दोस्तों दो सप्ताह बाद लौटा हूं। एक नये ख्यालात के साथ! आपने गौर तो किया ही होगा जितने ही जूता प्रकरण हुए उनमें ज मुख्य रुप से उपस्थित रहा है। जैदी-जार्ज, जरनैल और अब जिंदल। खैर मैं यहां आपका तव्वजों दूसरी बात की तरफ चाहता हूं। मेरे मन में एक विचार आया है। शायद आप भी सहमत होंगे। क्या विरोध जताने के लिए जूत्ते मारने के तरीके को कोई नया नाम नहीं दिया जाना चाहिए। वह भी तब जबकि यह तरीका खूब तेजी से लोगों को रास आ रहा है, पसंद आ रहा है।
मेरा मानना है कि जूत्ते मारकर या फेंककर विरोध जताने की प्रक्रिया को हमें जरनैलिज्म नाम दे देना चाहिए। ऐसा इसलिए कि इस नाम में देशीपन है। मिट़टी की सोंधी खूशबू है। भले ही इस तरह विरोध करने का तरीका विदेश से लोकप्रिय हुआ हो पर भारत में यह तेजी से चलन में आ गया है। क्या आप इस बात से सहमत हैं। या कुछ और सोच रहे हैं-
खैर, इस बात पर भी आम राय बनानी जरुरी है कि क्या विरोध का यह तरीका सही है।
कोशिश कीजिए आमराय बनाने की। लेकिन जिंदल के साथ जो हुआ उससे एक बात साफ हो रही है कि हम एक गलत परंपरा की ओर बढ़ रहे हैं।
जवाब देंहटाएंरोचक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहै विरोध का गलत तरीका कहत सुमन समुझाय।
दरद न समझे जब शासन तब जूता करे उपाय।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
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चिदम्बरम जी पर जूता फैंकना निरापद है। उत्तरप्रदेश के किसी बाहूबली नेता पर फैंक कर देखें - सारी जनरैलियत के भाव पता चल जायेंगे।
जवाब देंहटाएं'ज' से 'जूता' भी तो होता है!
जवाब देंहटाएंवैसे एक पुरानी कहावत भी है - ' जैसा देव वैसी पूजा ' और 'लात का भूत बात से नहीं मानता'