रविवार, 22 मार्च 2009

ताकि गुजर न जाए गोधरा

डब्‍ल्‍यू एच आडिन एक शायर था,
उसने कहा था
अगर हम एक-दूसरे से प्‍यार नहीं करेंगे
तो मर जाएंगे।
मैं भी इस बात को मानने लगा था
पर अब असहमत होना चाहता हूं।

जंगल से शहर की यात्रा में
बहुत पाया आदमी ने।
चार की जगह दो पैर पर चलना सुहाया आदमी को।
पर बाकी है कहीं हैवानियत का अंश कोई
नहीं तो खींच लाता आदमीयत के शिखर से आदमी को।

अगर आपको याद हो,
साबरमती एक्‍सप्रेस में भी आदमीयत मरी थी
तब भी मरी थी आदमीयत जब...
मां की गोद से बच्‍ची को छीनकर
संगीन पर उछाल दिया गया था,
और तब भी आदमीयत ही मरी थी
जब नाम पूछ कर सर कलम कर दिया गया था
रामभरोसे और यकीन अली का,
कभी गुजरें आप गोधरा से तो देख सकते हैं यह सब।

क्‍या सचमुच देख सकेंगे आप वह सब
जो सहा था गोधरा ने ?
सत्‍तावन लोगों को जिंदा जला दिया जाना
बच्‍चों के आंखों की दहशत और औरतों की चीख
क्‍या सुन पाएंगे आप?

रामभरोसे की पत्‍नी की आंखों के सूख गए आंसू
यकीन अली के मां की पथराई आंखें
शायद न दिखे आपको
क्‍योंकि बहुत पुरानी हो चुकी यह बात
क्‍योंकि जब आप गुजर रहे होंगे गोधरा से
सो रहे होंगे, सो रही होगी आपकी आदमीयत।

यह सब कुछ दिखेगा तभी
जब जगेगा आपके अंदर का आदमी
इसलिए हो सके तो, जगने दीजिए
अंदर के आदमी को
जब भी ये आदमी जगेगा
तब कोई गोधरा गुजरेगा नहीं इस तरह।

मेरे पत्रकार मित्र सचिन श्रीवास्‍तव ने अपने ब्‍लाग नई इबारतें पर कुछ दिनों पहले एक पोस्‍ट में मुझे जानने वालों से यह गुजारिश की थी कि मुझे कविता लिखने के लिए उकसाया जाए। यह कविता उसी का परिणाम है। इसलिए सचिन को समर्पित है।

5 टिप्‍पणियां:

  1. गागर में सागर भरने का बहुत बढ़िया यत्न किया..
    यहां कहना बनता है
    न लठ है न तलवार है...
    अ-शब्द की बस एक तीखी धार है...

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  2. यह सब कुछ दिखेगा तभी
    जब जगेगा आपके अंदर का आदमी
    इसलिए हो सके तो, जगने दीजिए
    अंदर के आदमी को
    जब भी ये आदमी जगेगा
    तब कोई गोधरा गुजरेगा नहीं इस तरह।

    samvedanshil rachna....ytharth se parichit karvati...bhot sundar abhivyakti...BDHAI...!!

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  3. यह सब कुछ दिखेगा तभी
    जब जगेगा आपके अंदर का आदमी
    इसलिए हो सके तो, जगने दीजिए
    अंदर के आदमी को
    जब भी ये आदमी जगेगा
    तब कोई गोधरा गुजरेगा नहीं इस तरह।
    bahut sunder

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  4. जब गोधरा काण्ड हुआ, तब मैं रतलाम मण्डल में था। गोघरा के पहले तक मेरा मण्डल था। साबारमती एक्स्प्रेस मेरे मण्डल से हो कर गुजरी थी। अगर यह काण्ड गुजरात के प्रारम्भ होते दाहोद या उसके आस-पास हुआ होता तो मुझे बहुत मशक्कत करनी पड़ती।

    मैने वह जला कोच देखा था और मैं आसुरिक बर्बरता से गिनगिना गया था!

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  5. मरती है सदा

    मरेगी भी सदा

    आदमीयत

    क्‍योंकि ठीक नहीं है

    आदमी की नीयत।

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