बुधवार, 20 मई 2009

खुशी की बात

हर दूसरा आदमी विश्‍व का सबसे खुश व्‍यक्ति होने का दावा एक बार जरूर करता है। इसकी वजह यह है कि हर आदमी के पास सबसे ज्‍यादा खुश होने का एक न एक पल अवश्‍य मौजूद है।


दार्शनिकों की चिंता अधिकतर व्‍यक्ति की नकारात्‍मक भावनाओं को घटाने की रहती है। अब तक इस पर ढेरों शोध किये गए हैं। जबकि आनंद, उमंग और खुशी से भरपूर लोगों को विज्ञान ने नजरअंदाज कर रखा है। पेनसिल्‍वेनिया विवि के दर्शनशास्‍त्र के प्रोफेसर सेलिगमैन के अनुसार अपनी कमियों पर दुखी होने के बजाय बेहतर है कि अपनी शक्ति को बढाया जाए। बार-बार सकारात्‍मक शक्ति का इस्‍तेमाल करने से दुर्भाग्‍य और नकारात्‍मक भावनाओं से लडने के लिए स्‍वाभाविक प्रतिरोधक तैयार किया जा सकता है। वे कहते हैं। यदि आप खुश होना चाहते हैं तो लाटरी जीतना, अच्‍छी नौकरी पाना और तनख्‍वाह में बढोतरी, सब भूल जाइए। पिछले पचास वर्षों की सांख्यिकी के अनुसार दुनिया में खुशी का दर घटी है। इस दौरान जीवन की गुणवत्‍ता तो नाटकीय ढंग से बढी है, हम अमीर भी हुए हैं, लेकिन अवसाद की महामारी ने इसके आनंद को उदासीन कर दिया है।



किसी ने ठीक ही कहा है- खुशी का नशा ऐसा है कि एक खुराक के बाद और अधिक की मांग करता है। खुशी का संबंध हमारे पूर्व के अनुभव से होता है। मनोविज्ञान में 'अनुकूलनशीलता का सिद्धांत' खुशी के इस पक्ष को समझाता है। एक उदाहरण-

एक जमाना था जब 12 इंच का श्‍वेत-श्‍याम टेलीविजन अभूतपूर्व आनंद लेकर घर आया था। आज अपने 25 इंच के रंगीन टेलीविजन से यदि पांच मिनट के लिए भी कलर गायब हो जाता है तो लगता है हमें वंचित किया जा रहा है। ऐसा इसलिए है, क्‍योंकि हमने अपने आप को 'मध्‍यम स्‍तर' से उपर की ओर समायोजित कर लिया है। दूसरे शब्‍दों में कल की सुविधा आज की आवश्‍यकता बन गई है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. खुशी का मानक समयकाल और आपकी परिस्थितियों के हिसाब से बदलता जाता है..इसीलिए किसी ने कहा है:

    But what is happiness except the simple harmony between a man and the life he leads?

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