बुधवार, 29 अप्रैल 2009

बापू का दुखी दांपत्‍य

आम धारणा है कि महात्‍मा गांधी और कस्‍तूरबा आंधी एक आदर्श और असाधारण दंपती थे, लेनिक वस्‍तुत: वे भारत की किसी भी साधारण विवाहित इकाई की तरह ही थे। उनके 62 साल के विवाहित जीवन में सामान्‍य उतार-चढाव आते रहे। आरं‍भिक वर्ष तनावों, झगडों, गलतफहमियों और लगभग संबंध-विच्‍छेद की नौबतों से भरे हुए थे। एक-दूसरे को प्‍यार करने वाले दंपती के रूप में नकी सार्वजनिक छवि सही थी, लेकिन यह उनके विवाहित जीवन के अंतिम चरण की स्थिति थी। अपने विवाहित जीवन के आरंभ में ही कस्‍तूरबा ( बा) को अपने सहज क्रोधी पति से कुछ कहने-सुनने की निरर्थकता का भान हो गया था। एक करिश्‍माई नेता की छत्र-छाया में जीने की उनकी नियति का यह कठोर सच था।
गांधी दंपती 1883 में परिणय-सूत्र में बंधा। पहली संतान हरिलाल का जन्‍म 1884 में हुआ। 1888 में यूनाइटेड किंगडम रवाना हो गये और बैरिस्‍टर बनकर 1891 में लौटे। उनकी विदेशी शिक्षा को कस्‍तूरबा ने अपने दहेज की वस्‍तुएं बेचकर संभव बनाया था। 1924 में गांधीजी को महात्‍मा की उपाधि मिली। लेकिन इस उपलिब्‍ध के लिए एक भारी कीमत चुकानी पडी उनके परिवार को। बा और उनके चार बेटे महात्‍माजी के सामुदायिक जीवन-पद़धति के प्रयोगों के विषय बनकर रह गए। ‍दक्षिण अफ्रीका में पैर जमाते ही गांधीजी ने परिवार को अपने पूर्व निर्धारित सामाजिक सिद़धांतों और व्‍यवहारों के खांचे में ढालने का एकतरफा फैसला कर लिया। उन्‍हें अपनी पत्‍नी बा बौदि़ध बहस-मुबाहसों के दायरे में प्रवेश करने लायक नहीं लगीं। वे अक्‍सर यूरोपीय सहयोगियों की पत्‍िनयों से उनके फर्क का जिक्र करते रहते थे। पति-पत्‍नी के इच्‍छाओं के टकराव की यह घटना जो 1897 की है -


चूं-चपड पसंद नहीं था
गांधीजी के दफ़तर के मुंशी उन्‍हीं के घर रहते थे। वे उनके साथ अपने घर के सदस्‍य की तरह व्‍यवहार करते थे। पानी की व्‍यवस्‍था न होने के कारण मल-पात्रों को बाहर सफाई करने के लिए ले जाना पडता था। यही नियम परिवार असली सदस्‍यों पर लागू होता था। गांधीजी ने अपने एक पत्र में इसके बारे में जो लिखा है वह शब्‍दश: इस प्रकार है - बा को यह बर्दाश्‍त नहीं था कि उन पात्रों को मैं साफ करूं। हाथ में मल का पात्र लिये जीने से उतरती हुई वह मुझे धिक्‍कार रही है और उसकी क्रोध से लाल आंखों से आंसू की बूंदें निकल कर उसके गालों तक आ रही है यह दृश्‍य में आज भी याद कर सकता हूं।
गांधीजी बा से दिये गये काम को बिना किसी चूं-चपड के पूरा करने की अपेक्षा रखते थे। बा इससे इनकार करती थीं और उन पर फट पडती थीं: रखो अपना घर-बार अपने पास और मुझे जाने दो।
बा के इस अप्रत्‍याशित प्रतिक्रियात्‍मक वाक्‍य पर गांधीजी विचलित होते हुए गरजे : भगवान के लिए अपने आपे में रहो और गेट बंद कर दो। लोगों को इस तरह तमाशा होते नहीं देखने दो।


बेमेल दांपत्‍य
14 अप्रैल 1914 को गांधीजी ने कैलनबैक को जो पत्र लिखा उसमें बा के प्रति कैसी अनुदारता दिखाई आप भी देखिये : उसमें देवता और दानव अपने अति प्रबल रूप में उपस्थित हैं। कल उसने एक जहरीली बात कही। मैंने नरमी से लेकिन फटकारते हुए उससे कहा कि तुम्‍हारे विचार पापमय हैं, तुम्‍हारे रोग का कारण भी मुख्‍य रुप से तुम्‍हारे पाप ही हैं। बस, इस पर वह चीखने-चिल्‍लाने लगी। कहा कि मुझे मारने के लिए ही तुमने मुझसे सारा अच्‍छा खाना छुडवाया, तुम मुझसे उब गए हो और चाहते हो कि मैं मर जाउं। तुम नाग हो नाग। मैंने ऐसी जहरीली स्‍त्री दूसरी नहीं देखी।

यह पत्र किसी मनोविश्‍लेषक के लिए बडे काम की चीज होगा। साधारण मनुष्‍य के लिए यह किसी बारुदी सुरंग पर पैर रख देने के समान है। यह गांधी और बा के बीच की विषमता का स्‍पष्‍ट संकेत है। साथ ही यह अलग-अलग बौदि़धक स्‍तरों पर काम करते दंपती के बेमेलपन की ओर भी इशारा करता है। सभी विवाहों का मर्म सामंजस्‍य है। जब तक बा झुकती रहीं, सब कुछ ठीकठाक था। आखिरकार उन्‍हें बहुत लंबे समय से कोंचा जा रहा था। उनका बत्‍तीस वर्षों का पूरा विवाहित जीवन एकतरफा स्‍पर्धा रहा था। कुल मिलाकर बा की उपेक्षा और अवहेलना की जाती रही थी। बा ने गांधीजी को पोलक जैसी महिलाओं के साथ, जिनमें शारीरिक आकर्षण ज्‍यादा था, अन्‍यत्र सहज व्‍यवहार करते देखा था। उन्‍होंने अपमानित महसूस किया होगा। जारी-----


यह अंश गिरजा कुमार लिखित Brahmcharya Gandhi and His Women Associates नामक पुस्‍तक से साभार है। इस पुस्‍तक का हिंदी अनुवाद विटास्‍टा पब्‍िलिशंग प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्‍ली ने महात्‍मा गांधी और उनकी महिला मित्र शीर्षक से प्रकाशित किया है। मित्रों जिन लोगों ने इस पुस्‍तक का अंग्रेजी या हिंदी वर्जन पढा है उनके लिए पुनर्स्‍मरण के तौर पर और जो अभी तक नहीं पढ पाये हैं उन्‍हें पढने को प्रेरित करने के उद़देश्‍य से इस पुस्‍तक के कुछ चुनिंदा अंश प्रस्‍तुत किए जा रहे हैं।

3 टिप्‍पणियां:

  1. दोस्‍तों, इस पोस्‍ट की पहली ही लाइन में कस्‍तूरबा गांधी के जगह कस्‍तूरबा आंधी छप गया है। क्षमाप्रार्थना के निवेदन है कि इसे सुधार कर पढें। सहयोग की अपेक्षा के साथ-

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  2. १. आप अपनी पोस्टें बारम्बार एडिट कर सकते हैं। उसके लिये टिप्पणी में स्पष्टीकरण की जरूरत नहीं। और अगर चाहते हैं कि गलती काट कर सही की दिखे तो del टैग का प्रयोग कर सकते हैं।

    २. मैं पुन: कहूंगा कि ऐसी व्यवहारगत गलतियां अरस्तू/सुकरात/टॉल्स्टाय... अनेक महान लोगों में मिलेंगी। पर वे महान हैं - वैसे ही बापू भी।

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  3. गाँधीजी एक रूप यह भी है, सामने आना चाहिए.

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