महात्मा गांधी के बारे में पढना कभी भी उबाऊ नहीं रहा। तभी तो रोमां रौला ने उन्हें दूसरे ईसा मसीह की संज्ञा दी थी। ठीक ईसा मसीह की तरह ही गांधीजी सहनशीलता भी पीडा और मौत का प्रतीक बन गयी। गांधीजी वैसे इक्का-दुक्का लोगों में शुमार हैं, जिन्होंने खुद को स्वनिर्मित हिजडा कहकर सेक्स की विभाजन रेखा समाप्त करने का दुस्साहस किया था। यहां हम गांधीजी के इसी दर्शन व उनकी जिंदगी के उन पक्षों में बात करेंगे जिसपर शायद अभी तक बहुत कम या नहीं के बराबर बात हुई है। ऐसा इसलिए कि हम जिन्हें पूजते हैं, उन्हें आंख मूंदकर पूजते हैं। पर क्या यह सच नहीं कि मन और शरीर के बीच के दुविधा के संबंध में स्वयं गांधीजी ने जो कुछ कहा उसे यदि हम पढने और समझने से इनकार करते हैं तो इस महानतम आधुनिक भारतीय के बारे में हमारी समझ हमेशा अधूरी ही रहेगी। क्या हमें यह नहीं जानना चाहिये कि जिस व्यक्ति ने करोडों लोगों को राजनीतिक स्वतंत्रता दिलाने वाले आंदोलन की अगुवाई की, वह क्या व्यक्तिगत स्वतंत्रता के प्रश्न पर गुमराह हो गया था।
महिलाएं ही महिलाएं
गांधीजी के ब्रह़मचर्य दर्शन और इसके प्रयोग का अध्ययन करते हुए उनके जीवन पर नजर डालें तो एक बात बरबस ध्यान खींचती है - जिस व्यक्ति को समस्त दैहिक कामनाओं से परहेज था उसके जीवन में, एक स्तर पर मात्र महिलाएं ही महिलाएं थीं। उनके जीवन में दक्षिण अफ्रीका प्रवास से लेकर मरने तक उनका महिलाओं से घनिष्ठ संबंध रहा। ये सब जानते हैं कि दो युवतियों के कंधों पर हाथ रखकर सुबह-शाम टहलना उन्हें बहुत प्रिय था। इसी दिशा में अगला कदम था युवतियों से देर-देर तक मालिश करवाना। मालिश के बाद गांधीजी स्नान करते थे और उस दौरान भी उनकी सहायता के लिए किसी स्त्री की उपिस्थिति आवश्यक थी। ये महिला सहयोगी गांधीजी के साथ ही खुद भी स्नान करती थीं। ब्रह़मचर्य साधना की दिशा में गांधीजी का अगला कदम था अपनी बगल में या अपने से सटाकर स्त्रियों को सुलाना। अपने इस प्रयोग के संबंध में उनमें बेबाक सच्चाई थी। वे अपने नजदीकी लोगों को इस प्रयोग की जानकारी देते रहते थे, क्योंकि उन्हें मालूम था कि एक-न-एक दिन दुनिया को इस सबका पता लगना ही है।
आदर्श हिजडा
बहुतों की राय में गांधीजी में कोई शारीरिक आकर्षण नहीं था। लेकिन अपनी महिला सहयोगियों की नजर में उनमें काफी मोहकता थी। गांधीजी के प्रयोग का लक्ष्य पुरुष और नारी के बीच के भेद की समाप्ति था। उनका शयन स्थान प्रयोगशाला था। एकलिंगता शब्द के लोकप्रिय या प्रचलित होने से बहुत पहले ही उन्होंने इस हेतु का पक्ष-पोषण किया। एक बार गांधीजी ने अपने एक अनन्य सहयोगी रावजी भाई पटेल को एक पत्र में कहा था कि इंद्रियों के दमन से मन के विकार नहीं मिटते। यहां तक कि हिजडों में भी कामेच्छा होती है और इसलिए वे अप्राकृतिक कृत्यों के दोषी पाये गए हैं। गांधीजी ने केवल हिंदू परंपरा से ही नहीं, बल्कि ईसाइयत और इस्लाम से भी प्रेरणा ली। उन्हीं के शब्दों में- मुहम्मद साहब ने उन लोगों को कोई अहमियत नहीं दी, जिन्हें बधिया करके हिजडा बनाया गया था। लेकिन जो लोग अल्ला की इबादत के बल पर हिजडे बन गए थे, उनका उन्होंने स्वागत किया। उनकी आकांक्षा वैसी ही हिजडेपन की थी। जारी........
अगली कडी - स्त्री बनना चाहते थे गांधीजी
यह अंश गिरजा कुमार लिखित Brahmcharya Gandhi and His Women Associates नामक पुस्तक से साभार है। इस पुस्तक का हिंदी अनुवाद विटास्टा पब्िलिशंग प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली ने महात्मा गांधी और उनकी महिला मित्र शीर्षक से प्रकाशित किया है। मित्रों जिन लोगों ने इस पुस्तक का अंग्रेजी या हिंदी वर्जन पढा है उनके लिए पुनर्स्मरण के तौर पर और जो अभी तक नहीं पढ पाये हैं उन्हें पढने को प्रेरित करने के उद़देश्य से इस पुस्तक के कुछ चुनिंदा अंश प्रस्तुत किए जा रहे हैं।
kya kahun bilkul awaak hoon, aalochnaatmak pratikriyaa dene se pehle unhein jaanna jarooree hota hai aur main nahin jaantaa abhee utnaa , ....
जवाब देंहटाएंबापू के चरित्र में बहुत अबूझमाड़ है। बहुत कण्ट्रोवर्सी। पर इससे उनकी महानता कमतर नहीं होती।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा है...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा....
जवाब देंहटाएंगांधीवादी लोग बुरा ना माने
जवाब देंहटाएंमुझे आटो के पीछे लिखा एक वाक्य याद आ रहा है
कृष्ण करे तो लीला
हम करे तो पाप
वाह रे वाह खुदा
ये है तेरा इंसाफ़