास नहीं लगा था। इस वजह से उन्होंने इस गाने को अपनी फिल्म में लेने से ही मना कर दिया। अगर आपको याद हो कुछ दिन पहले ही स्लमडाग... पर हमारे मिलेनियम सुपर स्टार अतिमाभ बच्चन साहब की प्रतिक्रिया थी - यह फिल्म हमारे देश की गलत छवि पेश करने के लिए बनाई जा रही थी इसलिए हमने इसमें कौन बनेगा करोड़पति के प्रस्तोता का अभिनय करने से मना कर दिया। हालाकि बाद में वे अपने इस बयान से मुकर गए थे। यह सिर्फ एक उदाहरण नहीं है। न जाने कितने नामी-गिरामी हस्तियों ने इस फिल्म की आलोचना पर अनाश्वयक शब्द खर्च किए। यह सवाल परेशान करने वाला है कि आखिर क्यों बाहर का कोई फिल्मकार हमारी पृष्ठभूमि, हमारे कलाकारों और हमीं लोगों के बीच रहकर आस्‍कर जीतने वाला फिल्म बना जाता है पर हमारे फिल्मकार यह कमाल पिछले अस्सी वर्षों में भी नहीं कर पाए हैं। सभी जानते हैं जिस महात्मा गांधी को हमने राष्टपिता की उपाधि से नवाजा उनपर सबसे पहली फिल्म बनाने की उपलब्धि किसी भारतीय फिल्मकार के नहीं बल्कि रिचर्ड एटनबरो के नाम दर्ज है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त करनेवाली इस फिल्म के लिए भी भारत के भानू अथैया को आस्‍क मिला था। आखिर हमारे फिल्मकार कब तक आसमान पर थूकते रहेंगे। देर से ही सही अगर वे अब भी अंडरडाग मेंटलिटी को छोड़कर आगे बढ़ें तो निश्चित ही उम्मीद का सूरज अभी अस्त नहीं हुआ। हमारी फिल्म इंडस्ट्री में कई ऐसे उदीयमान फिल्मकार मौजूद हैं जिनमें पूरी दुनिया को रोशन करने की काबिलियत है।

7 टिप्‍पणियां:

  1. सबसे बड़ा स्लम तो खुद बॉलीवुड है। कम्बख्त मीडिया भी हर चीज़ में नकल ही ढूंढता है। हालीवुड की टक्कर में बॉलीवुड रच दिया। यहां भी अंडरडॉग दिख रहा है।

    ब्लागजगत में स्वागत है....

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  2. दरअसल, हमारे तथाकथित बौद्धिक फिल्मकारों को यह कतई पसंद नहीं कि उनकी अंडरडाग मानसिकता (हताश, जिसके जीतने की संभावना कम हो) को कोई आईना दिखाए। वे खुश और संतुष्ट हैं शोले, डान और राज जैसी फिल्मों के रीमेक बनाकर। वे तो इस गणित में उलझे हैं कि फिल्‍मराज की रीमेक तो चली पर शोले की क्यों नहीं? जानकारों को यह खूब पता है कि हिंदी सिनेमा उद्योग के आठ दशक के इतिहास में हमने खूब पसीने बहाकर भी इससे पहले जैसे-तैसे सिर्फ तीन आस्‍कर (सत्यजीत रे, भानू अथैया और शेखर कपूर ) ही हासिल कर पाए हैं। हम आस्‍कर पाना तो चाहते हैं पर उसके लिए आवश्यक प्रयास नहीं करते। हमारी घिसी-पिटी शैली, पारंपरिक सोच और कुछ नया न करने की जिद इसकी प्रमुख वजह है।

    SHAABAASHI AAPKO JO BHEED SE HATKAR SAHI BAAT KAHNE KA SAHAS KIYA.

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  3. काफी विचारोत्तेजक लेख है आपका। कोशिश जारी रखें।

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  4. Mai itnee filmen nahee dekhtee...haan...manhee man chiktchhaa zaroor kar letee hun...haalheeme film making kaa ek course bhee kiyaa...
    khair sirf Gulzaar kohee liyaa jay to unke ekse badhke ek geet hain...wo filmen oskar tak naheen pohonchee to kya...jaise ki " Hamne dekhee hai in ankhon kee mehkatee khushboo.."! Pyar kitnaa kiseebhee paribhashaake pare hota hai, iskaa is geetse badhke varnan kisne kiyaa hai??Naa bhooto naa bhavishyatee...
    Sabse achhe jo baat mujhe lagee, wo apke bitiyaakee tasveer, jo uske pitaa ne itne pyaar aur garv se daalee hai...kya kehne...!Badhaaee ho !
    Meree kavitaape tippaneeke liye behad shukrguzaar hun...naa lekhikaa hun naa kavi...yebhee maantee hun...

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  5. ब्लोगिंग जगत मे आपका स्वागत है
    शुभकामनाएं
    भावों की अभिव्यक्ति मन को सुकुन पहुंचाती है।
    लिखते रहि‌ए लिखने वालों की मंज़िल यही है ।
    कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
    मेरे द्वारा संपादित पत्रिका देखें
    www.zindagilive08.blogspot.com
    आर्ट के लि‌ए देखें
    www.chitrasansar.blogspot.com

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