मंगलवार, 3 मार्च 2009

भोजपुरी गजल

एक
मन भ्रमर फेरु गुनगुनाइल बा
प्रेम-सर में कमल फुलाइल बा

आंख के राह चल के, आंतर में
आज चुपके से के समाइल बा

दूब के ओस कह रहल केहू
रात भर नेह से नहाइल बा

रस-परस-रुप-गंध-शब्‍दन के
वन में, मन ई रहल लोभाइल बा

जिंदगी गीत हो गइल बाटे
राग में प्रान तक रंगाइल बा

दो
रउआ नापीं प्रगति ग्रोथ के रेट में
हम नापीले अपना खाली चेट में

अब ढोआत नइखे ई बहंगी महंगी के
ताकत नइखे एह कंधा एह घेंट में

हाथ पसारीं कइसे केकरो सामने
बाझल बाटे ऊ हंसुआ के बेंट में

खबर खुदकुशी के मजदूर-किसान के
लउकत नइखे रउरा इंटरनेट में

हमके चूहामार दवाई दे दीहीं
चूहा कूदत बाटे हमरा पेट में

(उपर वाला दुनो गजल पांडेय कपिल जी के बाटे। पांडेय कपिल जी भोजपुरी के वरिष्‍ठ आ प्रतिष्ठित रचनाधर्मी हईं।)

3 टिप्‍पणियां:

  1. दो भिन्न रंग में रंगी रचनाये अपने अपने रंग का जादू बिख्रेर रही हैं और सीधे मन को बांधती हैं...

    दूसरी रचना vrtmaan विडंबना को बहुत सार्थक ढंग से uker रही है. nimnlikhit शेर लाजवाब है....



    हमके चूहामार दवाई दे दीहीं
    चूहा कूदत बाटे हमरा पेट में

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  2. पांडे कपिल जी त कमाल के गजल लिखले बाड़े ...

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  3. sachin ne aapke blog ka pata diya, aapne bhojpuri rang me rangi behtareen gazal se ru-b-ru karaya.

    Aashi ki tasveer....bahut sundar,
    Sath bitaye chand lamhon ki madhur sugandh.

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