सोमवार, 27 अप्रैल 2009

स्‍त्री बनना चाहते थे गांधीजी

गांधीजी में स्‍त्री बनने की गहरी चाह थी। उन्‍होंने मनु गांधी से कहा था, मैं तुम्‍हारी मां हूं। मनु गांधी ने भी इस विषय पर - बापू- माई मदर नाम से एक पुस्तिका लिखी थी। जब गांधीजी के चचेरे भाई मगनलाल गांधी का निधन हुआ तो गांधीजी ने कहा था- मुझे विधवा कर गए।गांधीजी के साथ रहने वाली कई प्रसिद़ध महिलाओं को उनमें स्‍त्रीत्‍व का गुण दिखा। उनके इसी स्‍त्रीत्‍व गुण के कारण ही महिलाएं उनके करीब सहज महसूस करती थीं।

शायद यह सब उन्‍होंने अपने ब्रह़मचर्य धर्म के प्रयोग के लिए किया हो। जो भी हो गांधीजी के आलोचकों की दृष्टि में ब्रह़मचर्य कोई जीवन दर्शन नहीं, बल्कि महिलाओं के प्रति मोहातिरके था। यही वजह है कि उनके ब्रह़मचर्य के पालन का व्रत उनके खुद द़वारा ही कई खंडित किया गया। 1936, 1938, 1939, 1945 और 1947 में कभी उन्‍होंने अपना यह व्रत बंद किया और कभी शुरू किया। सालों से गुपचुप चल रहा उनके इस व्रत पर लोगों का ध्‍यान 1920 में गया। एक पत्र में गांधीजी ने तब लिखा था- जहां तक मुझे याद है, मुझे ऐसा कोई एहसास नहीं था कि मैं कुछ गलत कर रहा हूं, लेकिन कुछ साल पहले साबरमती में एक आश्रमवासी में मुझसे कहा कि इस क्रिया में युवतियों और स्त्रियों को शामिल करने से शिष्‍टता की स्‍वीकृत मान्‍यताओं को चोट पहुंचती है। 1935 में बात और भी बिगड गयी। उनसे वर्धा मिलने आए उनके सहयोगियों ने उन्‍हें सचेत किया कि वे बुरा उदाहरण पेश कर रहे हैं। उन्‍हें गांधीजी के आचरण का औरों के द़वारा अनुसरण किये जाने का खतरा दिखाई दे रहा है।

गांधीजी के जिन पुरुष सहयोगियों का वस्‍तुत कुछ महत्‍व था, उनमें से ऐसे बहुत कम थे जिन्‍हें गांधीजी के ब्रह़मचर्य के अभ्‍यास में विश्‍वास था। जब मुन्‍नालाल शाह ने शंका व्‍यक्‍त की तो गांधीजी का उत्‍तर था- निर्वसन मालिश करवाने या जब मैंने आंखे बंदकर रखी हों उस समय मेरी बगल हजार निर्वसन स्त्रियों के भी स्‍नान करने में भी क्‍या यह खतरा है कि कामदेव का बाण मुझे बेध देगा। निर्मल-मना सुशीला बहन से मालिश करवाते समय मुझे अपने आप से डर अवश्‍य लगता है। बावजूद उनके खुद के अंदर के इस डर के बाद भी उनका प्रयोग चालू रहा।

किसी बात की हद होती है। आखिरकार उनके घर में ही इसे लेकर भारी विरोध शुरु हो गया। देर रात उनकी शरीर को गरमाहट देने के काम के लिए आश्रम में रह रही उनकी कुछ रिश्‍तेदार ‍महिलाओं के पति ने यहां तक कह दिया कि ऐसा अगर जरुरी है तो हम खुद गांधीजी को शरीर की गरमाहट देने को तैयार हैं पर महिलाओं को आश्रम से हटाया जाए। इस विषय पर विनोबा भावे ने अंतिम बात कह डाली। उन्‍होंने कहा, अगर गांधीजी पूर्ण ब्रह़मचारी हैं तो उन्‍हें अपनी पात्रता को कसौटी पर कसने की जरुरत नहीं है। और अगर वे अपूर्ण ब्रह़मचारी हैं तो उन्‍हें ऐसे प्रयोग से बचना चाहिए। जारी---

यह अंश गिरजा कुमार लिखित Brahmcharya Gandhi and His Women Associates नामक पुस्‍तक से साभार है। इस पुस्‍तक का हिंदी अनुवाद विटास्‍टा पब्‍िलिशंग प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्‍ली ने महात्‍मा गांधी और उनकी महिला मित्र शीर्षक से प्रकाशित किया है। मित्रों जिन लोगों ने इस पुस्‍तक का अंग्रेजी या हिंदी वर्जन पढा है उनके लिए पुनर्स्‍मरण के तौर पर और जो अभी तक नहीं पढ पाये हैं उन्‍हें पढने को प्रेरित करने के उद़देश्‍य से इस पुस्‍तक के कुछ चुनिंदा अंश प्रस्‍तुत किए जा रहे हैं।

2 टिप्‍पणियां:

  1. बापू का यह बड़ा विवादास्पद जीवन-भाग है।

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  2. प्रत्‍येक व्‍यक्ति का अपना एक व्‍यक्तिगत जीवन होता है तो गाँधीजी का भी था। लेकिन कठिनाई तब पैदा हुई जब उन्‍होंने अपने व्‍यक्तिगत जीवन को सार्वजनिक किया। वे प्रयोग स्‍वयं पर करते थे लेकिन प्रयोग के समय महिला का साथ रहता था तो महिला पर अत्‍याचार उन्‍हें दिखायी नहीं पड़ा। रही बात उनके महिला बनने की तो यह सत्‍य नहीं है। मातृत्‍व का गुण होना श्रेष्‍ठ बात है लेकिन गाँधीजी महिला बनना चाहते थे यह बात तो सिरे से खारिज करने लायक है। अपनी जिद मनवाने की उनकी आदत थी, यदि वे महिला बनना चाहते तो फिर उनकी जिद कहाँ रहती?

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