कुछ लोग ऐसे होते हैं जो हमेशा ही निर्भीक बने रह सकते हैं। कोई भी लालच उन्हें डिगा नहीं सकता, और न ही कोई प्रलोभन उन्हें प्रभावित करता है। लालसाविहीन ऐसे लोग हमेशा ही समाज के लिए प्रेरक होते हैं, और अनुकरणीय भी। प्रख्यात साहित्यकार व शीर्षस्थ कवि प्रो केदारनाथ सिंह भी ऐसी ही शख्सियतों में से एक हैं। हाल में ही यूपी सरकार ने उन्हें प्रदेश के शीर्ष पुरस्कार भारत भारती से नवाजा। पुरस्कार को पूरा सम्मान देते हुए श्री सिंह ने उसे ग्रहण किया पर समय आने पर अपने मन की बात भी कहने से नहीं चूके।हाल में ही प्रकाशित एक साक्षात्कार में प्रो.केदारनाथ सिंह ने कहा कि वे पुरस्कार को गुणवत्ता का पर्याय नहीं मानते। उनका कहना है कि यह एक औपचारिक चीज है जिसके निर्धारण में वर्तमान दौर में बहुत से अनचाहे मानक भी कार्य करते हैं। मुझे इससे पहले कई प्रदेशों के साहित्य के बड़े पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। यह सौभाग्य की बात है कि उत्तर प्रदेश ने मुझे भारत भारती पुरस्कार के काबिल समझा। पर पुरस्कार गुणवत्ता का पर्याय नहीं है। ऐसा नहीं है कि इसके बाद मेरे लेखन में कोई व्यापक परिवर्तन होगा। दरअसल, मेरे जैसे मध्यवर्गीय लेखक व कवि के लिए पुरस्कार की धनराशि संचित रायल्टी की तरह है जो तमाम जरूरतों को पूरा करने में मददगार होती है। उनका कहना था कि प्रदेश सरकारों की जो समिति, संस्थाएं या अकादमी हैं उन्हें स्वायत्त होना चाहिए। सरकार कि भूमिका निरपेक्ष व केवल अनुदान देने तक सीमित होना चाहिए।
पढने में बिहार, बंगाल अव्वल
केदारनाथ सिंह ने कहा कि पश्चिम बंगाल व बिहार आदि क्षेत्रों में आज भी किताबें ठीक से पढ़ी जाती हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में पुस्तक मेला में बिहार की एक चौथाई किताबें भी नहीं बिकती हैं। बावजूद इसके पुस्तकों के प्रति रुझान घटा नहीं है बल्िक ई-लर्निंग आदि माध्यमों से तरीके बदल गये हैं।
पाठक प्रशिक्षण आवश्यक
कवि केदारनाथ सिंह के अनुसार कविता का पाठक हमेशा सहृदय व रसिक होना चाहिए। पाठक का एक न्यूनतम प्रशिक्षण आवश्यक है। वैसे भी कविता का पाठक सामान्य पाठक से भिन्न है। कविता एक सलेक्टेड कम्यूनिटी के लिए लिखी जाती है और इसका निश्चित पाठक वर्ग होता है। केवल तुलसीदास ही इसके अपवाद है।
इस दौर में जब एक से एक धूरंधर पुरस्कार व सम्मान हासिल करने के लिए हर तरह के जोड़-तोड़ करते दिख रहे हैं। ऐसे में आप कवि केदारनाथ सिंह की बातों से कितने सहमत हैं।
पढने में बिहार, बंगाल अव्वल
केदारनाथ सिंह ने कहा कि पश्चिम बंगाल व बिहार आदि क्षेत्रों में आज भी किताबें ठीक से पढ़ी जाती हैं। वहीं उत्तर प्रदेश में पुस्तक मेला में बिहार की एक चौथाई किताबें भी नहीं बिकती हैं। बावजूद इसके पुस्तकों के प्रति रुझान घटा नहीं है बल्िक ई-लर्निंग आदि माध्यमों से तरीके बदल गये हैं।
पाठक प्रशिक्षण आवश्यक
कवि केदारनाथ सिंह के अनुसार कविता का पाठक हमेशा सहृदय व रसिक होना चाहिए। पाठक का एक न्यूनतम प्रशिक्षण आवश्यक है। वैसे भी कविता का पाठक सामान्य पाठक से भिन्न है। कविता एक सलेक्टेड कम्यूनिटी के लिए लिखी जाती है और इसका निश्चित पाठक वर्ग होता है। केवल तुलसीदास ही इसके अपवाद है।
इस दौर में जब एक से एक धूरंधर पुरस्कार व सम्मान हासिल करने के लिए हर तरह के जोड़-तोड़ करते दिख रहे हैं। ऐसे में आप कवि केदारनाथ सिंह की बातों से कितने सहमत हैं।
पुरस्कार गुणवत्ता का पर्याय नहीं है- सत्य वचन.
जवाब देंहटाएंआभार कवि केदारनाथ सिंह के विचार सुनाने के लिए.
दो लाख रुपए का पुरस्कार मिल गया और क्रांति हो गई। अब छोड़ो समाज-वमाज की चिंता प्यारे।
जवाब देंहटाएंवास्तव में आपनें सही लिखाहै ,पुरस्कार मिलनाही गुणवत्ता की पहिचान नहीं विशेषकर आजकल के माहौल में जहाँ चाटुकारिता और राजनीति हावी है\बन्द का पाबन्द पर शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंखरी बात !
जवाब देंहटाएंलेख में एक करारी चोट की गई है, साथ ही इसके कई अर्थ भी निकलते हैं। कवि महोदय अगर इतने ही आला दरजे के थे तो अवार्ड को लेने से पहले ठुकरा देते। यह क्या कि आप को अगर एक सम्मान मिला है तो अब आप बात बघारने लगे, दूसरों को नसीहत देने लगे। रही बात बिहार और यूपी में किताबों के अध्ययन की तो यह बात सब आदमी की बैकग्राउंड पर निर्भर करती है कि कौन कितना पढता है। इससे मतभेद ही उपजेंगे।
जवाब देंहटाएंसही है। गुणवत्ता वाले कभी पुरस्कारों की दौड़ में शामिल नहीं होते। राम, कृष्ण, गांधी, मोहम्मद साहब, बुद्ध, महावीर को कभी किसी ने पुरस्कार पाने की होड़ में देखा है? चाहे जितना बड़ा पुरस्कार पाने वाला चाहे जो कोई भी हो, धरती पर है कोई उनकी बराबरी करने वाला?
जवाब देंहटाएंऐसे लेख लिखे जाने चाहिए। ऐसे विचार उपजने वाले मन-मस्तिष्क को मेरा सलाम।
बात ठीक है, लेकिन पुरस्कार जिम्मेवारियों का बोध भी कराते हैं।
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